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चल छोड़, ये आदत है, कोई खता नहीं l
तेरे फ़िक्र में हैं हम और तुझे पता नहीं l
चल छोड़, ये आदत हैं, कोई ख़ता नहीं l
कभी कसमें और कभी वादा l
हर बार बस पहले से ज़्यादा l
इकरार, प्यार, दोनों बेशुमार l
और भारी हर पल का इंतज़ार l
गिरे हम बहुत मगर ये कोई खिजा नहीं l
चल छोड़, ये आदत हैं, कोई ख़ता नहीं l
तीखी, खट्टी, चंचल शरारतें l
और तेरी जी से ज़्यादा हिफ़ाजतें l
नज़र की शोखियाँ और चाहतें l
तेरी मेरे लिए दिन रात की इबादतें l
तेरी अब मगर इल्तज़ा नहीं या खुदा की रजा नहीं l
चल छोड़, ये आदत हैं, और कोई ख़ता नहीं l
जिंदगी की चाहत में जान कहने लगा l
खुद को समर्पण कर मान कहने लगा l
जो भूल बैठ खुद को मोहब्बत में तेरे l
उजियारे की चाह में पा बैठा अँधेरे l
भूल गए तुम भी उसको, किया इश्क अता नहीं l
चल छोड़, ये आदत है, और कोई ख़ता नहीं l
शशि सुमनप्रयागराज , उत्तर प्रदेश
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