संवेदना विहीन हम
संवेदना विहीन हम
बांट पाय दर्द कौन।
अनाथ तो बना गया,
प्रकृति भी मौन क्यों ?
दर्द क्यों एक को
बाकी हम हैं कौन ?
मनुष्य है वही की जो
अनाथ के लिए मरे। ।।
दर्द है देश का,
फिर भी हम मौन हैं
फर्ज क्या बाप का
बेटा क्यों मौन है ?
काल का ग्रास बना,
बच्चे अनाथ हुए।
बांटेगा दर्द कौन
हम तो मौन हैं ।।
विधि का विधान क्या
देश का नौनिहाल क्या
करेगा विचार कौन
कैसा तनाव है ?
शर्म तो बेशर्म है
हम पे कलंक है ।
मानव के नाम पर
कहां आज हम हैं। ?
लिखने का और भी,
आज मेरा मन है।
बोझ तो बहुत है
क्या करूं सोच कर ।
विवेक भी है कहां
संस्कार तो गौण है ।
पाश्चात्य के रंग में,
रंग गया स्वदेश है ।।
लौटना है हमें,
अपने देश प्रेम में,
वाह्य का साथ क्या
अपना भी मौन है। ।।
चलो चलें हम,
प्रकृति की गोद में
शुरू करें हम,
प्रार्थना चैतन्य की। ।।
सभ्यता से दूर दूर,
संस्कृति को छोड़ छोड़
मिलेगा ना चैन कहीं
मां भारती से दूर दूर। ।।
तथास्तु,,,,,,, डॉ हरे कृष्ण मिश्र
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