kavita-vo vyakti pita kahlata hai chanchal krishnavanshi
वो व्यक्ति पिता कहलाता है!
ख़ुद के सुख को कर न्योछावर
बच्चों पर खुशियां लुटाता है
बार बार संतान जो रूठे
सौ बार उसे भी मनाता है
क्या ऐसा कोई व्यक्ति भी है
हो जिसका कोई स्वार्थ नहीं
निः स्वार्थ रहा है जो अबतक
वो व्यक्ति पिता कहलाता है।
लाख मुसीबतें खुद पर आए
संतान को पता न चलने पाए
अनवरत कठिन परिश्रम करता
दुख की घड़ी में भी वो मुस्काए
बेटी के सपनों का राज है वो
पुत्र के ख्वाहिशों का ताज है वो
पत्नी को कोई कष्ट न दे
सच में ऐसा अंदाज़ है वो।
एक कमीज़ ख़ुद के लिए
नहीं ख़रीद जो पाता है
मनपसंद कपड़े संतान को
सोचो कैसे दिलवाता है
कठिन परिश्रम करता है पर
चैन कहां वो पाता है
निः स्वार्थ रहा है जो अबतक
वो व्यक्ति पिता कहलाता है।
✍️चंचल कृष्णवंशी