तुम और तुम्हारी तन्हाई | tum aur tumhari tanhai

तुम और तुम्हारी तन्हाई

अब तुम और तुम्हारी तन्हाई
अक्सर बातें करती होंगी
हां, अब तो तुम अपने जज्बातों को
तन्हाई से ही बांटती होंगी

क्योंकि अब नहीं हैं साथ हम
सुनने को हर अल्फ़ाज़ तेरे
कभी बेकरार हुआ करते थे हम
और सुनाने को उत्सुक रहती थी तुम

बेझिझक हर अच्छी-बुरी बातें
साझा कर देती थी तुम
पर अब दोनों का साथ नहीं रहा
जिससे तनावग्रस्त हो गए हैं हम

तुमने खुद खामोशी को चुना
और करके बेवफाई मुझसे चली गई
अपने स्वार्थी ख्वाबों को हकीकत में बदलने
साथ मेरा तुम छोड़ गई

अब तुम और तुम्हारी तन्हाई
अक्सर बातें करती होंगी
तन्हा रातों में हमारे अनकहे जज्बातों को
अब फुर्सत में तुम कांट-छांट करती होंगी ।

ना जाने हुई क्या खता मुझसे
जो मेरे पास होकर भी दूर हुई तुम
बस एक सवाल दिल में तड़प रहा
क्यों मुझे अंधेरे मोड़ पर छोड़ गई तुम

ना जाने क्या थी बेबसी तेरी?
जो मुझे बताना गंवारा ना समझा,
और कर लिए सारे फैसले तन्हा
खैर, मैं भी रहता हूं अब तन्हा- तन्हा ।

About author 

Mamta kushwaha
ममता कुशवाहा
मुजफ्फरपुर, बिहार

تعليقات