जन्माष्टमी : हे कृष्ण आओगे न!
हे किशन-कन्हैया, सारे जग के तुम हो खिवइयां,नाराज़ हूँ मैं तुमसे, कब तक ये बासुरी बजाओगे.
छलनी हो रहा तन-मन और तुम ऐसे गुनगुनाओगे.
इस कलयुग में द्रोपदियों को हैं, तुम्हारा इंतज़ार.
न जाने इस तरुणाई ने कौनसा ज़हर पी लिया हैं.
"कंस" और "कौरवों" की ही तरह जन्म ले लिया हैं.
माँ के दूध से भी अब देखों इन्होंने मुँह फेर लिया हैं.
दुशासनों की फौज़ लिए, ये रसूखदार विचर रहें हैं.
हमारी बेटियों की अस्मतों को ये तार-तार और
माँ के आँचल में भी कोख को ज़ार-ज़ार कर हैं.
अरे, कान्हा कब पिघलोगे? क्या, चीखें सुन रहें हो?
क्या मेरी तपस्या के तुम, अभी-भी दिन गिन रहें हो!
याद रखों और ज्यादा, मैं इंतज़ार नहीं कर सकता.
माता देवकी और वासुदेव की राह नहीं तक सकता.
जन्माष्टमी पर सप्तमी और छब्बीस को सोमवार है,
हे कृष्ण, हे मुरलीधर, हे देवकी के नंदन आओगे न,
राह तकती द्रोपदियों के ज़ख्मों पे मरहम लगाओगे न.
इन दुशासनों को दण्डनायक बन बहुत तडपाओ न.
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