सुंदर सी फुलवारी| Sundar si phulwari

सुंदर सी फुलवारी

सुंदर सी फुलवारी| Sundar si phulwari
मां -पिता की दुनिया बच्चे हैं,
बच्चों की दुनिया मात- पिता ।
रिश्ते बदलें पल- पल में ,
मां -पिता कभी नहीं बदलते हैं।
बच्चों के भाव बदलते हैं,
हरदम बस उलझे रहते हैं।
तुलना की इनकी आदत है,
खुद को कम आंका करते हैं।
मां -पिता के प्यार पर शंका कर,
खुद का मन दुःख से भरते हैं।
ये दौर सभी के जीवन में,
आता है, और घर कर जाता है।
शंका के बादल जब घेरे मन को,

फिर प्यार नहीं दिखता इनको।
तुलना जब करने लगते हैं,
अपनापन बिल्कुल खो जाता,
बचपन के वो प्यारे रिश्ते,
दुश्मन से भी बद्तर लगते हैं।
तेरे - मेरे के इस चक्कर में ,
मां -पिता भी बंटते जाते हैं।
मां -पिता ने सपने देखे थे,
इक सुंदर सी फुलवारी के,
उन सपनों को अनदेखा कर,
सब अपने सपने देखते हैं,
इक सुंदर सी फुलवारी के।
मां -पिता की कोई जगह नहीं,
उस सुंदर सी फुलवारी में।

वक्त फिर से लौट कर आता है,
सपना फिर से टूटा करता है,
इक सुंदर सी फुलवारी का।
सोचा था पढ़ लिख कर मानव,
समझेगा इस पीड़ पराई को।
अहसान हमेशा यह मानेंगा,
मां -पिता ने कष्टों को झेला है,
तब जाकर जीवन जीने का,
सलीका सीख वो पाया है।
अफसोस ये आज भी है हमको,
वो आज भी सीख ना पाया है,
औरों के दर्द में तड़प जाना।
जाने कब मानव सीखेगा,
कब सपना यह पूरा होगा,

जो देखा था मां-पापा ने
इक सुंदर सी फुलवारी का।

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कंचन चौहान,बीकानेर
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