जीवन की पगडंडी पर
जीवन की पगडंडी पर |
चलते-चलते जब शाम हुई,
पैरों में तिनके लिपटे से
नींदें रातों के नाम हुई,
जब भोर गयी उठकर देखा
दिनकर सर पर चढ़ कर बैठा
तब मैंने अपने स्वपनों को
आतप में क्षन-क्षन मरते देखा,
पुनः रात्रि के आँगन में
अभिलाषाएँ अविराम हुईं
जीवन की पगडंडी पर
चलते चलते जब शाम हुई..।।
— ©अनिष्क
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