तुम और मैं | Tum aur main

 तुम और मैं

तुम और मैं | Tum aur main
तुम घुमाते बल्ला क्रिकेट के,मैं घुमाती कंघी बालों में 
तुम बात करते किताबों से, मैं बनाती बातें यादों से, 
तुम्हें है प्रिय एकाकी और हम हुए वाचल प्राणी, 
बोलो कैसे बनेगी अपनी कहानी? 

जब मैं हो जाऊंगी अस्वस्थ काया से , 
क्या बल्ला छोड़ मेरे बिखरे लटों को सजाओगे? 
जब मेरे चहेरे पर उदासी छा जायेगी, 
क्या दो पल मेरे साथ नये यादें बनाओगे? 

बालो चुप हो क्यों? 
जब तुमसे रूठ मैं एकाकी ढूंढने निकलूँ, 
क्या अपनी बेफिक्र बातों से हमे हंसाओगे? 
तुम घुमाते बल्ला क्रिकेट के,मैं घुमाती कंघी बालों में 

तुम बात करते किताबों से, मैं बनाती बातें यादों से 
तुम हो पाषाण हृदय प्रिये, मै हूँ भावनाओं में बहती धारा, 
तुम हो वास्तविकता में निर्लिप्त, मैं कल्पनाओं से तृप्त
बोलो कैसे बनेगी अपनी कहानी? 

About author 

Mamta kushwaha
ममता कुशवाहा
मुजफ्फरपुर, बिहार

تعليقات