कैश फॉर क्वेरी इन पार्लियामेंट

कैश फॉर क्वेरी इन पार्लियामेंट

कैश फॉर क्वेरी इन पार्लियामेंट
वर्ष 1951 में जब देश में प्रोविजनल सरकार थी तब से अभी तक सवाल पूछने के एवज में पैसा लेना शुरू रहना दुर्भाग्यपूर्ण
दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र भारतीय संसद में सवाल पूछने के एवज में पैसा लेना दुर्भाग्यपूर्ण - एडवोकेट किशन भावनानीं गोंदिया
गोंदिया - वैश्विक स्तरपर भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र और सबसे अधिक जनसंख्यकियतंत्र वाला देश है जो हर भारतीय को गौरवविंत करने वाले दुर्लभ पलों में से एक है। परंतु वर्तमान स्थिति और 1951, 2005 के कुछ संसदीय घटनाओं को अगर हम देखते हैं तो, असमंजस में पड़ जाते हैं कि गर्व करें या दुर्भाग्यपूर्ण मानें? या नेंट कि ज़िंन सांसदों को हम वोट देकर उन्हें चुनकर पवित्र संसद की दहलीज तक इसउद्देश्य से पहुंचाते हैं कि हमारे लोकसभा क्षेत्र के साथ-साथ पूरे राष्ट्र के विकास में हमारे प्रतिनिधि महत्वपूर्ण योगदान देंगे। संसद के प्रश्नकाल और शून्यकाल ध्यानाकर्षण काल में भी हमारे संसदीय क्षेत्र की कठिनाइयों के मुद्दे उठाकर हमारी समस्याओं को राष्ट्रीय स्तरपर संज्ञान में लेंगे और उच्च स्तरपर मिलकर उनका निदान करने में कोई कौर कसर नहीं छोड़ेंगे, परंतु जिस प्रकार से आज दिनांक 15 अक्टूबर 2023 नवरात्रि घट स्थापना के प्रथम दिन देर शाम बिहार के एक सांसद द्वारा बंगाल की एक सांसद पर पैसे लेकर संसद में सवाल पूछने का मामला उठाया और लोकसभा अध्यक्ष को री इमरजेंस आफ नैस्टी कैश फॉर क्वेरी इन पार्लिया के टाइटल से चिट्ठी लिखी उसे सारा देश फिर एक बार स्तब्ध रह गया है, क्योंकि 25 दिसंबर 1951 में जब देश आम चुनाव भी नहीं हुए थे एक प्रोविजनल सांसद बनाई गई थी उस समय भी एक सदस्य को धन लेकर एक बिजनेसमैन के लिए संसद में प्रश्न पूछने के आरोप में उसकी संसद सदस्यता समाप्त कर दी गई थी फिर 2005 में भी 10 लोकसभा और एक राज्यसभा सांसद की सदस्यता इसी मुद्दे पर समाप्त कर दी गई थी। अभी फिर एक बार यह मुद्दा आया है जो दुर्भाग्यपूर्ण है।बड़े बुजुर्गों की कहावत है के धुआं वहीं से उठता है जहां आग लगती है, वाली कहावत यहां जरूर चरितार्थ होते देख रही है। उधर बंगाल की उस संसद सदस्य और प्रख्यात उद्योगपति द्वारा खंडन कर दिया है। चूंकि पैसे लेकर पवित्र संसद में सवाल पूछने का मुद्दा फिर आज उठा है इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे,1951 भारत में पहला आम चुनाव भी नहीं हुआ था तब बिजनेसमैन से धन लेकर सवाल पूछनेपर उनसे सदस्यता वापस ली थी,वह अभी तक शुरू रहना दुर्भाग्यपूर्ण है, कैश फॉर क्वेरी इन पार्लियामेंट।
 
साथियों बात अगर हम लोकसभा राज्यसभा विधानसभा में प्रश्न काल और शून्य काल क्या होता है, इसको समझने की करें तो, सदन की कार्यवाही के दौरान किसी भी सत्र में कुछ टर्म होते हैं जैसे प्रश्न कल शून्य काल ध्यानाकर्षण काल इत्यादि। सदन सुबह 11 बजे खुलता है और शाम 6 बजे बंद होता है, इस अवधि में जो काम होते हैं उन्हें सदन की कार्यवाही कहते हैं। इस कार्यवाही को दो खेमों में बांटा जाता है। पहली और दूसरी पाली जो भोजन अवकाश से पहले और बाद में होती है। पहली पारी 11 से 1 और दूसरी पाली 2 से 6 तक होती है। पहली पारी में दो काल होते हैं प्रश्न काल और शून्य काल इसमें 11 से 12 तक प्रश्नकाल होता है, जिसमें सदस्य प्रशासन और सरकार के कार्यवाही से संबंधित सवाल कर सकते हैं और सत्ता पक्ष इसका जवाब देने के लिए उत्तरदाई है। शून्य काल 12 से 1 बजे तक होता है इसकी सूचना पहले से देने की जरूरत नहीं होती तत्काल सार्वजनिक मुद्दों पर प्रश्न उठाए जा सकते हैं परंतु इसे सुबह 10 बजे इसका नोटिस, पास करते हैं तो प्रश्न उठाया जा सकता है वरना नहीं।
 
साथियों बात कर हम एक संसद सदस्य द्वारा दिनांक 15 अक्टूबर 2023 को स्पीकर को एक सांसद लिखने की करें तो, स्पीकर से मांग की कि जांच के लिए कमेटी बनाई जाए और उन्हें सदन से निलंबित किया जाए। स्पीकर को 'री-इमरजेंस ऑफ नेस्टी कैश फॉर क्वेरी इन पार्लियामेंट' टाइटल से चिट्ठी लिखी है। इसमें विशेषाधिकारों के गंभीर उल्लंघन, सदन के अपमान और आईपीसी की धारा 120 ए के तहत आपराधिक केस की बात कही है। अपने लैटर के साथ एक एडवोकेट की चिट्ठी भी लगाई है। इसमें लिखा है- ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने मेहनत से रिसर्च की है, जिसके आधार पर उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि हाल तक उन्होंने संसद में कुल 61 में से करीब 50 प्रश्न पूछे। इनमें बिज़नेस और उनकी कंपनी के व्यावसायिक हितों की रक्षा करने या उन्हें कायम रखने के इरादे से जानकारी मांगी गई थी। पहले भी ऐसा मामला सामने आया था। अपने लैटर में उन्होंने ये भी बताया कि 14वीं लोकसभा के दौरान 12 दिसंबर 2005 को भी ऐसा ही मामला सामने आया था। तब स्पीकर ने उसी दिन जांच कमेटी का गठन कर दिया था। साथ ही 23 दिसंबर 2005 को 10 सांसदों को 23 दिन के लिए निलंबित कर दिया गया था। इसी सदन ने 'कैश फॉर क्वेश्चन' मामले में 11 सांसदों की सदस्यता रद्द कर दी थी। आज भी यह चोरी नहीं चलेगी। एक बिजनेसमैन हमारे लिए खराब है, लेकिन दूसरे से 35 जोड़ी जूते लेने में उन्हें कोई गुरेज नहीं है। मिसेस (इमेल्डा) मार्कोस की तरह हर्मीस, गुच्ची बैग, पर्स, कपड़े और हवाला का पैसा काम नहीं करेगा। सदस्यता चली जाएगी, कृपया प्रतीक्षा करें।
 
साथियों बात अगर हम इस मुद्दे पर आरोपित संसद और बिजनेस मैन द्वारा द्वारा अपनी सफाई पक्ष रखने की करें तो,उन्होंने एक्स पर लिखा- फेक डिग्री वाले और एक पार्टी के कई नेताओं के खिलाफ विशेषाधिकार हनन के मामले लंबित हैं। अगर स्पीकर उन सबसे निपट लेते हैं तो मैं अपने खिलाफ किसी भी प्रस्ताव का स्वागत करूंगी। प्रवर्तन निदेशालय के मेरे दरवाजे पर आने और अन्य लोगों द्वारा एक उद्योगपति कोयला घोटाले में एफआईआर दर्ज करने का भी इंतजार कर रही हूं।
 
साथियों बात अगर हम इसमें पूर्व भी ऐसे मुद्दे होने की करें तो, वर्ष 1951 के बाद से लोकसभा और राज्यसभा से 16 सांसदों की सदस्यता जा चुकी है। उन्हें अयोग्य ठहराया जा चुका है। पहला मामला 25 सितंबर 1951 का है। संयोग ये सबसे पुरानी बड़ी पार्टी के ही थे। उनका नाम एचजी मुदगल था। उन्हें संसद में सवाल पूछने के एवज में पैसा लेने के कारण लोकसभा से हटाया गया। उन्हें अयोग्य करार करके सदस्यता ले ली गई। तब तक देश में पहला आमचुनाव नहीं हुआ था. देश में प्रोविजनल सरकार थी।उन्हें सवाल पूछने के लिए किसी बिजनेसमैन से धन मिला था। दिसंबर 2005 में 10 लोकसभा और 1 राज्यसभा सांसद की सदस्यता की सदस्यता रद्द कर दी गई थी, इन सांसदों पर आरोप था कि इन्होंने संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लिए थे। बर्ख़ास्त सांसदों में सताधरक पार्टी के छह, बीएसपी के तीन और कांग्रेस और आरजेडी का एक-एक सांसद शामिल था।सबसे पहले राज्यसभा ने चर्चा के बाद छत्रपाल सिंह को बर्ख़ास्त करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित कर दिया। दूसरी ओर सांसदों को निष्कासन के प्रस्ताव पर लोक सभा में लंबी बहस चली थी।बाद में इस पर हुए मतदान का सत्ताधारी पार्टी ने वॉकआउट किया और उनकी अनुपस्थिति में यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हो गया।लोक सभा में यह प्रस्ताव सदन के नेता प्रणव मुखर्जी ने पेश किया। वर्तमान सत्ता धारी पार्टी ने इस प्रस्ताव पर आपत्ति जताई और कहा कि इसके लिए उचित प्रक्रिया नहीं अपनाई गई है। सदन के नेता प्रणव मुखर्जी ने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा था कि हम सभी मानते हैं कि घूस लेने के मामले में कुछ किया जाए।उनका कहना था कि भारत सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और पूरा देश इस मामले पर नज़रें गडाए हुए है।उन्होंने कहा कि हर निर्णय अदालत में नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि हमें अन्य बातों से ऊपर उठकर सदन की गरिमा को ध्यान में रखते हुए फ़ैसला लेना चाहिए। निष्कासन की जाँच कर रही पवन बंसल समिति ने मामले से जुड़े बताए जाने वाले 10 लोकसभा सदस्यों को सदन से निष्कासित करने की सिफ़ारिश की थी, बता दें कि कई सांसदों पर पैसे लेकर सवाल पूछने का आरोप लगा था।उल्लेखनीय है कि एक टेलीविज़न चैनल ने एक वीडियो टेप का प्रसारण किया था जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों को संसद में प्रश्न पूछने के लिए घूस लेते दिखाया गया था। टीवी चैनल आजतक ने मीडिया कंपनी 'कोबरा पोस्ट' के साथ मिलकर यह ख़ुफ़िया रिकॉर्डिंग की थी।इसे चैनल ने ऑपरेशन दुर्योधन' का नाम दिया था।
 
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि कैश फॉर क्वेरी इन पार्लियामेंट।वर्ष 1951 में जब देश में प्रोविजनल सरकार थी तब से अभी तक सवाल पूछने के एवज में पैसा लेना शुरू रहना दुर्भाग्यपूर्ण। दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र भारतीय संसद में सवाल पूछने के एवज में पैसा लेना दुर्भाग्यपूर्ण है।

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kishan bhavnani
कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट 
किशन सनमुख़दास भावनानी 
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