कविता क्या हुआ आज टूटा है इंसान

क्या हुआ आज टूटा है इंसान

कविता क्या हुआ आज टूटा है इंसान

क्या हुआ जो आज बिखरा है इंसान
क्या हुआ जो आज टूटा हुआ है इंसान
अरे यही बिखरना यही टूटना तो
बनाती है मजबूत तुझे है इंसान

खाई जो राह में ठोकर तूने
मिले जो जख्म अपनो से तुझे
बढ़ गए सभी छोड़ अकेला तुझे
गर छोड़ गए राह में कांटे तेरी

तू कर ना फिक्र उन कांटो की
चल निर्भय होकर ऐ इंसान
क्या हुआ आज लहू बह रहा है इंसान
बढ़ा कदम रख हौसला ऐ इंसान

चुभते गए पर बढ़ना तेरा है काम
रुकना नही है जीवन का नाम
क्या हुआ आज दुःख सह रहा ऐ इंसान
सुख दुःख जीवन की सच्चाई है इंसान

आज दिन बुरा है तो क्या हुआ
किस्मत रूठी हुई है तो क्या हुआ
कल नया सवेरा होना है इंसान
अंधेरे में उजाला होना है इंसान

तुझे हारना नहीं है इंसान
रूठी हुई किस्मत मनाना है इंसान
कर कर्म अपना निष्काम होकर
रह जा दुनिया से बेखबर होकर

तू कर मेहनत सच्ची लगन से अपनी
फिर देख तू किस्मत अपनी
देख बदलती तस्वीर अपनी
सामने देख तू मंजिल अपनी

क्या हुआ जो आज बिखरा है इंसान
क्या हुआ जो आज टूटा हुआ है इंसान

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संतोष कुंवर राव
प्रतापगढ (राजस्थान)

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