उम्मीद
जीवन की राह में
एक युद्ध सा लड़ता जाता हूं
उम्मीद बहुत ज्यादा की मुझे
हाथ में कुछ नही पाता हूं
एक युद्ध सा लड़ता जाता हूं
उम्मीद बहुत ज्यादा की मुझे
हाथ में कुछ नही पाता हूं
उम्मीदें सपनो के साथ
पाने की ललग जगाती है
आशा मनवांछित फल पाने को
आखों में घमंड भर जाती है
रेगिस्तान की सूखी मिट्टी से
नदियां का पानी चाहता हूं
उम्मीदें निर्जीव पत्थर से
प्रार्थना स्वीकृति चाहता हूं
भूखे व्यक्ति के भीतर
रोटी से प्रेम जग जाता है
नेह में सूखा इंसान कहा
इस जग में पानी पाता है
उम्मीदें चुप हो जाने से
आशा की आग बुझ जाती है
ज्वाला जब रंगत बदल पड़े
नदियां नग में खो जाती है
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गरिमा खंडेलवाल
उदयपुर
उदयपुर
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