भारतीय 'वसुधैव कुटुम्बकम' की भावना
भारतीय 'वसुधैव कुटुम्बकम' की भावना में विश्वास करते हैं
देश के युवाओं को एक सामंजस्यपूर्ण और समावेशी समाज की दिशा में प्रयास करने के लिए आगे आने की जरूरतसभी प्रकार के भेदभाव से मुक्त समाज का निर्माण नए भारत की परिकल्पना के मुख्य उद्देश्यों में से एक - एडवोकेट किशन भावनानी गोंदियागोंदिया-वैश्विक स्तरपर दुनियां ने भारत का जी-20 शिखर सम्मेलन 2023 वसुधैव कुटुंबकम देखा। दिल्ली घोषणा पत्र 2023 उसका ऐतिहासिक परिणाम भी दुनियां ने देखा। इस तरह दिनांक 21 सितंबर 2023 को देर रात्रि में परिवार की भांति एकमत होकर 214/0 मतों से नारी शक्ति वंदन विधेयक 2023 पास किया गया जो एक परिवार की भांति था। भारत एक आध्यात्मिकता और धार्मिकता का अणखुट ख़जाना है।जो भारतीय संस्कृति और सभ्यता का हजारों वर्ष पहले का इतिहास रहा है, जिनकी अदृश्य शक्ति से, कोई हमारे देश का बुरा चाहते हुए भी नहीं कर सकता, क्योंकि हमारी आध्यात्मिकता और धार्मिकता अदृश्य पूर्वक उनकी कड़ियों को तोड़ देती है!और उन्हें हैरान कर देती है कि हमारा प्लान सफल क्यों नहीं हो रहा है,उन असुर शक्तियों को मालूम नहीं कि, भारत की मिट्टी में ही संस्कृति, सभ्यता, आध्यात्मिकता और धार्मिकता प्रवृत्ति गॉड गिफ्टेड है।
साथियों हम अगर गॉड गिफ्टेड ख़जाने के उपयोग का प्रयास एक सामंजस्यपूर्ण और समावेशी समाज की दिशा में प्रयास करने की कोशिश करें तो मेरा मानना है कि, हमारे नए भारत की परिकल्पना में मुख्य उद्देश्यों में से एक इस प्रयास का घनिष्ठ सकारात्मक प्रभाव होगा! और सभी प्रकार के भेदभाव से हम मुक्त होंगे, अनेकता में एकता होगी, नागरिकों को समान अधिकार रूपी मंत्र मिलेगा।
साथियों बात अगर हम सामंजस्यपूर्ण समाज की दिशा में प्रयास की करें तो साथियों जिस तरह प्रकृति में सुव्यवस्था, सुसंगति, मौसम चक्रीयता, सामंजस्यता, अंतर्दृष्टिता है। परंतु !! उसके चक्रीयता में, मानवीय हस्तक्षेप, विरोध हम पैदा करते है, परिणाम स्वरूप! हम जलवायु परिवर्तन के रौद्र रूप में को भुगत रहे हैं। सुसंगति, सामंजस्यता तो दुनिया में संपूर्णता पैदा करता है, संबंधों में प्रगाढ़यता आती है, सामंजस्यता या सुसंगति से व्यवस्था शांति, प्रशांति समयबद्धता, श्रम संस्कृति, अच्छे संबंध देती हैं। अपेक्षित और वांछनीय परिवर्तनों को त्वरित प्रदान करते हैं। साथियों सामाजिक सद्भाव से सुसंगती का अर्थ है समाज के सदस्यों के बीच स्नेहापूर्ण, मैत्रीपूर्ण संबंधों का होना लोगों और वातावरण के साथ सद्भावपूर्व तथा सामान्य सत्ता के साथ रहने का वैदिक दर्शन
साथियों इस कथन से स्पष्ट है कि, भारतीय 'वसुधैव कुटुम्बकम' की भावना में विश्वास करते हैंजिसका अर्थ है पूरी दुनिया एक परिवार है और उन्होने हमेशा सार्वभौमिक भाईचारे का प्रचार किया है और दूसरों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की वकालत की है। यह उल्लेख करते हुए कि भारतीय सभ्यता ने हमेशा पूरी दुनिया की भलाई के लिए प्रार्थना की है,अनादि काल से, भारत ने अपने ज्ञान, कौशल और प्रथाओं को दुनिया भर के साथ साझा किया है ताकि अन्य भी लाभ उठा सकें।शून्य से योग तक, विभिन्न क्षेत्रों में भारतियों का योगदान, शेयर एंड केयर के नैतिक गुण के साथ, बहुत बड़ा रहा है।
साथियों बात अगर हम देश में कला और संस्कृति विभाग की समाज में सामंजस्य पूर्ण स्थिति देखने की करें तो,देश का कला और संस्कृति विभाग सामाजिक समरसता को सामाजिक एकीकरण और समुदायों और समाज में बड़े पैमाने पर शामिल करने की डिग्री के रूप में परिभाषित करता है। यह भी संदर्भित करता है कि व्यक्तियों और समुदायों के बीच पारस्परिक एकजुटता कितनी अभिव्यक्ति पाती है। दक्षिण अफ्रीकी संदर्भ में, सामाजिक सामंजस्य सामाजिक एकीकरण, समानता और सामाजिक न्याय के बारे में है। इसके लिए सकारात्मक संबंधों, विश्वास, एकजुटता, समावेश, सामूहिकता और सामान्य उद्देश्य को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
साथियों बात अगर हम समावेशी समाज की करें तो देश के युवाओं को समावेशी समाज को बनाने में आगे आने की जरूरत है।भारतीय संविधान में समता, स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय एवं व्यक्ति की गरिमा को प्राप्य मूल्यों के रूप में निरूपित किया गया है। हमारा संविधान जाति, वर्ग, धर्म, आय एवं लैंगिक आधार पर किसी भी प्रकार के विभेद का निषेध करता है। लोकत्रांतिक समाज की स्थापना के लिए हमारे संवैधानिक मूल्य स्पष्ट दिशानिर्देशन प्रदान करते हैं और इस प्रकार एक समावेशी समाज की स्थापना का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में बच्चे को सामाजिक, जातिगत, आर्थिक, वर्गीय, लैंगिक, शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से भिन्न देखे जाने के बजाय एक स्वत्रंत अधिगमकर्त्ता के रूप में देखे जाने की आवश्यकता है।समावेशी समाज का विकास उसमें निहित सम्पूर्ण मानवीय क्षमता के कुशलतापूर्वक उपभोग पर निर्भर करता है।समाज के सभी वर्गों की सहभागिता के बिना समावेशी समाज का विकास सम्भव नहीं हो सकता है। शिक्षा समावेशन की प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण औजार है। शिक्षा ही वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से एक बच्चा लोकत्रांतिक प्रक्रिया में अपनी भूमिका के लिए तैयारी करता है, वहीं दूसरी ओर समावेशन में बाधक तत्वों से निबटने का सामर्थ्य प्राप्त कर सकता है।
साथियों बात अगर हम हमारे भविष्य, बच्चों में समावेशन की प्रक्रिया की करें तो,बच्चों का समाजीकरण एक समान प्रक्रियाओं से होकर नहीं गुजरता, अतः समावेशन की प्रक्रिया भी एक समान नहीं रहती है। जिससे बच्चे के लिए वर्ण, जाति लिंग, न्याय एवं लोकतंत्र के नजरिए प्रभावित होते हैं। जब इस प्रकार के नजरिए को कई दृष्टियों से बल मिलता है तो ये मूल्यों में बदल जाते हैं। ये मूल्य संस्कृति में तत्पश्चात विचारधाराओं में बदलने की प्रक्रिया इसी क्रम की अगली शृंखला होती है। यह दुश्चक्र बार-बार के अनुभवों के पुर्नबलन से मजबूत होता जाता है।
साथियों इस दुश्चक्र को तोड़ने के लिए बच्चे के अनुभवों में बदलाव लाना आवश्यक होता है। साथ ही यह भी ज़रूरी है कि बदलाव लाने वाला अनुभव बहुत सशक्त होना चाहिए जिससे पुराने अनुभवों को परिवर्तित करने/बदलने में मदद मिल सके। इस प्रकार बच्चे को परिवार, विद्यालय एवं समाज से ऐसे समावेशी अनुभव, समावेशी व्यवहार, समावेशी विश्वास एवं समावेशी संस्कृति उपलब्ध कराई जानी चाहिए जिससे वह एक ऐसे लोकतांत्रिक नागरिक के रूप में विकसित हो सके जो समावेशन के मूल्यों में दृढ़ आस्था रखता हो।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि देश में युवाओं को एक सामंजस्यपूर्ण और समावेशी समाज की दिशा में प्रयास करने के लिए आगे आने की जरूरत है। तथा सभी प्रकार के भेदभाव से मुक्त समाज का निर्माण नए भारत की परिकल्पना के मुख्य उद्देश्यों में से एक है।