पत्रकारिता ज़बरदस्त राजनीतिक मुद्दा बना

पत्रकारिता ज़बरदस्त राजनीतिक मुद्दा बना !

पत्रकारिता ज़बरदस्त राजनीतिक मुद्दा बना
राजनीतिक रीत सदा चली आई - जिसकी लाठी उसी ने भैंस पाई

ए बाबू ! जनता जनार्दन समझदार है! इलेक्ट्रॉनिक मीडिया डिबेट में पक्ष-विपक्ष के प्रवक्ताओं को मिल रहे वज़न की रैंकिंग जनता करती है!
हर शासनकाल में सत्ता केंद्र अनुकूल, विचारों का रुझान दर्शकों और जनता ने महसूस किया है, जो स्वाभाविक है जिसको रेखांकित करना ज़रूरी है - एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया
गोंदिया - वैश्विक स्तरपर एक बात पर हर देश सहमत है कि प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया हैजिसका अंदाजा शायद लोकतंत्र के सबसे बड़े और मज़बूत गढ़ में लगाया जाना आसान है, जहां स्वाभाविक रूप से यह देखा जाता है कि हर शासनकाल में सत्ता केंद्र के अनुकूल विचारों का रुझान हर मीडिया चैनल पर दर्शक और जनता द्वारा महसूस किया जाता है, जो स्वाभाविक भी है, जिसे रेखांकित करना ज़रूरी है, क्योंकि अगर इतना बड़ा मीडिया हाउस चलना है तो बुराई अनैतिक व्यवहारों इत्यादि के खिलाफ लड़ाई करते हुए, कुछ सत्ता केंद्र की ओर रुझान भी जनता महसूस करती है टीवी चैनलों पर करीब करीब हर मीडिया चैनल पर हम अक्सर देखते हैं कि अनेक मुद्दों पर अनेक पार्टियों के प्रवक्ताओं को आमंत्रित कर उनसे उस मुद्दे पर डिबेट किया जाता है। परंतु सत्ता केंद्र रुझान वाले प्रवक्ताओं को कुछ बैकिंग मिलती है यह हम साफ़ महसूस करते हैं इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं होता है। क्योंकि दर्शक और जनता जनार्दन समझती है कि यह उनके कर्तव्य, मज़बूरी या नीति का होना स्वाभाविक है।मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैं करीब 25 से अधिक वर्षों से टीवी चैनलों पर इस प्रकार के मुद्दों पर डिबेट को देखता हूं और पक्ष विपक्ष के प्रवक्ता मेहमानों की बातों को किस तरह कितना वज़न मिलता है, समझ में आ जाता है, अगर किसी प्रवक्ता का आर्गुमेंट रूपी तीर निशाने पर लग गया है तो पक्ष-विपक्ष अनुसार उसको कैसे मोड़ना है, इस कला का एंकर द्वारा खूब प्रयोग होता है, यही कारण है कि दिनांक 14 सितंबर 2023 को विपक्षी महागठबंधन आई.एन.डी.आई.ए ने 14 पत्रकारों या यूं कहें कि मीडिया हाउसों पर अपने प्रवक्ताओं को नहीं भेजने का निर्णय लिया है। जिसके बारे में देर शाम से ही डिबेट शुरू हो गया है, जिसपर सत्ताधारी नेताओं मंत्रियोंअधिकृत प्रवक्ताओं और विपक्षी नेताओं के खूब बयान आ रहे हैं जिन्हें जनता जनार्दन देख रही है। बता दें उधर दिनांक 15 सितंबर 2023 को एक पत्रकारिता विश्वविद्यालय में माननीय उपराष्ट्रपति द्वारा अपने संबोधन में अनेक विचारों सहित खोजी पत्रकारिता की विलुप्तता की बात भी कहीं। इधर यह सब देखकर जनता कह रही है, ए बाबू ! जनता जनार्दन समझदार है! इलेक्ट्रॉनिक मीडिया डिबेट में पक्ष-विपक्ष के प्रवक्ताओं को मिल रहे वज़न की रैकिंग जनता जनार्दन करती रहती है। चूंकि 14 पत्रकारों पर बैन का मामला मीडिया में खूब उछल रहा है इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, हर शासनकाल में सत्ता के केंद्र अनुकूल विचारों का रुझान दर्शकों और जनता ने महसूस किया है जो स्वाभाविक बात है।
साथियों बात अगर हम आई.एन.डी.आई.ए द्वारा 14 पत्रकारों पर प्रतिबंध की करें तो, बता दें कि दिल्ली में हुई विपक्षी गठबंधन की समन्वय समिति की बैठक में, कुछ एंकर्स के नाम जारी किए गए हैं। इन्हीं एंकर्स के शो में विपक्षी गठबंधन के नेता शामिल होंगे और अपना पक्ष रखेंगे। विपक्षी गठबंधन द्वारा कुछ टीवी चैनल्स का पूरी तरह से बहिष्कार किया जाएगा तो कुछ चैनल्स के सिर्फ एंकर्स का बहिष्कार किया जाएगा। विपक्षी दलों के नेता अक्सर कुछ टीवी एंकर्स पर सत्ताधारी पार्टी के समर्थन का आरोप लगाते रहे हैं। देश के 14 जाने-माने टीवी एंकरों के शोज का बहिष्कार करने का फैसला किया है। समन्वय समिति की बुधवार को हुई बैठक में चर्चा हुई कि कुछ न्यूज एंकर्स विपक्षी दलों की आवाज दबाने की कोशिश करते हैं, इसलिए उनका बायकॉट किया जाए। इस प्रस्ताव पर गठबंधन दलों ने सहमति जताई। इसी प्रस्ताव पर आगे बढ़ते हुए गठबंधन ने गुरुवार को 14 एंकरों की लिस्ट जारी कर दी। बड़ी पार्टी मीडिया सेल के अध्यक्ष ने सोशल मीडिया एक्स पर इसकी जानकारी दी है। उन्होंने लिखा है, आज दोपहर बाद इंडिया मीडिया कमिटी की हुई बैठक में निम्नलिखित फैसला लिया गया। उन्होंने इस टिप्पणी के साथ गठबंधन की तरफ से जारी बयान की कॉपी भी पोस्ट की है। इसमें इंडिया मीडिया कमिटी का फैसला शीर्षक के नीचे लिखा है,14 सितंबर की तारीख से जारी बयान में कहा गया है, इंडिया समन्वय समिति की 13 सितंबर, 2023 को हुई बैठक में लिए गए निर्णय के मुताबिक इंडिया में शामिल दल इन एंकरों के शोज में अपने प्रतिनिधि नहीं भेजेंगे। ध्यान रहे कि बड़ी पार्टी महासचिव ने बुधवार को ही कहा था कि विपक्षी गठबंधन की समन्वय समिति ने मीडिया से संबंधित कार्य समूह को उन एंकरों के नाम तय करने के लिए अधिकृत किया है, जिनके शो पर विपक्षी गठबंधन का कोई भी सदस्य अपने प्रतिनिधियों को नहीं भेजेगा।
साथियों बात अगर हम 14 पत्रकारों पर बैन की पक्ष द्वारा कड़ी प्रतिक्रिया के जवाब में विपक्ष के जवाब की करें तो, फैसले को सही ठहराते हुए, एक्स पर एक पोस्ट डालकर कुछ पत्रकारों पर पक्षपात करने का आरोप लगाया। उन्होंने लिखा, पत्रकार अपनी आचार संहिता के खिलाफ जाने को मजबूर हो रहे हैं, ताकि उनके मालिकों के व्यावसायिक और राजनीतिक हितों को पूरा किया जा सके। बार-बार, भारत के कॉर्पोरेट स्वामित्व वाले मीडिया ने युवा को इस शासन और उसके गुर्गों के लिए उनकी स्पष्ट और निडर विरोध के लिए अनुचित रूप से निशाना बनाया है। अब, ईमानदार रिपोर्टरों को युवा नेता को बदनाम करने के लिए पक्षपाती ट्रोल बनने के लिए मजबूर किया जा रहा है। इन कठिन समयों में साहस के लिए ईमानदार पत्रकारों को सराहा जाना चाहिए। लेकिन मीडिया के दिग्गज, जिनमें से एक पीएम के सबसे अच्छे दोस्त हैं, पूरी तरह से उनके धुन पर नाच रहे हैं। इस भ्रष्ट, विभाजनकारी और समझौता परस्त मीडिया के हिस्से को जनहित का दुश्मन, पत्रकारिता के नेक पेशे और भारतीय लोकतंत्र पर धब्बा माना जाना चाहिए। गठबंधन ने कहा है कि उसने नफ़रत भरे न्यूज़ डिबेट चलाने वाले इन टीवी एंकरों के कार्यक्रमों का बहिष्कार का फ़ैसला किया है। इस फ़ैसले का एलान करते हुए बड़ी पार्टी प्रवक्ता ने कहा, हर शाम पाँच बचे कुछ चैनलों पर नफ़रत का बाज़ार सज जाता है। पिछल नौ साल से यही चल रहा है। अलग-अलग पार्टियों के कुछ प्रवक्ता इन बाज़ारों में जाते हैं कुछ एक्सपर्ट जाते हैं, कुछ विश्लेषक जाते है, लेकिन सच तो ये है कि हम सब वहां उस नफ़रत बाज़ार में ग्राहक के तौर पर जाते हैं।उन्होंने कहा,हम नफ़रत भरे नैरेटिव को मंज़ूरी नहीं दे सकते. यह नैरेटिव समाज को कमज़ोर कर रहा है।अगर हम समाज में नफ़रत फैलाते हैं तो यह हिंसा का भी रूप ले लेता है। हम इसका हिस्सा नहीं बनेंगे। न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एंड डिज़िटल एसोसिएशन (एनबीडीए), कुछ न्यूज़ एंकरों और सत्ता धारी पक्ष ने इंडिया गठबंधन के इस फ़ेसले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है।
साथियों बात अगर हम माननीय उपराष्ट्रपति द्वारा एक पत्रकारिता विश्वविद्यालय में दिनांक 15 सितंबर 2023 को संबोधन की करें तो उन्होंने कहा, पत्रकार प्रेस की स्वतंत्रता के अंतिम प्रहरी हैं। उनका बहुत बड़ा दायित्व है, उनके कंधों पर बहुत बड़ा भार है। चिंता का विषय है, चिंतन का विषय है, मंथन का विषय है और परेशानी का विषय है कि प्रहरी कुंभकरण मुद्रा और निद्रा में है। सभी जानते हैं पत्रकारिता व्यवसाय नहीं है, समाज सेवा है। मेरे से ज़्यादा आप जानते हैं पर बड़े अफसोस के साथ कह रहा हूं बहुत से लोग यह भूल गए हैं। पत्रकारिता एक अच्छा व्यवसाय बन गया है, शक्ति का केंद्र बन गया है, सही मानदंडों से हट गया है, भटक गया है। इस पर सबको सोचने की आवश्यकता हैपत्रकार का काम क्या है? निश्चित रूप से किसी राजनीतिक दल का हितकारी होना तो नहीं है, पत्रकार का यह काम तो कभी नहीं हो सकता कि वह ऐसा काम करें कि एजेंडा सेट हो, कोई पर्टिकुलर नॉरेटिव चले, यह तो नहीं होना चाहिए। मैं खुलकर बात इसलिए कर रहा हूं कि एशिया और देश में, इस संस्थान का बड़ा नाम है। जिस व्यक्ति के नाम पर है, उनकी रीढ़ की हड्डी बहुत मज़बूत थी। इसीलिए मैं भी हिम्मत कर रहा हूं, ऐसी बातें दिल से कहूं आपके समक्ष।प्रेस की स्वतंत्रता तभी हो सकती है, जब प्रेस जिम्मेवार हो, सकारात्मक समाचारों को महत्व देने की ज़रूरत है। मेरा आपसे यह आग्रह रहेगा कि मीडिया सजग है तो देश गदगद होगा। कुरीतियों को दूर करने में आपका बहुत बड़ा योगदान है। हमारे संविधान में मौलिक अधिकार है पर मौलिक दायित्व भी है, डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स भी हैं। मीडिया ठान ले तो देश में सड़क पर अनुशासन सर्वोपरि होगा। आप लोगो की ताकत बहुत ज़्यादा है, आपको सिर्फ समझने की आवश्यकता है। उनको रास्ता आप दिखाएंगे, जिनको रोशनी की आवश्यकता है।पत्रकारिता की वर्तमान दशा और दिशा गहन चिंता और चिंतन का विषय है। हालात विस्फोटक है, अविलंब निदान होना चाहिए। प्रजातांत्रिक व्यवस्था का आप चौथा स्तंभ है। सबसे कारगर साबित हो सकते हैं, कार्यपालिका हो, विधायिका हो, न्यायपालिका हो, सबको आप अपनी ताकत से सजग कर सकते हैं, कटघरे में रख सकते हैं। बट थिस वाचिंग दोएस डॉग इस वाचिंग थे इंटरेस्ट ओंन ए कमर्शियल पैटर्न, यह ठीक नहीं है, जब आप जनता के वॉचिंग डोग हो तो किसी व्यक्ति का हित आप नहीं कर सकते, आप सत्ता का केंद्र नहीं बन सकते। सेवा भाव से कम करना होगा। और आवश्यकता इसमें क्या है? सच्चाई, सटीकता और निष्पक्षता इनके बिना कुछ होगा नहीं।जिनका काम सबको आईना दिखाने का है, हम ऐसे हालात में पहुंच गए हैं कि हमें उनको आइना दिखाना पड़ रहा हैI यह चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि पत्रकार का काम किसी राजनीतिक दल का हितकारी होना नहीं है। न ही पत्रकार का यह काम है कि वह किसी सेट एजेंडा के तहत चले या कोई विशेष नैरेटिव चलायेसकारात्मक समाचारों को महत्व देने की ज़रूरत है पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता तभी हो सकती है, जब प्रेस जिम्मेवार हो। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पत्रकार अगर विकास को अपने रडार पर रखेगा तो समाज में जो सकारात्मक बदलाव आ रहा है, उसमें निश्चित रूप से गति आएगी और विकास के मामले में, राजनीतिक चश्मे को निकाल कर छोड़ देना चाहिए। उन्होंने कहा कि खबर वह है जिसे कोई छुपाना चाहता है, जिससे लोग डरते हैं कि सामने ना आ जाए। 80 के दशक में खोजी पत्रकारिता थी। वह बाद में पता नहीं कहां खो गई, कहां भटक गई खोजी पत्रकारिता, लगभग विलुप्त हो चुकी है। उन्होंने टीवी डिबेट में असंसदीय भाषा के प्रयोग पर भी चिंता जाहिर की। भ्रष्टाचार को समाप्त करने में पत्रकारों की बड़ी भूमिका बताते हुए उन्होंने कहा कि पहले पत्रकारिता एक मिशन थी, एक उद्देश्य था समाज का हित था, पर अब टॉप आ गयी है सनसनीखेज रिपोर्टिंग। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया किरचनात्मक सकारात्मक योगदान ही महान भारत को 2047 में विश्व गुरु बनाएगा, 2047 में निश्चित रूप से भारत दुनियां के शीर्ष पर होगा। उन्होंने छात्र-छात्राओं से कहा कि हमें गर्व होना चाहिए कि हम भारतीय हैं, हमें देश को सर्वोपरि रखना चाहिए।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि पत्रकारिता ज़बरदस्त राजनीतिक मुद्दा बना!राजनीतिक रीत सदा चली आई - जिसकी लाठी उसी ने भैंस पाई।ए बाबू ! जनता जनार्दन समझदार है! इलेक्ट्रॉनिक मीडिया डिबेट में पक्ष-विपक्ष के प्रवक्ताओं को मिल रहे वज़न की रैंकिंग जनता करती है! हर शासनकाल में सत्ता केंद्र अनुकूल, विचारों का रुझान दर्शकों और जनता ने महसूस किया है, जो स्वाभाविक है जिसको रेखांकित करना ज़रूरी है।

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kishan bhavnani
कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट 
किशन सनमुख़दास भावनानी 

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