रक्षाबंधन पर कविता

 रक्षाबंधन

रक्षाबंधन  पर कविता

बहन इक भाई के जीवन में रिश्ते कई निभाती है,
बन के साया मां की तरह हर विपदा से बचाती है,
कभी हमराज़ बन उसके राज़ दिल में छिपाती है,
जुगनू बनके अंधेरों में सफ़र आसां बनाती है !!

बहन जब भाई के हाथों में राखी बांधती है तो,
दुआ बस एक ही अपने प्रभू से मांगती है वो,
सलामत हो सदा भैया ना हो कोई कष्ट जीवन में,
बलाएं उसकी लेने खुशियां खुद की वारती है सो !!

तिलक माथे पे कर उसकी जीत की भावना भाती है,
अक्षय सुख समृद्धि के भाव से अक्षत लगाती है,
श्रीफल, कुंकुम, अक्षत, जल, आरती और राखी,
मंगल हो भाई का शुभ द्रव्यों से थाल सजाती है!!

लडकपन की सभी यादें वो बचपन की हर शैतानी,
पहले तोहफा तभी बंधेगी राखी की वो मनमानी,
छूआकर मिठाई पूरी खाने की वो ज़िद करना,
ना मानूं बात इक भी तो बहाना आंखों से पानी!

अग़र हो दूर ये त्यौहार फिर खाली सा रहता है,
प्रेम का इक ही आंसू दोनों की आंखों से बहता है,
बहन की भेजी मौली भी बंधी पूरे साल रहती है,
कि हूं मजबूत सबसे, कच्चा सा धागा ये कहता है !

जिम्मेदारियां पूरी करने में मशगूल हों चाहे,
रहें न दुनिया में तेरी नज़र से दूर हों चाहे,
मना लेना याद करके मुझे हर बार तुम ये दिन,
तुम्हारी थाल में राखी इक मेरे नाम की हों चाहे!!

About author 

Veerendra Jain, Nagpur
Veerendra Jain, Nagpur 
Veerendra Jain, Nagpur
Instagram id : v_jain13

Comments