कभी नाराज ना होना
जग रूठै तो रूठने दे,पर तुम नाराज न होना।
जो चाहो कहना महबूब,
पर तुम नाराज न होना।।
तुम रूठोगी मैं मनाऊंगा,
मैं रूठ जाऊँ तुम्हें मनाना है।
जो कहना हो कह देना तुम,
पर तुम नाराज न होना।।
चाहत नहीं जिंदगी हो तुम,
मेरी नितप्रति बन्दगी हो तुम।
दिल में शामिल हो इस कदर,
हरपल आवाज देती हो तुम।।
मैं तुम्हारा ही हूं तुम मेरी हो,
मेरे लिए इन्द्र की ज्यूँ परी हो।
हरपल मुझे अहसास है तेरा,
मुझे देखकर तुम होती हरी हो।।
मुझे कभी तुम टूटने ना देना,
मुझे कभी तुम घूटने ना देना।
जब सब छोड़ जाये साथ मेरा,
तब भी तुम साथ मेरा देना।।
मुझसे कभी नाराज न होना तुम,
मुझे जान से भी प्यारी हो तुम।
पृथ्वीसिंह' सब भूल सकता है,
पर तुम्हें कभी नहीं भूल सकता।।
इसलिए मेरी महबूबा
तुम कभी नाराज न होना...
तुम कभी नाराज न होना...
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© कवि पृथ्वीसिंह बैनीवालकवि लेखक, पत्रकार, साहित्यकार
#313, सेक्टर 14, हिसार - 125001 (हरियाणा)
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