State Emblem of India (Prohibition of Improper Use) Act 2005 Vs INDIA

भारत का राज्य प्रतीक (अनुचित उपयोग व निषेध) अधिनियम 2005 बनाम आई.एन.डी.आई.ए, टैग लाइन जीतेगा भारत

State Emblem of India (Prohibition of Improper Use) Act 2005 Vs INDIA
2024 सियासी की लड़ाई अब आई.एन.डी.आई.ए बनाम भारत पर आई - प्रतीक अधिनियम 2005 अंतर्गत रिपोर्ट लिखाई
देश का नाम और महागठबंधन का नामआई.एन.डी.आई.ए एक ही है पर खिंचाई - तर्क वितर्क पर डिबेट छाई - जनता ने चुप्पी दिखाई - एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया
गोंदिया - वैश्विक स्तरपर एक ओर जहां डिजिटल भारत की गाथाएं गाई जा रही है,भारत की प्रतिष्ठा रुतबे नेतृत्व की धमक अनेक विकसित देशों से लेकर करीब करीब सभी वैश्विक मंचों पर भी महसूस की जा रही है, जो काबिले तारीफ है। परंतु जैसेजैसे मिशन चुनाव 2024 की छाया पास आती जा रही है, भारत में चुनावी रंगो को जनता महसूस कर रही है जिसका रंग हमें 20 जुलाई 11 अगस्त 2023 से शुरू हुए संसद के मानसून सत्र में भी दिखाई देगा परंतु भारतीय जनता जनार्दन को 19 जुलाई 2023 से शुरू हुए इंडिया बनाम भारत का तर्क वितर्क समझने की ज़रूरत महसूस हो रही है, क्योंकि बेंगलुरु में 18-19 जुलाई 2023 को 26 विपक्षी महागठबंधन का नाम इंडिया और सत्ताधारी पक्ष के 38 पार्टियों के गठबंधन की गूंज सुनाईदी जो अब प्रिंटइलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया पर डिबेट बहस वार्तालाप का हिस्सा बन चुकी है। टीवी चैनलों पर इसी विषय पर डिबेट हो रही है और मामला दिल्ली के एक पुलिस स्टेशन तक राज्य प्रतीक (अनुचित उपयोग वनिषेध) अधिनियम 2005 तथा राज्य प्रतीक (उपयोग का विनियमन) नियम 2007 के तहत पहुंच गया है। वहीं कई नेताओं के ट्विटर हैंडल से इंडिया नाम हटाकर भारत किया जा रहा है तो विपक्ष द्वारा कई भारतीय योजनाओं में इंडिया शब्द के नाम गिनाए जा रहे हैं। चूंकि अब 2024 की चुनावी लड़ाई में नई सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला जीत के कैलकुलेशन माइंड का मैथमेटिक्स से लगाया जा रहा है तथा भारत के राज्य प्रतीक अधिनियम 2005 और प्रतीक नियम 2007 की यहां एंट्री हुई है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, देश का नाम और महागठबंधन का नाम इंडिया एक ही है पर खिंचाई, तर्क वितर्क पर डिबेट छाई, जनता ने चुप्पी दिखाई।
साथियों बात अगर हम महागठबंधन की मीटिंग के रिजल्ट की करें तो, बता दें कि विपक्ष के 26 दलों की बेंगलुरु में हुई बैठक में मंगलवार को इस गठबंधन के लिए इंडिया नाम चुना गया है। वहीं विपक्षी दलों ने 2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इसके लिए जीतेगा भारत टैगलाइन को चुना है, इस नए गठबंधन का नेता और चेहरा कौन होगा, इसको लेकरफिलहाल तस्वीर साफ नहीं है, लेकिन विपक्षी दलों की बैठक में बड़ी पार्टी अध्यक्ष ने यह जरूर कहा कि उनकी पार्टी का सत्ता या पीएम पद में कोई दिलचस्पी नहीं है।वहीं जीतेगा भारत टैगलाइन भी चुना है। हालांकि, इस गठबंधन का नेता और चेहरा कौन होगा, इस पर फिलहाल किसी प्रकार की तस्वीर साफ नहीं है। मीटिंग में तय हुआ है कि 11 सदस्यों की एक कॉर्डिनेशन कमेटी बनेगी, अब इस गठबंधन की अगली मीटिंग मुंबई में होगी और दिल्ली में एक सचिवालय बनाया जाएगा आई.एन.डी.आई.ए गठबंधन की तरफ से किसी को 2024 के लिए अपना पीएम कैंडिडेट नहीं बताया गया है। हालांकि, मैडम को आई.एन.डी.आई.ए का चेयरपर्सन और बिहार सीएम को इसका संयोजक बनाने का सुझाव दिया गया है।
साथियों बात अगर हम महागठबंधन के निर्धारित हुए इंडिया नाम पर अब एक ट्विस्ट आने की करें तो दिल्ली के रहने वाले एक वकील ने पुलिस को दी अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि बड़ी पार्टी समेत 26 राजनीतिक दलों द्वारा अपने गठबंधन का नाम इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस) रखना एंबलम एक्ट-2022 (प्रतीक अधीनियम) का उल्लंघन है और इसलिए ये सभी दल इस अधिनियम कीधारा-5 के उल्लंघन के दोषी हैं, नियमों का हवाले देते हुए शिकायत में लिखा गया है कि इस अधिनियम के सेक्शन 3 के तहत कुछ नामों का इस्तेमाल वर्जित है। शिकायत में प्वाइंट 6 का भी जिक्र है, लिखा है कि इसके मुताबिक, किसी भी शख्य द्वारा यूनियन ऑफ इंडिया और इंडिया नाम का इस्तेमाल वर्जित है,आगे लिखा है कि गठबंधन का नाम आई.एन.डी.आई.ए रखकर 26 पार्टियों ने एक्ट के सेक्शन 3 का उल्लंघन किया है, इसलिए उनको एक्ट के सेक्शन 5 के तहत सजा होनी चाहिए, इसमें दोषी पाए जाने पर 500 रुपये का जुर्मना लग सकता है। इस अधिनियम का उद्देश्य प्रतीकों, नामों या चिह्न के इस तरह के उपयोग को रोकना है जिससे लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचती हो या उनका अपमान हो। इसलिए दिल्ली के बाराखंभा रोड पुलिस स्टेशन में इस गठबंधन में शामिल सभी 26 राजनीतिक दलों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई। इस अंग्रेजी में एम्बलम एक्ट का पूरा नाम है, द एम्बलम एक्ट ऑफ इंडिया, प्रोहिबिशन एंड प्रॉपर एक्ट यूज 2005, जो 1950 से था, पर 2005 में इसे संशोधित-परिवर्द्धित किया गया. इस एक्ट में पूरी तरह साफ है कि किन नामों का आप इस्तेमाल कर सकते हैं, किनका नहीं? किन चिह्नों का इस्तेमाल कर सकते हैं, किनका नहीं और जो नाम आप इस्तेमाल नहीं कर सकते, उसमें एक नाम भारत' (इंडिया) भी है, अगर कोई पॉलिटकल पार्टी या अलायंस इस नाम का इस्तेमाल करती है, तो वह चिंता का विषय है. एम्बलम एक्ट की परिभाषा में यह साफ लिखा है कि एम्बलम का मतलब है, जैसा राज्य में वर्णित है, उसकी धरा 3 कहती है कि कोई भी दूसरा पक्ष वह नाम नहीं रख सकता, जिससे राज्य द्वारा प्राधिकृत चिह्नों की व्याप्ति हो। अब मान लीजिए, अगर जैसे ही कोई संस्था या अलायंस ऐसा नाम रखती है तो यह धारणा बन सकती है कि यह तो भारत सरकार खुद है, जब ऐसी अवधारणा जाएगी, तो फ्री और फेयर इलेक्शन करवाना शायद मुश्किल होगा इसीलिए भारत के चुनाव आयोग की यह ड्यूटी बनती है कि वह इस प्रथा को रोके। हम इंडिया नाम के आगे या पीछे कुछ और जोड़कर नाम बना सकते हैं। जैसे कांग्रेस का पूरा नाम है, इंडियन नेशनल कांग्रेस या भारतीय जनता पार्टी बीजेपी का पूरा नाम है। उसमें भारत भी है, लेकिन उसके आगे और पीछे भी है। सीधा इंडिया नाम एब्रीवियेशन के आधार पर अगर बना लेंगे, तो ये गलत होगा, यह वैधानिक तौर पर शायद गलत है? और इसे चुनाव आयोग या कोर्ट को स्वतः संज्ञान लेकर रोकना चाहिए? ऐसे तो फिर कल को कोई दल भारत नाम रख ले, कोई हिंदुस्तान भी रख ले और हम क्या अपने देश के नामों से ही दल बनाकर लड़ते रहेंगे?जो भी यह नहीं समझ रहे हैं, जान लें कि यह इम्प्रोपर यूज के अंतर्गत आता है। एम्बेलम एक्ट में ट्रेडमार्क की भी बात है। आम जनता अगर इस शब्द को सुनेगी कि तो उसके मन में साफ होना चाहिए कि बात किसकी हो रही है? अभी इन्होंने जो नाम रखा है, कूटाक्षरों के रूप में- आई,एन,डी,आई,ए- वह तो सीधे इंडिया की ही प्रतीति करता है, तो वोटर यह सोच सकता है कि वह इंडिया यानी देश के खिलाफ वोट क्यों करे?, इससे फ्री एंड फेयर एलेक्शन पर भी असर पड़ सकता है। यह पीपल्स रिप्रजेंटेशन एक्ट के भी खिलाफ है हो सकता है? इसलिए यह चुनाव आयोग की भी जिम्मेदारी है? पहले इस गठबंधन का नाम इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इन्क्लूसिव एलायंस’ (इंडिया) रखने का विचार था, लेकिन कुछ नेताओं का तर्क था कि ‘डेमोक्रेटिक’ शब्द रखने से भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस’ (एनडीए) का भाव आता है, इसके बाद डेमोक्रेटिक’ के स्थान पर डेवलपमेंटल किया गया।
साथियों बात अगर हम भारत और इंडिया पर बयानों की करें तो, असम के सीएम ने लिखा, हमारा सभ्यतागत संघर्ष इंडिया और भारत के इर्द-गिर्द केंद्रित है. अंग्रेजों ने हमारा नाम इंडिया रखा और बड़ी पार्टी ने इसे सही मान लिया, हमें खुद को इस औपनिवेशिक विरासत से मुक्त कराना होगा। हमारे पूर्वज भारत के लिए लड़े और हम भारत के लिए काम करते रहेंगे। भारत से हजारों साल पुरानी सभ्यता कनेक्ट होती है पुरानी सभ्यता के ग्राहक सनातन से डायरेक्ट रिश्ता संस्कृति से जुड़ा हुआ है।
साथियों बात अगर हम इंडिया और भारत के रिएक्शन की करें तो, यह दोधारी तलवार है, अगर इस पर मुकदमेबाजी हुई है तो उससे पब्लिसिटी भी मिलेगी, लेकिन वह निगेटिव भी हो सकती है। दरअसल, पिछले 8-10 साल में विपक्ष की तरफ से पहली बार ऐसा कुछ आया है, जिसपर सरकार को रिएक्शन के मोड में आना पड़ा है।इंडिया या भारत एक देश का नाम है और इस पर प्रतिक्रिया तो आएगी, देखना है कि विपक्षी इसका फायदा उठा पाती है या नहीं? कानून ने बहुत दूर तक की सोच रखी है, ऐसा कोई भी मामला हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में आएगा तो वह ट्रेडमार्क के अंदर आ सकता है। देखा जाता है कि दो शब्द जो एक जैसे ही लिखे और सुने जाते हैं, क्या आम जनता उनमें फर्क कर पाती है या भ्रमित होती है, तो जज जब देखेंगे कि देश का नाम और गठबंधन का नाम भी -आई, एन, डी,आई,ए-ही है, तो वह ट्रेडमार्क इंफ्रिंजमेंट हो सकता है।भारत का सबसे बड़ा ट्रेडमार्क तो इसका नाम ही है जिस को रेखांकित किया जा सकता है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत का राज्य प्रतीक (अनुचित उपयोग व निषेध) अधिनियम 2005 बनाम आई.एन.डी.आई.ए,टैग लाइन जीतेगा भारत।2024 सियासी की लड़ाई अब आई.एन.डी.आई.ए बनाम भारत पर आई - प्रतीक अधिनियम 2005 अंतर्गत रिपोर्ट लिखाई देश का नाम और महागठबंधन का नाम आई.एन.डी.आई.ए एक ही है पर खिंचाई - तर्क वितर्क पर डिबेट छाई - जनता ने चुप्पी दिखाई।

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कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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किशन सनमुख़दास भावनानी 
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