कविता -जीभ|ज़बान | kavita :jeebh | jaban

कविता -जीभ|ज़बान | kavita:jeebh | jaban

आवाज़ की तेरे मैं साथी,
स्वाद से कराती तेरी पहचान।
चाहे हो भोजन या फिर रिश्ते,
मेरा महत्त्व न कम तू मान।
हूँ जिव्हा तेरी, मैं बन्दे,
तेरे बोल को, मैं बल देती।
क्या मीठा,खट्टा,खारा कड़वा,
सभ में हूँ, भेद बताती।
केवल भोजन के स्वाद, तक न सिमित मैं,
तेरे व्यक्तित्व के, भाव भी बताती।
जैसे शब्दों का, प्रयोग करे जीवन में ,
वही 'ज़बान' तेरी, है कहलाती
'प्रतिबद्धता' की प्रतिक मैं
जिससे जुड़ा होता, तेरा स्वाभिमान।
गर मुकर गए, मुझसे तुम तो,
कम हो जाता हैं तुम्हारा मान।

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नंदिनी लहेजा | Nandini laheja
नंदिनी लहेजा
रायपुर(छत्तीसगढ़)
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
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