जाने किसने...
जाने किसने गंध बिखेरी, मेरे मानस दर्पण में।।
यादों के आँगन में कोई ,चमक रहा चंदा बनकर।
रातें जब होती अँधियारी, बन जाता वो ही दिनकर।।
साँस-साँस पर नाम मीत का, लेती ह्रदय समर्पण में।
जाने किसने गंध बिखेरी, मेरे मानस दर्पण में।।
चंदन जैसा शीतल है वो, गंगाजल सा पावन है।
शुष्क धरा पर वही बरसता, बनकर प्रेमिल सावन है।।
नयन निहारें अब तो मेरे, उस साथी को कण-कण में।
जाने किसने गंध बिखेरी, मेरे मानस दर्पण में।।
विषधर जैसा सारा ही जग, वही अमी का प्याला है।
विरह वेदना में यादों से, हमने हृदय संभाला है।।
वही प्रेरणा बनकर पथ की, जीत दिलाता है रण में ।
जाने किसने गंध बिखेरी, मेरे मानस दर्पण में ।।
उसके इन पंकज नैनों में, प्रेम भाव का सागर है।
मूक प्रेम करता नित वाचन , छलकी सी हिय गागर है।।
इत्र बसी है उसके तन की,इस सावन के वर्षण में।
जाने किसने गंध बिखेरी, मेरे मानस दर्पण में।।
जनपद बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश
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