संबंधों को समझने से ही प्यार सजीव रहता है
समय के साथ सभी जगह बदलाव आने के साथ संबंधों में भी बदलाव आता है। विवाह के पहले हो या विवाह के बाद, समय के साथ तमाम बदलाव आता ही है और इन बदलावों को स्वीकार कर लेने में ही बुद्धिमानी भी है। मनुष्य को अमुक चीजों को पकड़े रहने की आदत होती है। अच्छा समय हो या अच्छे संबंध, वह हमेशा इन्हें पकड़े रहने की कोशिश करता है। पर समय तो रेत जैसा होता है। वह कभी किसी की मुट्ठी में नहीं बंधता। इसे जितना ही पकड़ने की कोशिश की जाएगी, वह उतनी ही तेजी से हाथ से सरकने लगता है। ऐसा ही कुछ संबंधों के मामले में भी है। संबंध जो सचमुच में आप के लिए नहीं बना, उसे पकड़े रखने का प्रयास दुखद ही साबित होगा। ऐसे संबंधों के बारे में थोड़ी बातचीत करनी है,जो टॉक्सिक हो चुके हैं।ज्यादातर ऐसे टॉक्सिक संबंधों में दो में से एक व्यक्ति अधिक जुड़ाव वाला होता है और एक व्यक्ति अल्हड़। दो व्यक्ति किसी न किसी कारण एक दूसरे से आकर्षित हो कर नजदीक आने की कोशिश करते हैं। शुरुआत में तो सब कुछ अच्छा होता है। एक दूसरे के बगैर एक मिनट भी बिताना मुश्किल होता है। चाहे जितना भी काम क्यों न हो, बीच-बीच में एक दूसरे की आवाज सुन लेने की आदत, व्यस्तता, फिर भी मैसेज का जवाब तुरंत देने की आदत और ऐसे ही कितने सुंदर क्षणों के बाद किसी कारणवश दोनों में से एक व्यक्ति का व्यवहार बदलने लगता है, वह व्यक्ति अपनी व्यस्तता का बहाना बना कर दूसरे व्यक्ति से थोड़ी दूरी बनाने लगता है तो समझ लेना चाहिए कि संबंध पूरे होने की कगार पर आ गए हैं। क्योंकि यहां खींच-पकड़ कर या जोर-जबरदस्ती करने से बात सुधरने के बजाय बिगड़ती ही जाती है। कोई व्यक्ति आप के साथ पहले की तरह नहीं रह रहा, आप से दूर भाग रहा है तो समझ लीजिए कि उसे रोकने का कोई मतलब नहीं रह जाता। जाने वाले व्यक्ति को जबरदस्ती रोकने से संबंध में टॉक्सिकनेस बढ़ने से विशेष दूसरा कुछ नहीं होता। समझ लीजिए कि जो व्यक्ति आप के लिए बना है, उसे आप के प्रति सचमुच लगाव है, जो आप को सम्मान दे रहा है, वह कभी भी आप से दूर नहीं जा सकता। अलबत्त, यह भी नहीं कि संबंध है तो हमेशा संबंध के शुरुआती समय में जो लपझप करते हैं, उसी तरह बने रहें। समय के साथ मेड फार ईचअदर संबंधों में भी कुछ हद तक बदलाव आता ही है। इस बदलाव के बाद भी एक-दूसरे को मनाना, एक-दूसरे से बात करने में जो एफर्टस लगाया जाता है, वही सच्चे संबंध हैं। सच पूछो तो यही मेच्योरिटी है। संबंध को अच्छी तरह चलाने में व्यक्ति की समझदारी बहुत काम आती है।
कहां तक मौका दें
दो व्यक्ति लगाव के तार से बंधते हैं। इसके बाद दो में से एक व्यक्ति किसी कारणवश संबंध में उदासीनता दिखाने लगता है तो शुरुआत में सामने वाला व्यक्ति समझदारी दिखाते हुए उसकी उदासीनता को उसकी व्यस्तता मान कर माफ करता रहता है। सामने वाला व्यक्ति बात न करे, फोन या मैसेज का जवाब न दे, छोटी-बड़ी हर बात में बहाना बनाए, जिस बहाने को आप पचा न सकें, फिर भी पचा लें। मात्र इस आशा से कि ऐसा करने से संबंध फिर से पहले जैसे अच्छे हो जाएंगे। बारबार मौका देने के बावजूद भी सामने वाले व्यक्ति की उदासीनता यथावत रहती है तो आदमी ऊब जाता है। वह बारबार मौका दे कर थक जाता है। उसे लगने लगता है कि यह जो कुछ चल रहा है, वह ठीक नहीं है। यह समझदारी आने के बाद आदमी सामने वाले व्यक्ति से इस बारे में बात कहना शुरू करता है। प्यार से, गुस्से से, लड़ाई-झगड़ा कर के और अन्य अनेक तरीके से सामने वाले व्यक्ति की समझाने कोशिश करने वाला व्यक्ति बारबार मौका देता है। बारबार मौका देने के बाद भी सामने वाला व्यक्ति अगर वैसा ही रहता है तो समझ लीजिए कि मौका देने का समय चला गया। आप एक बार अपने लगाव को सामने वाले व्यक्ति पर झोंक दीजिए, आप उसके इस व्यवहार से क्या समझ रही हैं, उससे कह दें। यह सब करने और कहने के बाद उस व्यक्ति का व्यवहार फिर पहले जैसा ही हो जाता है तो समझ लीजिए कि अब उस आदमी को मौका देने का समय चला गया है। क्योंकि जिसे आप के साथ रहना ही नहीं है, उसे बारबार मौका दे कर आप अपने आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा रही हैं। एक बार इतना सब छोड़ने के बाद, इतना दुखी होने के बाद अगर वह व्यक्ति आप के पास आता है तो मन को संतोष भले मिल जाए, पर खुशी बिलकुल नहीं मिलेगी। क्योंकि आत्मसम्मान को दांव पर लगा कर मिली कोई चीज लंबे समय तक खुशी देने के बजाय कष्ट अधिक देती है।यह भी एक तरह का जवाब है
अक्सर ऐसा होता है कि आप बारबार किसी के सामने अपने दिल की बात रखती हैं, उस समय वह व्यक्ति आप के साथ अच्छा व्यवहार करता है, पर कुछ समय बीतने पर वह उदासीनता भरा व्यवहार करने लगता है तो समझ लीजिए कि यह भी एक प्रकार का जवाब है। कहा जाता है कि जवाब आना भी एक तरह का जवाब है। बस, इसी बात को याद रख कर चलना चाहिए। कभी-कभी हम लोग यह भी करते हैं कि अपने लगाव या स्नेह को सीधी तरह उस व्यक्ति से व्यक्त करने के बजाय सोशल मीडिया द्वारा कहने या जताने की कोशिश करते हैं। अब इससे उस व्यक्ति पर खास असर नहीं होता, पर सोशल मीडिया को पोस्ट से अन्य लोगों को मनोरंजन जरूर होता है। आप खुद ही समझिए कि जो व्यक्ति आप के प्रति पहले से ही उदासीन हो, जिस व्यक्ति ने आलरेडी तय कर लिया हो कि वह आप के साथ संबंध में नहीं रहना चाहता, आप कितना भी कहेंगी, उसका निर्णय वही होगा। ऐसे में सोशल मीडिया की पोस्ट द्वारा दूसरों को मनोरंजन कराने से क्या फायदा? ऐसा कर के अपनी डिग्निटी खोने के अलावा और कुछ नहीं होगा।इसलिए जो जाना चाहता है, उसे मनाने का प्रयत्न करने के बाद उसे पकड़े रखने के बजाय उसे जाने देने में ही भलाई है। जो आप के साथ रहना नहीं चाहता, उसे जबरदस्ती साथ रख कर मानसिक शांति को दांव पर नहीं लगाना चाहिए। ऐसा करने से दर्द के अलावा और कुछ नहीं मिलेगा।About author
स्नेहा सिंह
जेड-436ए, सेक्टर-12नोएडा-201301 (उ.प्र.)
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