किसी को दर्ज़ा मिला किसी से छिनां
साथियों बात अगर हम दिनांक 10 अप्रैल 2023 को भारतीय केंद्रीय चुनाव आयोग के राजनीतिक पार्टी स्टेटस को लेकर बड़े फैसले की करें तो, उसने तीन बड़ी पार्टियों- राष्ट्रवादी कांग्रेस (एनसीपी), तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (सीपीआई) का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म कर दिया है जबकि आम आदमी पार्टी (आप) को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दे दिया है।चुनाव आयोग का कहना है कि इन दलों को 2 संसदीय चुनावों और 21 राज्य विधानसभा चुनावों के पर्याप्त मौके दिए गए थे लेकिन वे अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए इसलिए उनका यह दर्जा वापस ले लिया गया।
साथियों खास बात है कि राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए कुछ नियम और मापदंड है। अगर कोई भी पार्टी इन नियमों का पालन करती है और मापदंड को पूरा करती है तो निर्वाचन आयोग उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा देता है। राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए कई प्रकार की शर्तें होती हैं, जिसमें से कम से कम एक शर्त को पूरा करना अनिवार्य होता है। अगर किसी दल को 4 राज्यों में क्षेत्रीय दल का दर्जा प्राप्त है तो उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाता है। अगर कोई दल 3 राज्यों को मिलाकर लोकसभा की 3 फीसदी सीटें जीतती है तो उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाता है। अगर कोई पार्टी 4 लोकसभा सीटों के अलावा लोकसभा चुनाव या विधानसभा चुनाव में 4 राज्यों में 6 फीसदी वोट हासिल करती है तो उसे राष्ट्रीय पार्टी माना जाता है। अगर कोई भी पार्टी इन तीनों शर्तों में से किसी एक शर्त को पूरा करती है तो उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाता है। देश में कुल राष्ट्रीय पार्टियां-भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) आम आदमी पार्टी (आप) भारती राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी(सीपीएम) नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) देश में फिलहाल तीन तरह की पार्टियां हैं। राष्ट्रीय, राज्य स्तरीय और क्षेत्रीय पार्टियां। चार अप्रैल 2023 से पहले भारत में सात राष्ट्रीय पार्टियां थीं, जबकि राज्य स्तरीय दल 35 और क्षेत्रीय दलों की संख्या करीब साढ़े तीन सौ थी।
साथियों बात अगर हम राष्ट्रीय पार्टी बनने के फायदों की करें तो,(1) दल देश में कहीं भी चुनाव लड़ सकेगा, किसी भी राज्य में उम्मीदवार खड़ा कर सकेगा (2) दल को पूरे देश में एक ही चुनाव चिह्न आवंटित हो जाता है यानी वह चिह्न दल के लिए रिजर्व हो जाता है, कोई और पार्टी उसका इस्तेमाल नहीं कर सकेगी।(3) चुनाव में नामांकन दाखिल करने के दौरान उम्मीदवार के साथ एक प्रस्तावक होने पर भी मान्य किया जाएगा (4) चुनाव आयोग मतदाता सूची संशोधन पर दो सेट मुफ्त में देता है, साथ ही उम्मीदवारों को भी मतदाता सूची मुफ्त में देता है (5) पार्टी दिल्ली में केंद्रीय दफ्तर खोलने का हकदार हो जाता है, जिसके लिए सरकार कोई बिल्डिंग या जमीन देती है (6) दल चुनाव प्रचार में 40 स्टार कैंपेनर्स को उतार सकेगी, स्टार प्रचारकों पर होने वाला खर्च पार्टी प्रत्याशी के चुनावी खर्च में शामिल नहीं होगा (7) चुनाव से पहले दूरदर्शन और आकाशवाणी के जरिए जन-जन तक संदेश पहुंचाने के लिए एक तय समय मिल जाता है। राष्ट्रीय दल न रहने पर छिन जाती हैं ये सुविधाएं (1) ईवीएम या बैलट पेपर की शुरुआत में दल का चुनाव चिह्न नहीं दिखाई देगा, चुनाव आयोग जब भी राजनीतिक दलों की बैठक बुलाएगा, तो यह जरूरी नहीं कि उस पार्टी को भी बुलाया जाए (2)पॉलिटिकल फंडिंग प्रभावित हो सकती है (3) दूरदर्शन और आकाशवाणी में मिलने वाला टाइम स्लॉट छिन जाएगा (4) चुनाव के दौरान स्टार प्रचारकों की संख्या 40 से घटकर 20 हो जाएगी (5) राज्यों में चुनाव लड़ने के लिए पार्टी को लेना होगा अलग सिंबल। टीएमसी, एनसीपी, सीपीआई से इसलिए वापस लिया गया टैग। ईसीआई के अनुसार,(1) टीएमसी को 2016 में राष्ट्रीय पार्टी का टैग दिया गया था, लेकिन गोवा और कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में इसके खराब प्रदर्शन के कारण यह दर्जा वापस लेना पड़ा (2) अरुणाचलल प्रदेश से पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव और विधानसभ चुनाव में एक राज्य पार्टी के मानदंडों को पूरा नहीं किया (3) एनसीपी का गठन 1999 में हुआ था। 2000 में इसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्ज मिल गया था लेकिन गोवा, मणिपुर और मेघालय में खराब प्रदर्शन के कारण पार्टी ने यह दर्जा खो दिया (4) सीपीआई की स्थापतना 1925 में हुई थी। 1989 में इसे राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता मिली थी, लेकिन पश्चिम बंगाल और ओडिशा चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद उससे यह टैग वापस ले लिया गया (5) साल में 9 पार्टियों से छिना करंट स्टेटस, चुनाव आयोग की मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य राजनीतिक दलों के स्टेटस की समीक्षा करता है, जो सिंबल ऑर्डर 1968 के तहत एक सतत प्रक्रिया है। साल 2019 से अब तक चुनाव आयोग ने 16 राजनीतिक दलों के स्टेटस को अपग्रेड किया है और 9 राष्ट्रीय/राज्य राजनीतिक दलों के करंट स्टेटस को वापस लिया है।
अतः अगर हम उपरोक्त विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि किसी को दर्ज़ा मिला किसी से छिनां। आओ हम मतदाता जानें राष्ट्रीय और राज्य पार्टियों का दर्ज़ा कैसे मिलता है। हम मतदाताओं को मतदान करते समय उम्मीदवारों की छवि, चुनाव आयोग से राजनीतिक पार्टी का रजिस्टर स्टेटस का दर्ज़ा सहित अन्य जानकारी रखना ज़रूरी है।
आओ हम मतदाता जानें, राष्ट्रीय और राज्य पार्टियों का दर्ज़ा कैसे मिलता है
हम मतदाताओं को मतदान करते समय उम्मीदवारों की छवि, चुनाव आयोग से राजनीतिक पार्टी का रजिस्टर स्टेटस का दर्ज़ा सहित अन्य जानकारी रखना ज़रूरी - एडवोकेट किशन भावनानीगोंदिया - वैश्विक स्तरपर भारतीय लोकतंत्र सबसे बड़ा औरप्रतिष्ठित लोकतंत्र प्रणाली में भारतीय चुनाव आयोग का क्रियाकल्प, प्रक्रिया अभूतपूर्व है। अब लद गए वह दिन जब ठप्पा लगाकर मतदान किया जाता तब बूथ कैप्चरिंगभी हो जाती थी। हालांकि अगर वैश्विक स्तरपर कुछ रिपोर्ट्स को देखें तो भारतीय लोकतंत्र व्यवस्था को काफी पिछड़ा हुआ बताया गया है जिसकी रैंकिंग काफी नीचे दी गई है, इसपर मेरा मानना है कि यहां की लोकतंत्र व्यवस्था इतनी भी खराब नहीं है जितनी खराब रैंकिंग दी गई है। खैर हमें आज उसकी गहराई में नहीं जाना है। चूंकि 10 अप्रैल 2023 को भारतीय चुनाव आयोग ने एक नई उभरती पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिया है, जो गुजरात चुनाव में हार कर भी अपनी बढ़ती साख और दर्जे को राष्ट्रीय दर्जे तक बढ़ाकर हारकर भी जीत हासिल की है हालांकि पार्टी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने का हकदार हो गई थी लेकिन चुनाव आयोग की ओर से यह दर्जा मिलने में देरी हो रही थी, इसके बाद पार्टी ने कर्नाटक हाई कोर्ट का रुख कर लिया था कर्नाटक के पार्टी संयोजक की तरफ से कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी जिसमे कहा गया था कि पार्टी, राष्ट्रीय पार्टी बनने की सभी शर्तें पूरी करती है, इसके बावजूद दर्जा मिलने में देरी हो रही है। इस कोर्ट ने चुनाव आयोग को 13 अप्रैल 2023 तक यह फैसला करने को कहा कि यह राष्ट्रीय पार्टी बनती है या नहीं, आखिर आयोग ने 10 अप्रैल 2023 को राष्ट्रीय पार्टी बनने का मौका दे दिया।परन्तु सबसे बड़ी हैरानी वाली बात यह है कि टीएमसी, राष्ट्रवादी सहित कुछ पार्टियां राष्ट्रीय पार्टी के दर्ज़ा से बाहर हो गई है यानी वे अपना दर्ज़ा नहीं बचा सकी है। अब जनता का ध्यान भी आकर्षित हुआ है कि कौनसी पार्टी राष्ट्रीय और राज्य का दर्ज़ा प्राप्त है, जिसे अब मतदाता मतदान करते समय उम्मीदवार के साथ साथ इसपर भी विचार करेंगे। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, आओ हम मतदाता जानें कि राष्ट्रीय और राज्य पार्टियों का दर्जा कैसे मिलता है।
साथियों बात अगर हम दिनांक 10 अप्रैल 2023 को भारतीय केंद्रीय चुनाव आयोग के राजनीतिक पार्टी स्टेटस को लेकर बड़े फैसले की करें तो, उसने तीन बड़ी पार्टियों- राष्ट्रवादी कांग्रेस (एनसीपी), तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (सीपीआई) का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म कर दिया है जबकि आम आदमी पार्टी (आप) को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दे दिया है।चुनाव आयोग का कहना है कि इन दलों को 2 संसदीय चुनावों और 21 राज्य विधानसभा चुनावों के पर्याप्त मौके दिए गए थे लेकिन वे अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए इसलिए उनका यह दर्जा वापस ले लिया गया।
साथियों खास बात है कि राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए कुछ नियम और मापदंड है। अगर कोई भी पार्टी इन नियमों का पालन करती है और मापदंड को पूरा करती है तो निर्वाचन आयोग उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा देता है। राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए कई प्रकार की शर्तें होती हैं, जिसमें से कम से कम एक शर्त को पूरा करना अनिवार्य होता है। अगर किसी दल को 4 राज्यों में क्षेत्रीय दल का दर्जा प्राप्त है तो उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाता है। अगर कोई दल 3 राज्यों को मिलाकर लोकसभा की 3 फीसदी सीटें जीतती है तो उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाता है। अगर कोई पार्टी 4 लोकसभा सीटों के अलावा लोकसभा चुनाव या विधानसभा चुनाव में 4 राज्यों में 6 फीसदी वोट हासिल करती है तो उसे राष्ट्रीय पार्टी माना जाता है। अगर कोई भी पार्टी इन तीनों शर्तों में से किसी एक शर्त को पूरा करती है तो उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाता है। देश में कुल राष्ट्रीय पार्टियां-भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) आम आदमी पार्टी (आप) भारती राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी(सीपीएम) नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) देश में फिलहाल तीन तरह की पार्टियां हैं। राष्ट्रीय, राज्य स्तरीय और क्षेत्रीय पार्टियां। चार अप्रैल 2023 से पहले भारत में सात राष्ट्रीय पार्टियां थीं, जबकि राज्य स्तरीय दल 35 और क्षेत्रीय दलों की संख्या करीब साढ़े तीन सौ थी।
साथियों बात अगर हम राष्ट्रीय पार्टी बनने के फायदों की करें तो,(1) दल देश में कहीं भी चुनाव लड़ सकेगा, किसी भी राज्य में उम्मीदवार खड़ा कर सकेगा (2) दल को पूरे देश में एक ही चुनाव चिह्न आवंटित हो जाता है यानी वह चिह्न दल के लिए रिजर्व हो जाता है, कोई और पार्टी उसका इस्तेमाल नहीं कर सकेगी।(3) चुनाव में नामांकन दाखिल करने के दौरान उम्मीदवार के साथ एक प्रस्तावक होने पर भी मान्य किया जाएगा (4) चुनाव आयोग मतदाता सूची संशोधन पर दो सेट मुफ्त में देता है, साथ ही उम्मीदवारों को भी मतदाता सूची मुफ्त में देता है (5) पार्टी दिल्ली में केंद्रीय दफ्तर खोलने का हकदार हो जाता है, जिसके लिए सरकार कोई बिल्डिंग या जमीन देती है (6) दल चुनाव प्रचार में 40 स्टार कैंपेनर्स को उतार सकेगी, स्टार प्रचारकों पर होने वाला खर्च पार्टी प्रत्याशी के चुनावी खर्च में शामिल नहीं होगा (7) चुनाव से पहले दूरदर्शन और आकाशवाणी के जरिए जन-जन तक संदेश पहुंचाने के लिए एक तय समय मिल जाता है। राष्ट्रीय दल न रहने पर छिन जाती हैं ये सुविधाएं (1) ईवीएम या बैलट पेपर की शुरुआत में दल का चुनाव चिह्न नहीं दिखाई देगा, चुनाव आयोग जब भी राजनीतिक दलों की बैठक बुलाएगा, तो यह जरूरी नहीं कि उस पार्टी को भी बुलाया जाए (2)पॉलिटिकल फंडिंग प्रभावित हो सकती है (3) दूरदर्शन और आकाशवाणी में मिलने वाला टाइम स्लॉट छिन जाएगा (4) चुनाव के दौरान स्टार प्रचारकों की संख्या 40 से घटकर 20 हो जाएगी (5) राज्यों में चुनाव लड़ने के लिए पार्टी को लेना होगा अलग सिंबल। टीएमसी, एनसीपी, सीपीआई से इसलिए वापस लिया गया टैग। ईसीआई के अनुसार,(1) टीएमसी को 2016 में राष्ट्रीय पार्टी का टैग दिया गया था, लेकिन गोवा और कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में इसके खराब प्रदर्शन के कारण यह दर्जा वापस लेना पड़ा (2) अरुणाचलल प्रदेश से पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव और विधानसभ चुनाव में एक राज्य पार्टी के मानदंडों को पूरा नहीं किया (3) एनसीपी का गठन 1999 में हुआ था। 2000 में इसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्ज मिल गया था लेकिन गोवा, मणिपुर और मेघालय में खराब प्रदर्शन के कारण पार्टी ने यह दर्जा खो दिया (4) सीपीआई की स्थापतना 1925 में हुई थी। 1989 में इसे राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता मिली थी, लेकिन पश्चिम बंगाल और ओडिशा चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद उससे यह टैग वापस ले लिया गया (5) साल में 9 पार्टियों से छिना करंट स्टेटस, चुनाव आयोग की मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य राजनीतिक दलों के स्टेटस की समीक्षा करता है, जो सिंबल ऑर्डर 1968 के तहत एक सतत प्रक्रिया है। साल 2019 से अब तक चुनाव आयोग ने 16 राजनीतिक दलों के स्टेटस को अपग्रेड किया है और 9 राष्ट्रीय/राज्य राजनीतिक दलों के करंट स्टेटस को वापस लिया है।
अतः अगर हम उपरोक्त विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि किसी को दर्ज़ा मिला किसी से छिनां। आओ हम मतदाता जानें राष्ट्रीय और राज्य पार्टियों का दर्ज़ा कैसे मिलता है। हम मतदाताओं को मतदान करते समय उम्मीदवारों की छवि, चुनाव आयोग से राजनीतिक पार्टी का रजिस्टर स्टेटस का दर्ज़ा सहित अन्य जानकारी रखना ज़रूरी है।
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कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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