प्रतियोगिता | competition
प्रतिस्पर्धा से ही प्रगति के द्वार खुलते हैं अगर वह स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हो।जिसमें ईर्षा भाव या किसी को मात करने से ज्यादा खुद को विजयी बनाने की स्वच्छ तमन्ना हो।प्रतिस्पर्धा दो व्यक्तियों या दो से ज्यादा व्यक्तियों के बीच,दो कॉलेजों के बीच,दो कंपनियों के बीच कभी कभी दो देशों के बीच भी हो सकती हैं।आज देखें तो पूरे विश्व में प्रतियोगिता का दौर हमेशा से चलता ही रहा था,चलता रहा हैं और चकता रहेगा।
प्रतिस्पर्धा से ही आगे बढ़ने की राह और चाह मिलती है।सब से ज्यादा महत्व तो उत्थान होता है,जैसे दो कंपनियों में किसी उत्पाद में प्रतिस्पर्धा कर बेहतर ये उत्तम कक्षा का उत्पाद बना सकते हैं।वैसे ही शिक्षा जगत में विद्यार्थियों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होना आवश्यक हैं जिससे वे आगे बढ़ते हैं,अपने लिए प्रगति का मार्ग ढूंढ पाते हैं।जो थोड़े कम लायक हैं वह भी आगे बढ़ने की प्रेरणा पा आगे बढ़ सकते हैं।हमारी खूबियों निखारने में मदद भी करती हैं।
यहीं तो प्रगति की चाबी है चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो,औद्योगिक,व्यवसाय या किसी भी क्षेत्र की बात करें सभी जगह प्रतिस्पर्धा के बिना प्रगति का होना शक्य नहीं लगता।प्रतिस्पर्धा ही प्रगति का द्वार हैं।आज के जमाने में प्रतियोगिता उत्पाद में ही नहीं इश्तहारों में भी देख सकते है।
Comments
Post a Comment
boltizindagi@gmail.com