'झाउलाल'
झाउलाल बड़े मनमौजी थे। कामचोरी विद्या में निपुण थे। तरह - तरह की तरकीब उनके पास था,काम से बचने के लिए। लोगों को सुझाव भी बड़े ही उम्दे तरीके से देते थें। लोग उनकी बातों का लोहा मान ही लेता था।यह सब करते करते झाउलाल अपने सगे संबंधियों के बीच मनोरंजन के पात्र बन चुके थे। इस कारण मौसम का आनंद उठाने किसी भी जान पहचान वाले के यहां चल पड़ते। जम कर भोजन का आनंद उठाते। किसी को बुरा भी लगता तो मन मारकर रह जाता।
झाउलाल को अपनी इस बुद्धि पर बड़ा अभिमान था। उनकी बुद्धि बिल्कुल सरपट तब दौड़ती थी जब वे सोमरस के आनंद में विभोर रहते थे। इतना विभोर की अपने अंदर के सारे गुबार इस तरह उगल डालते थे, जैसे हाथी के सूंड से निकलता हुआ फ़व्वारा।
वो कहा जाता है न कोई कितना भी खिलाड़ी क्यों न हो कभी न कभी वह अपने ही दांव में फंसता है। झाउलाल के साथ भी ऐसा ही हुआ। एकदिन अंधेरे रास्ते मे वे अपना गुबार निकाले जा रहे थे। सामने वालों ने उनका जमकर ' स्वागत' कर दिया। अब वह खाट पर सदा के लिए लेटे लेटे बाट जोहते हैं।अपनी बात की लोहा मनवाने का ।
:-बुरे काम का बुरा नतीजा
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