नन्हीं कड़ी में...
आज की बात...
मस्तिष्क के दबाव को कम कैसे किया जाए....
सामान्य जीवन में हम सभी के जीवन में कुछ क्षण या घटनाएं ऐसी घटित हो जाती हैं जिससे हम न चाहते हुए भी अपने मस्तिष्क पर दबाव ले लेते है। सामान्यतः हमारे जीवन में आने वाले तनाव ही हमारे मस्तिष्क पर बोझ डालने का काम करते हैं। व्यवहारिक जीवन में प्रतियोगिता इतनी बढ़ गई है कि हम तनाव रहित जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। हमारे मन मस्तिष्क में जाने-अनजाने कई प्रकार के तनाव घर कर जाते है। तनाव के कारण ही हमारे मन मस्तिष्क पर दबाव महसूस होता है। एक नन्हें से बालक से लेकर हर उस बुजुर्ग व्यक्ति को जिसमें भी परिस्थिति को सोचने,समझने,विचार करने की शक्ति है,उन पर किसी ना किसी कारणवश चाहे वह उनके कार्यक्षेत्र के कारण हो अथवा किसी अन्य बात के कारण से भी मस्तिष्क पर दबाव आ ही जाता है। सरल शब्दों में कहा जाए तो इस संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होगा जिस के मस्तिष्क पर किसी भी प्रकार का दबाव ना हो।अब मन में एक प्रश्न अवश्य आता है कि यह दबाव किस प्रकार का हो सकता है और इस दबाव को अपने से दूर रखने का मार्ग कौन सा है? आइए,आज हम सभी मिलकर उपरोक्त विषय के अनुसार व्यक्ति के मस्तिष्क पर आने वाले विभिन्न दबाव के प्रकार और दबाव को दूर करने के उपायों के बारे में चर्चा करें।
सर्वप्रथम हम उम्र के प्रथम पड़ाव अर्थात् बचपन से शुरूआत करते हैं। कई व्यक्तियों को ऐसा प्रतीत होता है कि आखिर एक छोटे बच्चे के मस्तिष्क पर किस बात का दबाव हो सकता है? हमारी सोच के अनुसार तो जीवन काल में बचपन ही वह पड़ाव है जहां पर सभी व्यक्ति बेफिक्र होते हैं और हर प्रकार की चिंताओं से परे होते हैं। परंतु मित्रों यह सच भी अर्धसत्य ही है,सच तो यह है कि प्रतियोगिता के इस दौर में एक छोटे बालक के मन मस्तिष्क पर अध्ययन और पुस्तकों का बोझ सर्वाधिक बढ़ता ही जा रहा है। प्रतियोगिता के इस दौर में प्रत्येक अभिभावक की चाहत होती है कि उनका बच्चा पढ़ाई में सबसे अव्वल रहे। अपने बच्चों को प्रथम स्थान में लाने की लालसा में बच्चों के कोमल मन मस्तिष्क पर अनचाहा दबाव लाने का कार्य अभिभावकों द्वारा स्वयं ही किया जा रहा है। आज के युग में जहां वयस्क उम्र के लोगों की भी विभिन्न रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता दिनों-दिन घटती जा रही है, वहीं ऐसी मुश्किल परिस्थितियों में एक छोटा बच्चा आखिर किस प्रकार इस अनावश्यक बोझ को सहन कर सकता है ?बच्चों को उनकी नन्हीं उम्र में जितना संभव हो सके एक आजाद पक्षी के समान खुलकर उड़ने के लिए मुक्त रखना चाहिए। जितना हो सके उनके बालपन पर इस दबाव को दूर रखने का प्रयास प्रत्येक अभिभावक के द्वारा अवश्य ही करना चाहिए। बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार विषय और खेल का चुनाव करने की आजादी देनी चाहिए। इन छोटी-छोटी कोशिशों से ही हम अपने बच्चों को तनाव रहित जीवन देने में कामयाब हो सकते हैं।
अब यदि हम आज की युवा पीढ़ी की बात करें तो यह हर एक माता-पिता को समझ में आ ही गया होगा कि आज की नौजवान पीढ़ी जितनी सक्रिय सृजनशील है उतनी अधिक भ्रमित और उलझी हुई भी है। इसका सबसे बड़ा कारण उनके द्वारा अपने कैरियर का चुनाव करने में असमंजस वाली स्थिति का होना है। अध्ययन पूर्ण होने के पश्चात् अपने आप को सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूती से स्थापित करने हेतु सुव्यवस्थित आय के साधन होना भी आवश्यक हो जाता है। जिन बच्चों द्वारा उच्च शिक्षा ग्रहण की गई है उनके सामने अच्छी नौकरी हासिल करने की चाहत किसी पहाड़ पर चढ़ने से कम नहीं होती है। आज के इस प्रतियोगिता वाले दौर में हर कोई बच्चा एक दूसरे से बेहतर है,इसका सीधा प्रभाव नौकरी हासिल करने पर पड़ता है। बड़ी-बड़ी सरकारी और गैर-सरकारी कंपनियों में पढ़े-लिखे नौजवानों हेतु कई विकल्प होते हैं और उनसे भी ज्यादा विकल्प कंपनियों के सामने भी होते है। आज के युवाओं में योग्यता की कोई कमी नहीं है। यही योग्यता आपसी प्रतियोगिता की जनमदाता है। हर युवा किसी न किसी क्षेत्र में एक दूसरे से बेहतर है। इस कारण से भी आज अच्छी नौकरी प्राप्त करने में समय लग जाता है। कहने का अर्थ यह है कि इन सभी तथ्यों के कारण भी नौजवानों को होने वाला तनाव ही उनके मन मस्तिष्क पर अनचाहा दबाव उत्पन्न करता है।
यह तो केवल शुरुआत है, असली दबाव तो उन व्यक्तियों के मन मस्तिष्क पर भी होता है जो अपने कार्य क्षेत्र में स्थापित हो चुके होते हैं। ऐसे लोगों में हर समय अपना स्टेटस अपने स्थान पर कायम रखने हेतु निरंतर संघर्ष करते रहना पड़ता है। जिन्होंने नौकरी हासिल कर ली है वे अधिक तरक्की प्राप्त करने के लिए नए-नए तरीकों की तलाश में लगे रहते हैं। हर समय अपने अधिकारी को खुश करना संभव नहीं हो पाता परंतु फिर भी अधिकारियों को अपने कार्य से संतुष्ट करने का प्रयास करना ही पड़ता है। इतना परिश्रम करने और अपने स्वाभिमान से समझौता करने के बाद भी जब अपने मन मुताबिक परिणाम नहीं मिलता तो यह एक सुई के समान दिमाग में चुभता रहता है और आगे चलकर यही दबाव असहनीय हो जाता है। मन मस्तिष्क के इस दबाव को दूर करने का एक ही सरल उपाय है कि प्रत्येक व्यक्ति को खुश करने की लालसा का त्याग करना पड़ेगा। हमेशा सब अच्छा ही होगा इस सोच को भी बदलना पड़ेगा और संघर्षो से बिना घबराए अपने कर्म पथ पर पूरी लगन के साथ सदैव आगे बढ़ने का प्रयास युवा पीढ़ी को करते रहना चाहिए। साथ ही इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि हम प्रत्येक व्यक्ति को संतुष्ट नहीं कर सकते हमें तो केवल इतनी ही कोशिश करनी है कि हमारे द्वारा किसी के हृदय को ठेस ना पहुंचे। अगर हम इन सभी बातों पर अमल करने लगेंगे तो हमारे मस्तिष्क पर कभी भी दबाव महसूस नहीं होगा।
हमने अभी नौकरी पेक्षा लोगों की परेशानी को समझ कर उनका समाधान करने पर विस्तृत चर्चा की। अब हम उन लोगों के मस्तिष्क के दबाव की बात करेंगे जो व्यापारी क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। आज समाज में जो भी व्यक्ति व्यापार करता है उनके लिए व्यापार करना सरल नहीं है। एक सफल व्यापारी को अपने व्यापार के अंतर्गत जुड़े हुए कई लोगों जैसे उपभोक्ता व बड़े व्यापारी के बीच की कड़ी को जोड़ने वाली कई छोटी-छोटी कड़ियाँ भी होती हैं। इनमें गैरेज वाले,आड़तिया(दलाल), रिक्शेवाले और दुकान पर काम करने वाले कर्मचारीगण इन सभी से दुकानदार को तालमेल बनाकर रखना पड़ता है। इतना करने के पश्चात् भी जब कभी कोई ग्राहक किसी कारणवश नाराज हो जाता है तो इसका सीधा प्रभाव व्यापार पर पड़ता है। एक ग्राहक का मन चंचल होता है,यदि कोई नया सामान खरीदने के लिए वह सामान की गुणवत्ता व कीमत की तुलना करने के लिए अलग-अलग दुकानों पर जाता है और ऐसे में किसी ग्राहक के कदम एक बार यदि किसी दूसरी दुकान की ओर मुड़ गए तो पुनः उनका वापस लौटना बहुत मुश्किल हो जाता है।
इसलिए एक दुकानदार के मन में ग्राहक को खोने का डर हमेशा बना रहता है यही अनदेखा भय दुकानदार के मन मस्तिष्क पर एक दबाव बनाता है। इस दबाव को कम करने का सबसे सरल उपाय है कि दुकानदार को अपने दुकान की हर एक वस्तु अच्छी गुणवत्ता वाली तथा वाजिब मूल्य पर ही बेचनी चाहिए। साथ ही जहां संभव हो वहां पर घर-पहुंच सेवा का भी लाभ देना चाहिए। इन सभी तथ्यों का सकारात्मक प्रभाव व्यापार पर पड़ेगा और ग्राहक भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने में संकोच करेगा और व्यापारी के मस्तिष्क पर पड़ने वाला दवाब स्वतः ही कम होता जाएगा।
अब हम बात करेंगे उम्र के अंतिम पड़ाव पर जीवनयापन करने वाले बड़े बुजुर्गों की। हमने अवश्य ही महसूस किया होगा कि हमारे बुजुर्ग अपने संपूर्ण जीवन की जमा पूंजी व्यापार और संस्कारों के साथ अपना नाम भी हमें विरासत में देते हैं।हमारे बुजुर्ग इतना सब त्याग करने के बाद भी अपने मोह का त्याग नहीं कर पाते। अरे, नहीं-नहीं, आप इसे अन्यथा ना लें,मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे बुजुर्गों की यही ममता उनके साथ रहकर उनके मस्तिष्क पर दबाव डालती है। उनके मन में हमेशा यह हलचल रहती है कि हमारे बच्चे विरासत के रूप में दिए गए व्यापार धन आदि का उचित संचालन या व्यवस्थापन कर पाएंगे अथवा नहीं? यही प्रश्न उनके मस्तिष्क पर दबाव डालता है। इस दबाव को कम करने का सबसे सरल उपाय है कि हमें सदैव अपने बच्चों पर एक विश्वास रखना ही होगा कि हमारे बच्चे संस्कारों से सुसज्जित रहकर अपनी जिम्मेदारियों का वहन योग्य तरीके से ही करेंगे।
विचार के अंत में हम बात करेंगे देश की आधी आबादी की अर्थात् महिलाओं के मस्तिष्क पर पड़ने वाले दबाव की। आज के आधुनिक युग में महिलाओं ने घर की आर्थिक परिस्थितियों में सुधार करने के लिए अपनी योग्यता समाज के समक्ष लाने का यथासंभव प्रयास किया है।महिलाओं ने भी दिखा दिया है कि वह किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं और सभी कार्य करते हुए अपने कर्तव्यों का निर्वहन सफलतापूर्वक कर रही हैं। आज भी परिवार के बच्चों-बुजुर्गों की संपूर्ण जिम्मेदारी महिलाओं पर ही रहती है। आज के इस युग में बच्चों की जिम्मेदारी निभाना एक युद्ध जीतने के बराबर है। बच्चों को समय से विद्यालय भेजना,उनके टिफिन की व्यवस्था करना, गृह-कार्य करवाना, विद्यालय की पालक सभा में समय पर उपस्थिति दर्ज करना आदि ऐसी ही कई जिम्मेदारियां महिलाएं पूरी लगन व निष्ठा से निभाती हैं। घर के बुजुर्गों के स्वास्थ्य एवं उनकी अन्य आवश्यकताओं की जिम्मेदारी महिलाओं पर ही होती है। जिस घर की देखभाल करने में महिलाओं का संपूर्ण समय व्यतीत हो जाता है और सभी कार्य करने के उपरांत भी महिलाओं को जब यह ताने दिए जाते हैं कि तुमने परिवार के लिए आखिर किया ही क्या है या तूने कभी परिवार की जिम्मेदारी नहीं निभाई है, ऐसे ही अनेक उल्हाने हृदय के अंदर तक घर कर जाते हैं और महिलाओं के दिमाग पर अनावश्यक दबाव उत्पन्न होता है। सच पूछा जाए तो हम इस बात से कभी भी इंकार नहीं कर सकते कि एक महिला के सहयोग के बिना घर का आर्थिक विकास संभव नहीं है। एक महिला का सही बजट में योजनाबद्ध तरीके से खर्च करना ही पुरुष की सफलता की पहली सीढ़ी है। महिला के मानसिक सहयोग से ही पुरुष निश्चित होकर अपना व्यापार आदि अन्य कार्य कर सकता है। अब प्रश्न यह उठता है कि महिलाओं के दिमागी दबाव को कैसे कम किया जा सकता है? इसका सबसे सरल उपाय है घर की छोटी-छोटी बातों को अनदेखा करते रहना चाहिए। घर के बड़े बुजुर्गों द्वारा यदि कोई कड़वी बोली जाती है तो जिस प्रकार मां अपने बच्चों की बातों को अनदेखा करके उसे खेल-खेल में समझाती है, उसी प्रकार से बुजुर्गों की बातों को भी दिल पर नहीं लेना चाहिए। केवल एक ही बात का ध्यान रखना चाहिए बच्चे-बूढ़े एक समान होते हैं। इसके अतिरिक्त महिलाएं अपनी सोच में थोड़ा सा बदलाव करके भी अपने इस दबाव को स्वयं कम कर सकती हैं। मन में यह ख्याल तो कभी भी आने नहीं देना चाहिए कि मैं तो पराए घर से आई हूँ, इसलिए मुझे ही सदैव झुकना पड़ता है। ससुराल का घर कभी पराया नहीं होता क्योंकि कानून के अनुसार भी एक पुरुष को जितना अधिकार प्राप्त है, बहू को भी उतना ही समान अधिकार प्राप्त है। घर की महिला यदि विनम्रता सहित जीवन-यापन करती है तो इसका अर्थ यह कभी नहीं निकालना चाहिए कि महिला को अपने अधिकारों का ज्ञान नहीं है।अरे भाई! यह जीवन है कोई जंग का मैदान नहीं है,जहां विनम्रता को महिला की हार के रूप में देखा जाए। मन में सदैव यही विचार लाना चाहिए कि यह घर मेरा है और इस घर में रहने वाले सभी सदस्य मेरे परिवार के अभिन्न अंग हैं और परमात्मा ने इन सुंदर अंगों की सेवा करने एवं उनको संभालने की जिम्मेदारी मेरे हिस्से में दी है। यकीन मानिए यह भाव मन में आने से हमारे मन मस्तिष्क पर कभी भी इस प्रकार का अनदेखा भार महसूस नहीं होगा और हमारा मन सदैव प्रसन्न ही रहेगा।
इसलिए आइए अंत में हम सभी मिलकर एक प्रण करें कि किसी भी जिम्मेदारी को अनदेखा न करके समस्त कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए अपने मस्तिष्क पर किसी भी प्रकार के दबाव को निकट नहीं आने देंगे। दिमाग के दबाव को कम कैसे किया जाए....? इन सभी प्रश्नों के हमने सभी उम्र के अनुसार इस लेख में चर्चा की है। क्या हम इन उपायों को अमल में लाने का प्रयास करेंगे ? इस प्रश्न का जवाब हम अपने ह्रदय से अवश्य पूछेंगे.......
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