उनके आने से।
एक सफर थम सा गया था,ह्रदय में, गम सा भरा था,
जीवन तन्हा और अकेला मन,
कैसे देखे, नम आंखें टूटे स्वप्न।
थमते सफर को ऐसा चलाया,
जीवन का जर्रा जर्रा महकाया,
कहने लगे, बनजाओ मेरी हमसफर,
नए सफर से भरने दो हर एक लहर।
डर और घबराहट ने रोका रास्ता,
पर दिया उन्होंने जब, रब का वास्ता,
कहां उस पर विश्वास करो और मेरी हो जाओ,
इस जिंदगी को मेरे साथ और हसीन बनाओ।
मुद्दत बाद ही सही मिले तो,
शूल के बाद जीवन में फूल खिले तो,
हर जन्म तुम ही मिलो, यही गुजारिश है,
ऐसा लगता है,
अब जाकर पूरी हुई बरसों की ख्वाहिशें।।
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डॉ. माधवी बोरसेअंतरराष्ट्रीय वक्ता
स्वरचित मौलिक रचना
राजस्थान (रावतभाटा)
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