सुपरहिट
तमिलनाडु के वेल्लोर में पैदा हुई वाणी, ऋषिकेश मुखर्जी निर्देशित और जया भादुड़ी अभिनीत 'गुड्डी' (1971) फिल्म से हिंदी सिनेमा में आई थीं। आईं ऐसा कि छा गईं। 'गुड्डी' में नवोदित जया भादुड़ी की भूमिका एक टीनेजर लड़की की थी। ऋषि दा और फिल्म के संगीत निर्देशक वसंत देसाई को जया की आवाज से मिलती-जुलती एक ताजी और युवा आवाज चाहिए थी। वाणीजी उस समय अपने पति जयराम के साथ विवाह कर के मुंबई में पटियाला घराने के उस्ताद अब्दुल रहमान के पास तालीम ले रही थीं। मुंबई में वह ठुमरी, भजन और गझल के कार्यक्रम देती थीं। ऐसे ही एक कार्यक्रम में वसंत देसाई ने वाणी को सुना था।
ऋषि दा ने जब वसंत देसाई से 'गुड्डी' की बात की तो देसाई को पहला नाम वाणी का याद आया था। फिल्म में तीन गाने थे और देसाई ने तीनों गाने वाणी से ही गवाए थे। दिसंबर, 1970 में पहला गाना (भजन) रेकार्ड किया गया था- 'हरि बिन कैसे जाऊं...' कुछ महीने बाद दूसरा भजन रेकार्ड किया गया- 'हम को मन की शक्ति देना...' जुलाई, 1971 में तीसरा गाना स्वरबद्ध हुआ- 'बोल रे पपीहरा...' वाणीजी को उस समय अंदाजा नहीं था कि उनकी जिंदगी इस तरह बदल जाएगी।
तीनों गाने गुलजार ने लिखे थे। इनमें 'हम को मन की शक्ति' तो स्कूलों में प्रार्थना के रूप में लोकप्रिय हुआ था। 1980 में नाना पाटेकर की 'आक्रोश' में उसी तर्ज पर 'इतनी शक्ति हमें देना दाता' तैयार किया गया था। क्योंकि उस समय बरसात थी। गाने में वर्षा ऋतु में प्यार में पड़ने का भाव था। वसंत देसाई ने उसे मियां की मल्हार राग में स्वरबद्ध किया था। मल्हार झमाझम बरसात का राग है। गुलजार की कविता, वसंत देसाई का संगीत और वाणी जयराम की मीठी आवाज।
फिल्म के रिलीज होने के बाद ये गाने जबरदस्त लोकप्रिय हुए थे। फिर तो वाणी जयराम की डिमांड बढ़ गई थी। बिनाका गीतमाला में ये लगातार 16 सप्ताह तक 'पहले पायदान ' पर रहे थे। इसके लिए वाणी को तानसेन सम्मान, लायंस इंटरनेशनल बेस्ट प्रोमिसिंग सिंगर अवार्ड, आल इंडिया सिनेगोअर्स एसोसिएशन अवार्ड और आल इंडिया फिल्म-गोअर्स एसोसिएशन अवार्ड दिया गया था।
फिल्मसंगीत प्रेमियों और सिनेमाजगत के लोगों को तब लगा था कि मंगेशकर बहनों को टक्कर देने वाला कोई आ गया है। एक पुराने इंटरव्यू में वाणी ने कहा था, 'बोले रे पपीहरा' गाने से मैं घर-घर जानी जाने लगी थी। मुझे लगता है कि मेरे आसपास इतनी राजनीति न रची गई होती तो मैंने तमाम उत्तम गाने दिए होते। मंगेशकर बहनों की असुरक्षा ही मेरी सफलता थी।'
'गुड्डी' जया भादुड़ी के कैरियर के लिए भी नीव का पत्थर साबित हुई थी। पहली ही फिल्म में उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवार्ड मिला था। जया भादुड़ी उस समय पुणे की फिल्म इंस्टीट्यूट में पढ़ रही थीं। ऋषिकेश मुखर्जी ने वहां जया की डिप्लोमा फिल्में देखी थीं और उन्हें उनका काम अच्छा लगा था तो 'गुड्डी' के लिए ऑफर किया था। इसके पहले जया ने बंगाली बाबू सत्यजीत रे की फिल्म में बालभूमिका की थी।
ऋषि दा ने 'गुड्डी' में अमिताभ बच्चन को नवीन की भूमिका में लिया था (जो कुसुम उर्फ गुड्डी का हाथ मांगता है) पर उनकी ही फिल्म 'आनंद' में अमिताभ का कद बढ़ जाने से बंगाली एक्टर सुमित भांजा को लिया था। कुसुम की भूमिका पहले मौसमी चटर्जी को ऑफर की थी, पर उन्होंने स्कूल की ड्रेस स्कर्ट पहनने से मना कर दिया था।
काॅमेडियन असरानी ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था, 'ऋषि दा पुणे में मेरे पास आए थे। मुझे लगा था कि वह मुझे फिल्म के लिए ऑफर करेंगे, पर उन्होंने तो जया के बारे में पूछताछ की थी।' असरानी ने ही जया को बताया था कि ऋषिकेश मुखर्जी उन्हें खोज रहे हैं। ऋषि दा वापस जा रहे थे तो असरानी ने सकुचाते हुए कहा था कि दादा मेरे लिए भी कोई काम हो तो कहिएगा। तब ऋषि दा ने कहा था कि होगा तो चिट्ठी लिखूंगा। पर असरानी इस तरह की कोई राह देखे बगैर मुंबई के उनके आफिस जा पहुंचे थे। इस तरह उन्हें 'गुड्डी' में कुंदन की छोटी सी भुमिका मिली थी।
ऋषि दा 'गुड्डी' में जया के अभिनय से इतना प्रभावित हुए थे कि उन्हें ले कर 1973 में 'अभिमान' और 1975 में 'मिली' बनाई थी। 'मिली' में उन्होंने 'गुड्डी' की चुलबुली कुसुम और 'आनंद' के बीमार आनंद सहगल का विस्तार किया था।
'गुड्डी' में उनकी भूमिका एक ऐसी टीनएज लड़की की थी, जो फिल्मस्टार धर्मेन्द्र के प्यार में है। यहां तक कि नवीन जब सगाई के लिए ऑफर करता है तब वह बिंदास हो कर कहती है कि उसका प्यार तो धर्मेन्द्र है। यह दृश्य भी फिल्मी अंदांज में शूट किया गया था। कुसुम को जब पता चलता है कि उसकी भाभी ने (सुमिता सान्याल) उसे मिलाने की व्यवस्था की थी। तब कुसुम छज्जी पर भाग कर फिल्मी स्टाइल में कहती है, "नही... यह शादी नहीं हो सकती।" नवीन जब कारण पूछता है तो वह कहती है, "मुझे मजबूर मत करो।"
आघात खाया नवीन अपने चाचा और मनोविज्ञान के प्रोफेसर गुप्ता (उत्पल दत्त) को यह समस्या बताता है। प्रोफेसर गुप्ता तय करते हैं कि फिल्मस्टार के पीछे का यह पागलपन नासमझी का परिणाम है और कुसुम को फिल्मी लोगों की असली जिंदगी से वाकिफ कराना पड़ेगा।
वह अपने एक मित्र के माध्यम से धर्मेन्द्र से संपर्क करते हैं और गुड्डी को मायानगरी का परिचय कराते हैं। उसे जब असली-नकली दुनिया का भान होता है तो फिल्मी लोगों का भूत उसके सिर से उतर जाता है। अंत में वह नवीन से विवाह कर लेती है।
'गुड्डी' एक तरह से दर्शकों के मन की फिल्म थी। छोटे थे तो क्लास छोड़कर फिल्मस्टारों की फिल्म देखने जाते थे। धर्मेन्द्र इतने बड़े स्टार थे और जो लोग स्कूल छोड़कर 'गुड्डी' फिल्म देखने गए थे, उन्हें सानंदाश्चर्य हुआ कि फिल्म की कहानी उन्हीं जैसे एक टीनएज पर थी, जो फिल्मस्टार के लिए स्कूल छोड़ती है।
ऋषि दा ने शायद ऐसे ही लोगों के लिए 'गुड्डी' बनाई थी, जिससे परदे पर के पीछे के ग्लेमर की असली और कड़वी सच्चाई बताई जा सके। हेमा मालिनी और मुमताज जैसी ग्लेमरस हीरोइनों के जमाने में ऋषि दा ने जया जैसी नवोदित और सादी ऐक्ट्रेस को ले कर एक ऐसी फिल्म रची थी, जिसका मूल उद्देश्य ही ग्लेमर का पर्दाफाश करना था। जयाजी ने यह भूमिका बखूबी निभाई थी और पहली ही फिल्म से दर्शकों का दिल जीत लिया था।
फिल्मी लोगों पर कहानी थी, इसलिए 'गुड्डी' में धर्मेन्द्र के आलावा दिलीप कुमार, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, माला सिन्हा, विश्वजीत, नवीन निश्चल, प्राण, ओमप्रकाश और विम्मी जैसे कलाकार भी मेहमान भूमिका में थे। पर फिल्म का पूरा दारोमदार नवोदित जया भादुड़ी पर था और पूरे आत्मविश्वास के साथ उन्होंने यह भार उठाया था। फिल्म में जब वह अपना फेमस निर्दोष हास्य बहता छोड़ती हैं तो सचमुच ऐसा लगता है कि स्कूल की लड़कियां इसी तरह पागल होती हैं।
जेड-436ए सेक्टर-12,
नोएडा-201301 (उ0प्र0)
मो-8368681336
गुड्डी : सिनेमा के ग्लेमर वर्ल्ड का असली-नकल
4 फरवरी को चेन्नई से एक अशुभ समाचार आया। राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित 77 वर्षीय वरिष्ठ गायिका वाणी जयराम की संदिग्ध हालत में मौत हो गई। 19 भाषाओं में लगभग दस हजार गानों को स्वर देने वाली वाणी जयराम अकेली ही रहती थीं। उनके पति की पहले ही मौत हो गई थी और उनके बच्चे भी नहीं थे।तमिलनाडु के वेल्लोर में पैदा हुई वाणी, ऋषिकेश मुखर्जी निर्देशित और जया भादुड़ी अभिनीत 'गुड्डी' (1971) फिल्म से हिंदी सिनेमा में आई थीं। आईं ऐसा कि छा गईं। 'गुड्डी' में नवोदित जया भादुड़ी की भूमिका एक टीनेजर लड़की की थी। ऋषि दा और फिल्म के संगीत निर्देशक वसंत देसाई को जया की आवाज से मिलती-जुलती एक ताजी और युवा आवाज चाहिए थी। वाणीजी उस समय अपने पति जयराम के साथ विवाह कर के मुंबई में पटियाला घराने के उस्ताद अब्दुल रहमान के पास तालीम ले रही थीं। मुंबई में वह ठुमरी, भजन और गझल के कार्यक्रम देती थीं। ऐसे ही एक कार्यक्रम में वसंत देसाई ने वाणी को सुना था।
ऋषि दा ने जब वसंत देसाई से 'गुड्डी' की बात की तो देसाई को पहला नाम वाणी का याद आया था। फिल्म में तीन गाने थे और देसाई ने तीनों गाने वाणी से ही गवाए थे। दिसंबर, 1970 में पहला गाना (भजन) रेकार्ड किया गया था- 'हरि बिन कैसे जाऊं...' कुछ महीने बाद दूसरा भजन रेकार्ड किया गया- 'हम को मन की शक्ति देना...' जुलाई, 1971 में तीसरा गाना स्वरबद्ध हुआ- 'बोल रे पपीहरा...' वाणीजी को उस समय अंदाजा नहीं था कि उनकी जिंदगी इस तरह बदल जाएगी।
तीनों गाने गुलजार ने लिखे थे। इनमें 'हम को मन की शक्ति' तो स्कूलों में प्रार्थना के रूप में लोकप्रिय हुआ था। 1980 में नाना पाटेकर की 'आक्रोश' में उसी तर्ज पर 'इतनी शक्ति हमें देना दाता' तैयार किया गया था। क्योंकि उस समय बरसात थी। गाने में वर्षा ऋतु में प्यार में पड़ने का भाव था। वसंत देसाई ने उसे मियां की मल्हार राग में स्वरबद्ध किया था। मल्हार झमाझम बरसात का राग है। गुलजार की कविता, वसंत देसाई का संगीत और वाणी जयराम की मीठी आवाज।
फिल्म के रिलीज होने के बाद ये गाने जबरदस्त लोकप्रिय हुए थे। फिर तो वाणी जयराम की डिमांड बढ़ गई थी। बिनाका गीतमाला में ये लगातार 16 सप्ताह तक 'पहले पायदान ' पर रहे थे। इसके लिए वाणी को तानसेन सम्मान, लायंस इंटरनेशनल बेस्ट प्रोमिसिंग सिंगर अवार्ड, आल इंडिया सिनेगोअर्स एसोसिएशन अवार्ड और आल इंडिया फिल्म-गोअर्स एसोसिएशन अवार्ड दिया गया था।
फिल्मसंगीत प्रेमियों और सिनेमाजगत के लोगों को तब लगा था कि मंगेशकर बहनों को टक्कर देने वाला कोई आ गया है। एक पुराने इंटरव्यू में वाणी ने कहा था, 'बोले रे पपीहरा' गाने से मैं घर-घर जानी जाने लगी थी। मुझे लगता है कि मेरे आसपास इतनी राजनीति न रची गई होती तो मैंने तमाम उत्तम गाने दिए होते। मंगेशकर बहनों की असुरक्षा ही मेरी सफलता थी।'
'गुड्डी' जया भादुड़ी के कैरियर के लिए भी नीव का पत्थर साबित हुई थी। पहली ही फिल्म में उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवार्ड मिला था। जया भादुड़ी उस समय पुणे की फिल्म इंस्टीट्यूट में पढ़ रही थीं। ऋषिकेश मुखर्जी ने वहां जया की डिप्लोमा फिल्में देखी थीं और उन्हें उनका काम अच्छा लगा था तो 'गुड्डी' के लिए ऑफर किया था। इसके पहले जया ने बंगाली बाबू सत्यजीत रे की फिल्म में बालभूमिका की थी।
ऋषि दा ने 'गुड्डी' में अमिताभ बच्चन को नवीन की भूमिका में लिया था (जो कुसुम उर्फ गुड्डी का हाथ मांगता है) पर उनकी ही फिल्म 'आनंद' में अमिताभ का कद बढ़ जाने से बंगाली एक्टर सुमित भांजा को लिया था। कुसुम की भूमिका पहले मौसमी चटर्जी को ऑफर की थी, पर उन्होंने स्कूल की ड्रेस स्कर्ट पहनने से मना कर दिया था।
काॅमेडियन असरानी ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था, 'ऋषि दा पुणे में मेरे पास आए थे। मुझे लगा था कि वह मुझे फिल्म के लिए ऑफर करेंगे, पर उन्होंने तो जया के बारे में पूछताछ की थी।' असरानी ने ही जया को बताया था कि ऋषिकेश मुखर्जी उन्हें खोज रहे हैं। ऋषि दा वापस जा रहे थे तो असरानी ने सकुचाते हुए कहा था कि दादा मेरे लिए भी कोई काम हो तो कहिएगा। तब ऋषि दा ने कहा था कि होगा तो चिट्ठी लिखूंगा। पर असरानी इस तरह की कोई राह देखे बगैर मुंबई के उनके आफिस जा पहुंचे थे। इस तरह उन्हें 'गुड्डी' में कुंदन की छोटी सी भुमिका मिली थी।
ऋषि दा 'गुड्डी' में जया के अभिनय से इतना प्रभावित हुए थे कि उन्हें ले कर 1973 में 'अभिमान' और 1975 में 'मिली' बनाई थी। 'मिली' में उन्होंने 'गुड्डी' की चुलबुली कुसुम और 'आनंद' के बीमार आनंद सहगल का विस्तार किया था।
'गुड्डी' में उनकी भूमिका एक ऐसी टीनएज लड़की की थी, जो फिल्मस्टार धर्मेन्द्र के प्यार में है। यहां तक कि नवीन जब सगाई के लिए ऑफर करता है तब वह बिंदास हो कर कहती है कि उसका प्यार तो धर्मेन्द्र है। यह दृश्य भी फिल्मी अंदांज में शूट किया गया था। कुसुम को जब पता चलता है कि उसकी भाभी ने (सुमिता सान्याल) उसे मिलाने की व्यवस्था की थी। तब कुसुम छज्जी पर भाग कर फिल्मी स्टाइल में कहती है, "नही... यह शादी नहीं हो सकती।" नवीन जब कारण पूछता है तो वह कहती है, "मुझे मजबूर मत करो।"
आघात खाया नवीन अपने चाचा और मनोविज्ञान के प्रोफेसर गुप्ता (उत्पल दत्त) को यह समस्या बताता है। प्रोफेसर गुप्ता तय करते हैं कि फिल्मस्टार के पीछे का यह पागलपन नासमझी का परिणाम है और कुसुम को फिल्मी लोगों की असली जिंदगी से वाकिफ कराना पड़ेगा।
वह अपने एक मित्र के माध्यम से धर्मेन्द्र से संपर्क करते हैं और गुड्डी को मायानगरी का परिचय कराते हैं। उसे जब असली-नकली दुनिया का भान होता है तो फिल्मी लोगों का भूत उसके सिर से उतर जाता है। अंत में वह नवीन से विवाह कर लेती है।
'गुड्डी' एक तरह से दर्शकों के मन की फिल्म थी। छोटे थे तो क्लास छोड़कर फिल्मस्टारों की फिल्म देखने जाते थे। धर्मेन्द्र इतने बड़े स्टार थे और जो लोग स्कूल छोड़कर 'गुड्डी' फिल्म देखने गए थे, उन्हें सानंदाश्चर्य हुआ कि फिल्म की कहानी उन्हीं जैसे एक टीनएज पर थी, जो फिल्मस्टार के लिए स्कूल छोड़ती है।
ऋषि दा ने शायद ऐसे ही लोगों के लिए 'गुड्डी' बनाई थी, जिससे परदे पर के पीछे के ग्लेमर की असली और कड़वी सच्चाई बताई जा सके। हेमा मालिनी और मुमताज जैसी ग्लेमरस हीरोइनों के जमाने में ऋषि दा ने जया जैसी नवोदित और सादी ऐक्ट्रेस को ले कर एक ऐसी फिल्म रची थी, जिसका मूल उद्देश्य ही ग्लेमर का पर्दाफाश करना था। जयाजी ने यह भूमिका बखूबी निभाई थी और पहली ही फिल्म से दर्शकों का दिल जीत लिया था।
फिल्मी लोगों पर कहानी थी, इसलिए 'गुड्डी' में धर्मेन्द्र के आलावा दिलीप कुमार, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, माला सिन्हा, विश्वजीत, नवीन निश्चल, प्राण, ओमप्रकाश और विम्मी जैसे कलाकार भी मेहमान भूमिका में थे। पर फिल्म का पूरा दारोमदार नवोदित जया भादुड़ी पर था और पूरे आत्मविश्वास के साथ उन्होंने यह भार उठाया था। फिल्म में जब वह अपना फेमस निर्दोष हास्य बहता छोड़ती हैं तो सचमुच ऐसा लगता है कि स्कूल की लड़कियां इसी तरह पागल होती हैं।
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वीरेन्द्र बहादुर सिंहजेड-436ए सेक्टर-12,
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