आओ कुदरती संसाधनों से छेड़छाड़ रोकने का संकल्प करें
जोशीमठ के अस्तित्व पर संकट - कुदरत की कराई या फ़िर मानवीय चतुराई की कीया कराई?
देर आए दुरुस्त आए की तर्ज़ पर जोशीमठ सहित संभावित त्रासदी स्थलों के लिए तत्काल एक्शन प्लान कर क्रियान्वयन की ज़रूरत - एडवोकेट किशन भावनानी
गोंदिया - वैश्विक स्तरपर मानवीय जीव विकास की ऐसी गंगा बहाने में बिजी हो गया है कि, कुदरत और उसके संसाधनों को हाशिए पर लाकर रख दिया है और जब अभी उसके दुष्परिणामों से दो-चार होने का समय आया है तो पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते सहित अनेक उपायों पर दुनिया को एक कर उपाय किए जा रहे हैं। परंतु उसके बाद भी हम मानवीय जीव सहभागिता ना देकर अपने निजी सुख सुविधाओं और नाम के लिए कुदरती संसाधनों से छेड़छाड़ करना चालू रख रहे हैं, जिसका परिणाम आगे चलकर भयावह होने की बात को रेखांकित करना ज़रूरी है। यह त्रासदी हम नहीं तो हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए काफ़ी खतरनाक सिद्ध हो सकती है और एक समय ऐसा भी आ सकता है कि मानवीय जीव इस धरा पर सुखमय जीवन जीने के लिए भी दुर्लभ हो सकता है जिसका टेलर आज हम उत्तराखंड के जोशीमठ में देख रहे हैं, जिससे वहां का शासन प्रशासन और पीएम कार्यालय तक आपातकालीन मीटिंग का दौर शुरू है। हालांकि इसका इंडिकेशन 1936, 2001 1976 की अट्ठारह सदस्यीय विशेषज्ञों की रिपोर्ट में पहले ही दिया जा चुका था। परंतु करीब-करीब हर रिपोर्ट की तरह इस रिपोर्ट को भी साइड कर दिया गया था और आज नतीजा सबके सामने है। चूंकि जोशीमठ की भयंकर त्रासदी से कुछ दिनों से मीडिया भरा पड़ा है, इसीलिए आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे जोशीमठ के अस्तित्व पर संकट - यह कुदरत की कराई या फिर मानवीय चतुराई की कीया कराई? आओ कुदरती संसाधनों से छेड़छाड़ रोकने का संकल्प करें।
साथियों बात अगर हम जोशीमठ त्रासदी की करें तो मीडिया के अनुसार जोशीमठ मेंकरीब-करीब 600 के आसपास घरों, होटलों में खौफनाक दरारें आ गई है जो मीडिया में ग्राउंड रिपोर्टिंग से दिखाया जा रहा है। स्थानीय लोगों ने संभावना जताई है कि एनटीपीसी तपोवन विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना और हेलेन बाईपास के चलते यह हो रहा है जिससे सरकार ने आदेश जारी कर अगले आदेश तक यह कार्य रोक दिया है। उल्लेखनीय है कि, जोशीमठ में जमीन धंसने की घटनाओं से उत्तराखंड ही नहीं पूरा देश चिंतित है। आए दिन भू-धंसाव की डरा देने वाली तस्वीरें सामने आ रही हैं।
साथियों बात अगर हम पूर्व में आई रिपोर्ट और कारणों की करें तो, जोशीमठ शहर पर खतरे के लिए कई वजह जिम्मेदार हो सकती है, जिसमें छोटे-छोटे भूकंप और पानी से भूमि का कटाव शामिल है। इसमें अलकनंदा और धौलीगंगा दोनों ही नदियां जोशीमठ शहर के नीचे की मिट्टी का कटान कर रही, इसके अलावा शहर पर निर्माण का भारी दबाव और टनल जैसे निर्माण कार्य भी जिम्मेदार है। पहले से ही जो क्षेत्र एमसीटी लाइन पर हो, वहां इस तरह के दूसरे कारण शहर को खतरे में डालने के लिए काफी है एक तरफ धार्मिक भविष्यवाणी है तो वहीं दूसरी तरफ वैज्ञानिक कारण भी बताए जा रहे हैं। इन कारणों को आज या कल में नहीं खोजा गया है, बल्कि जोशीमठ पर आए इस खतरे को लेकर साल 1976 में भी भविष्यवाणी (जोशीमठ रिपोर्ट) कर दी गई थी। 1976 में तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर एमसी मिश्रा की अध्यक्षता वाली समिति ने एक रिपोर्ट दी थी, जिसमें जोशीमठ पर खतरे का जिक्र किया गया था। रिपोर्ट में साफ यह भी बतााय गया था कि भूस्खलन से जोशीमठ को बचाने के लिए स्थानीय लेागों कीभूमिका किस तरह तय की जा सकती है, वृक्षारोपण किया जा सकता है। हालांकि, इसके बाद भी कुछ रिसर्चर्स ने जोशीमठ शहर पर मंडरा रहे खतरे को अपनी रिपोर्ट में बयां किया था। साल 2001 में एमपीएस बिष्ट और पीयूष रौतेला ने भी ऐसा ही एक रिसर्च पेपर सबमिट किया था, इस रिसर्च पेपर में जोशीमठ के सेंट्रल हिमालयन में होने की बात लिखी गई थी।
साथियों बात अगर हम जोशीमठ शहर की करें तो,समुद्रतल से 2500 से लेकर 3050 मीटर की ऊंचाई पर बसे जोशीमठ शहर का धार्मिक और सामरिक महत्व है। यह देश के चारधामों में से एक बदरीनाथ का शीतकालीन गद्दीस्थल है तो सेना व अद्र्धसैनिक बलों के लिए महत्वपूर्ण पड़ाव भी है। इन दिनों यह खूबसूरत पहाड़ी शहर वहां हो रहे भूधंसाव और भवनों में निरंतर पड़ रही दरारों को लकर चर्चा में है। अलकनंदा की बाढ़ ने जोशीमठ समेत अन्य स्थानों पर मचाई थी तबाही शहर पर मंडराते अस्तित्व के खतरे को देखते हुए स्थानीय लोगआंदोलित हैं।सरकार भी समस्या केसमाधान के लिए पूरी ताकत झोंके हुए है। प्रभावित परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया जा रहा है और स्थिति से निबटने को कार्ययोजना का खाका खींचा जा रहा है। इस परिदृश्य के बीच बड़ा प्रश्न यह भी तैर रहा है कि जिस तरह की सक्रियता तंत्र अब दिखा रहा है, यदि इसे लेकर वह वर्ष 1976 में ही जाग जाता तो आज ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं होती। दरअसल, अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौर में अलकनंदा नदी की बाढ़ ने जोशीमठ समेत अन्य स्थानों पर तबाही मचाई थी। तब कई घरों में दरारें भी पड़ी थीं। इसके बाद सरकार ने आठ अप्रैल 1976 को गढ़वाल के तत्कालीन मंडलायुक्त महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में कमेटी गठित की। इसमें लोनिवि, सिंचाई विभाग, रुड़की इंजीनियरिंग कालेज (अब आइआइटी) के विशेषज्ञों के साथ ही भूविज्ञानियों के अलावा स्थानीय प्रबुद्धजनों को भी शामिल किया गया।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि आओ कुदरती संसाधनों से छेड़छाड़ रोकने का संकल्प करें। जोशीमठ के अस्तित्व पर संकट - कुदरत की कराई या फिर मानवीय चतुराई की कीया कराई? देर आए दुरुस्त आए की तर्ज़ पर जोशीमठ सहित संभावित त्रासदी स्थलों के लिए तत्काल एक्शन प्लान कर क्रियान्वयन की ज़रूरत है।
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