बाबाओं का झूठा बल, अंधविश्वास का दलदल
हमारा देश वैज्ञानिक दृष्टि से कितना पिछड़ा हुआ है, यह सब रोज-रोज के ऐसे कारनामे देखकर हम समझ सकते हैं, हमारे भारत की महिलाओं में कभी माताएं आती रहती है तो पुरुषों में कभी अमुक आते रहते हैं, आखिर यह अंधविश्वास और पाखंडवाद हमारे देश को किस दलदल में ले जाकर धकेलेगा। हम इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते और भारत की लाखों करोड़ों जनता इन जैसे पाखंडियों के जाल में फंस कर के अंधविश्वास और पाखंड के दलदल में धंसते जा रहे हैं।पढा लिखा व्यक्ति यदि अपने आप को अंधविश्वास, मनुवाद, पाखण्ड की दलदल से बाहर नहीं निकाल पाए तो उसके शिक्षित होने का कोई मतलब नहीं है। किसी महापुरुष ने कहा था शिक्षा वह शेरनी का दूध है जो जितना पिएगा उतना दहाड़ेगा। इसको अंधविश्वास के दलदल में मत धकेलो। स्वामी विवेकानंद ने कहा था- "मैं आप लोगों को अंधविश्वासी मूर्खों के बजाय पक्के अनीश्वरवादियों के रूप में देखना ज्यादा पसंद करूंगा। अनीश्वरवादी जीवित तो होता है, वह किसी काम तो आ सकता है। किन्तु जब अंधविश्वास जकड़ लेता है तब तो मस्तिष्क ही मृतप्राय हो जाता है, बुद्धि जम जाती है और मनुष्य पतन के दलदल में अधिकाधिक गहरे डूबता जाता है।" और भी ,"यह कहीं ज्यादा अच्छा है कि तर्क और युक्ति का अनुसरण करते हुए लोग अनीश्वरवादी बन जायें- बजाय इसके कि किसी के कह देने मात्र से अंधों की तरह बीस करोड़ देवी-देवताओं को पूजने लगें।"
-प्रियंका सौरभ
हमारा देश वैज्ञानिक दृष्टि से कितना पिछड़ा हुआ है, यह सब रोज-रोज के ऐसे कारनामे देखकर हम समझ सकते हैं, हमारे भारत की महिलाओं में कभी माताएं आती रहती है तो पुरुषों में कभी अमुक आते रहते हैं, आखिर यह अंधविश्वास और पाखंडवाद हमारे देश को किस दलदल में ले जाकर धकेलेगा। हम इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते और भारत की लाखों करोड़ों जनता इन जैसे पाखंडियों के जाल में फंस कर के अंधविश्वास और पाखंड के दलदल में धंसते जा रहे हैं।
हमारे देश में औरतों के दुःख का तो ये हाल है कि उनके सुख अलग हो सकते हैं, पर दुःख सबके लगभग एक से ही। इसलिए इन बाबाओं के लिए औरतों के दुखों का आकलन करना मुश्किल नहीं है, बाबा इन्हें दुःख बताते हैं और ये चमत्कार मानकर अपने दुखों से मुक्ति पाने के नाम पर अधिकांश औरतें टोने - टोटके तक करना शुरू कर देती है। जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा मोहल्ले की उस सड़क ने भुगता जिस पर सुबह -सुबह कभी बताशे, कभी नींबू तो कभी दिया रखा मिलता है और उस दिन किसी भी घर में किसी को सिर दर्द भी हो जाये तो इल्ज़ाम इन्ही नींबू, बताशों के सर आता है।
ये सब आज से बीस साल पहले कौतूहल भरा था कि मोहल्ले के किसी ना किसी घर से रोज़ टोटका होने की खबर आ जाती और हम जैसे साइंस पढ़ने वाले या पढ़ चुके बच्चे इस पर भरोसा भी करते। हमारे पास भरोसा ना करने का कोई ऑप्शन नहीं था। क्योंकि ऐसी चीजें हमारी परवरिश का हिस्सा थीं। शायद अब फिर भी कम हो गया हो। पर पहले ऐसे ढोंगी बाबाओं से चबूतरे गुलज़ार रहते। एक बार मेरे मेरे ही किसी रिश्तेदार के चबूतरे पर आये एक बाबा ने सोने की एक चेन को दो बनाने का दावा करके पढ़े - लिखे परिवार की महिलाओं को भरी दोपहरी में चूना लगाया था। मेरे ज़हन में ऐसे ढोंगी बाबाओं की हज़ारों कहानियाँ हैं और मुझसे जुड़े हुए लोग जो इसे पढ़ रहे हैं उनके भी मन में होंगी ही।
पर ये सब जानते हुए भी हम उसी दलदल में जाते हैं। जहाँ फंसने की आशंका का हमें पता होता है। हम इंसान हैं, कभी -कभी दुःख हमें इस हद तक तोड़ता है कि अपनी पीड़ा तो इंसान फिर भी सहन कर ले। लेकिन बात जब परिवार और खासकर बच्चों की हो तो उनके कष्टों के निवारण के लिए वो नंगे पैर आग पर चलने को भी तैयार हो जाएगा। इसलिए हम सब कितने ही दावे कर लें पर कहीं ना कहीं अंधविश्वास के झांसे में आ ही जाते हैं, और ये जानते हुए भी आते हैं कि इससे कुछ नहीं होगा।
हमारे घरों में नज़र उतारना इसका सबसे बढ़िया उदाहरण है, गांवों का तो खासकर ये हाल है कि बीमारी कोई भी हो वो सबसे पहला इलाज नज़र उतारकर ही करते हैं। इसका मतलब ये नहीं कि बीमार को डॉक्टर के पास नहीं ले जाया जा रहा, वो दवाइयाँ ले रहा है। पर जब अपना कोई ठीक ना हो तो सपने में भी बताए नुस्ख़े पर, हम जैसे लोग भरोसा कर लेते हैं और विवश होकर कभी -कभी कुछ नहीं सूझता तो उसकी बीमारी में ख़ुद रोते हुए उसके ऊपर चप्पल ही घुमाने लगते है। ये जानते हुए भी कि ये अंधविश्वास है।
ऐसे पलों में लोग बहुत कमजोर हो जाते हैं और लगता है कि मेरा अपना कैसे भी ठीक होना चाहिए। इसलिए मैं इन बाबाओं के दरबार में तकलीफ़ लिये लोगों को रोते बिलखते देखती हूँ तो समझ पातें है उनकी पीड़ा। इनमें से लाखों लोग जानते हैं कि ये सब ढोंग है, पर वे उस कष्ट के आगे हार जाते हैं जो उनका करीबी भोग रहा होता है या वे स्वयं ख़ुद और ऐसे स्थानों और बाबाओं के आगे नतमस्तक हो जाते हैं। ये पीढ़ियों से चलता आया है और आगे भी चलेगा, हम मनुष्य हैं, हम दूसरों के कमजोर पलों में उसे छलना बख़ूबी जानते हैं।
सही मायने में हमारे देश का विकास इस पाखंड और अंधविश्वास से नहीं बल्कि वैज्ञानिक सोच को बढ़ाने से होगा। आज का भारत मूत पिएगा, गोबर से नहाएगा, गोबर की पूजा करेगा तो उनका दिमाग भी गोबर की तरह ही रहेगा। अंधविश्वास पाखंड में ही उलझा रहेगा। हमारा देश कभी तरक्की नहीं कर पाएगा। कोरिया, चीन, जापान, भूटान, अमेरिका जैसे मिसाइल वगैरह नहीं तैयार कर पाएगा, ना आगे बढ़ पाएगा। अंधविश्वास और पाखंड में ही फंस के रह जाएगा।
भारत में 90% अंधविश्वासी लोग हैं, इस अंधविश्वास के चपेट में, लगभग हर धर्म के नर-नारी है, जो इस दलदल में फंसते जा रहे हैं, अंधविश्वास देश पर अभिशाप है, इस अंधविश्वास को जड़ से खत्म करने के लिए, भारत सरकार/राज्य सरकार अथवा गैर सरकारी संगठनों को एक मुहिम चला कर, इन पाखंडियों का पर्दाफाश करते रहना चाहिए, ताकि फिर कोई पाखंडी भारत में पैदा ना हो।
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प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार
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