आओ अपनी काबिलियत का लोहा मनवाएं
आओ अपने व्यक्तित्व को अपनी पहचान बनाकर इतिहास रचेंव्यक्तित्व निर्माण एक सतत प्रक्रिया है, जो हर दिन प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से उत्कृष्टता/ निकुष्टता की ओर बढ़ता रहता है, हमें उत्कृष्टता का दृढ़ संकल्प लेना है - एडवोकेट किशन भावनानीगोंदिया - हजारों वर्ष पुरानी भारतीय संस्कृति के बारे में कहा जाता है कि सृष्टि में मानवीय योनि की पहचान यहीं से हुई है, जो बंदरों से विकसित होते हुए माननीय योनि तक विकसित हुई और बौद्धिक क्षमता का विकास होते गया, जिसकी भव्यता हम वर्तमान स्तर में देख रहे हैं कि मानवीय योनि ने दुनिया को कहां से कहां और कैसी डिजिटल स्थिति में पहुंचा दिया कि, साक्षात मानवीय आकृति रोबोट बना दिया जो पूरी तरह से माननीय कार्य करने में सक्षम है, जो मानवीय बौद्धिक क्षमता का प्रमाण है। परंतु अगर हम इस तकनीकी प्रौद्योगिकी मेड मानव से हटकर सृष्टि रचयिता मानव में तकनीकी स्तरपर गुणों, व्यक्तित्व का विकास करने पर ध्यान दें तो हर मानवीय जीव अपने अपने स्तर पर एक अनोखा इतिहास रच सकते हैं!! जिसके सहयोग से हम विश्व को कहां से कहां ले जा सकते हैं। चूंकि हम यहां मानवीय गुणों के विकास की बात कर रहे हैं तो सबसे महत्वपूर्ण गुण मानवीय व्यक्तित्व है, जो हर मानव अपने आप में पहचानकर उसमें अपने आप को ढाले तो वह स्वयं इतिहास रच सकता है। इसलिए आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे,आओ अपने व्यक्तित्व को अपनीपहचान बनाकर इतिहास रचें।
साथियों बात अगर हम भारतीय संस्कृति में पले मानवीय जीव की करें तो मेरा मानना है कि सदियों से हर मानवीय जीव की अभिलाषा रहती है कि मेरे बच्चे इतनी ऊंची सकारात्मक तरक्की करें कि मैं अपने बच्चों के नाम से पहचाना जाऊं कि यह फ़लाने के पिता हैं! बिल्कुल सही बात! बस! इसके लिए हर व्यक्ति को चाहे वह मेल हो या फीमेल उसके संबंध में माता-पिता शिक्षक समाज सबका एक ही लक्ष्य होना चाहिएकि अपने बच्चों के व्यक्तित्व को निखारें क्योंकि, हर बालक अनगढ़ पत्थर की तरह है जिसमें सुन्दर मूर्ति छिपी है, जिसे शिल्पी की आँख देख पाती है। वह उसे तराश कर सुन्दर मूर्ति में बदल सकता है। क्योंकि मूर्ति पहले से ही पत्थर में मौजूद होती है शिल्पी तो बस उस फालतू पत्थर को जिसमें मूर्ति ढकी होती है, एक तरफ कर देता है और सुन्दर मूर्ति प्रकट हो जाती है। माता-पिता शिक्षक और समाज बालक को इसी प्रकार सँवार कर खूबसूरत व्यक्तित्व प्रदान करते हैं। एक अच्छे व्यक्तित्व निर्माण के मूल्यों के नियम बच्चों में रखना जरूरी है। इसलिए सबसे पहले बच्चों में या हमने खुद में समझदारी, धैर्य, उच्च विचार, गुस्से पर कंट्रोल सच्चाई पारदर्शिता को अपनाकर खुद को पहचाने।
साथियों बात अगर हम अपने व्यक्तित्व की करें तो, हर मनुष्य का अपना-अपना व्यक्तित्व है। वही मनुष्य की पहचान है। कोटि-कोटि मनु्ष्यों की भीड़ में भी वह अपने निराले व्यक्तित्व के कारण पहचान लिया जाएगा। यही उसकी विशेषता है। यही उसका व्यक्तित्व है। प्रकृति का यह नियम है कि एक मनुष्यकी आकृति दूसरेसे भिन्न है।आकृति का यह जन्मजात भेद आकृति तक ही सीमित नहीं है; उसके स्वभाव, संस्कार और उसकी प्रवृत्तियों में भी वही असमानता रहती है। व्यक्तित्व-विकास में वंशानुक्रम तथा परिवेश दो प्रधान तत्त्व हैं। वंशानुक्रम व्यक्ति को जन्मजात शक्तियाँ प्रदान करता है। परिवेश उसे इन शक्तियों को सिद्धि के लिए सुविधाएँ प्रदान करता है। बालक के व्यक्तित्व पर सामाजिक परिवेश प्रबल प्रभाव डालता है। ज्यों-ज्यों बालक विकसित होता जाता है, वह उस समाज या समुदाय की शैली को आत्मसात् कर लेता है, जिसमें वह बड़ा होता है और उस व्यक्ति के गुण ही व्यक्तित्व पर गहरी छाप छोड़ते हैं।
साथियों सब बच्चे जुदा-जुदा परिस्थितियों में रहते हैं। उन परिस्थितियों के प्रति मनोभाव बनाने में भिन्न-भिन्न चरित्रों वाले माता-पिता से बहुत कुछ सीखते हैं। अपने अध्यापकों से या संगी-साथियों से भी सीखते हैं। किन्तु जो कुछ वे देखते हैं या सुनते हैं, सभी कुछ ग्रहण नहीं कर सकते। वह सब इतना परस्पर-विरोधी होता है कि उसे ग्रहण करना सम्भव नहीं होता। ग्रहण करने से पूर्व उन्हें चुनाव करना होता है। स्वयं निर्णय करना होता है कि कौन-से गुण ग्राह्य हैं और कौन-से त्याज्य। यही चुनाव का अधिकार बच्चे को भी आत्मनिर्णय का अधिकार देता है। प्रत्येक मनुष्य के मन में एक ही घटना के प्रति जुदा-जुदा प्रतिक्रिया होती है। एक ही साथ रहने वाले बहुत-से युवक एक-सी परिस्थितियों में से गुज़रते हैं, किन्तु उन परिस्थितियों को प्रत्येक युवक भिन्न दृष्टि से देखता है, उसके मन में अलग-अलग प्रतिक्रियाएं होती है। यही प्रतिक्रियाएं हमें अपने जीवन का दृष्टिकोण बनाने में सहायक होती हैं।हम अपने मालिक आप हैं, अपना चरित्र स्वयं बनाते हैं। ऐसा न हो तो जीवन में संघर्ष ही न हो, परिस्थितियां स्वयं हमारे चरित्र को बना दें, हमारा जीवन कठपुतली की तरह बाह्य घटनाओं का गुलाम हो जाए। सौभाग्य से ऐसा नहीं है। मनुष्य स्वयं अपना स्वामी है। अपना चरित्र वह स्वयं बनाता है। चरित्र-निर्माण के लिए उसे परिस्थितियों को अनुकूल या सबल बनाने की नहीं बल्कि आत्मनिर्णय की शक्ति को प्रयोग में लाने की आवश्यकता है।
साथियों बात अगर हम व्यक्तित्व विकास में ख़ुद की पहल की करें तो, हमेशा अपने से स्वयं कहें ! मैं कर सकता हूं, ये मेरे लिए है। इससे जीवन में आगे बढ़ने का प्रोत्साहन मिलता है। साथ ही इससे आत्म सम्मान बढ़ता है और व्यक्तित्व में भी निखर आता है। अपने अन्दर अच्छा व्यक्तित्व विकास लाने का एक और सबसे बाड़ा कार्य है अपने विश्वदृष्टि में बदलाव लाना। दूसरों की बात को ध्यान से सुनें और अपने दिमाग के बल पर अपना सुझाव या उत्तर दें। अपने फैसलों को खुद के दम पर पूरा करें क्योंकि दूसरों के फैसलों पर चलनाया कदम उठान असफलता का कारण है। चाहें आपकी बातें हो या आपके कार्य, सभी जगह सकारात्मक सोच का होना अच्छे व्यक्तित्व विकास के लिए बहुत आवश्यक है। हमारे सोचने का तरीका यह तय करता है कि हम अपना कार्य किस प्रकार और किस हद तक पूरा कर सकेंगे। सकारात्मक विचारों से आत्मविश्वास बढ़ता है और व्यक्तित्व को बढाता है। जीवन में कई प्रकार की ऊँची-नीची परिस्तिथियाँ आती हैं परन्तु एक सकारात्मक सोच रखने वाला व्यक्ति हमेशा सही नज़र से सही रास्ते को देखता है।
साथियों बात अगर हम अपने प्रतिभा और बहादुरी से इतिहास रचने वाले कुछ भारतीयों की करें तो वैसे तो, अगर भारत के पिछले 100 सालों के इतिहास को देखें तो देश में कई बड़ी महान हस्तियों ने जन्म लिया है, इनमें से कुछ हमें छोड़कर चले गए हैं तो कुछ को हम भूल से गये है। भारत को आज़ाद कराने में कई महान क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहूति दी थी, उस दौर में क्रांतिकारियों के अलावा भी कई ऐसे लोग थे जिन्होंने पूरी दुनिया में भारत का नाम रौशन किया था, लेकिन इन महान हस्तियों को हम आज शायद कुछ भूल चुके हैं। यहां हम कुछ ऐसे नामों की चर्चा करेंगे जिन्हें शायद अनेकों लोग ना जानते हो (1) भारतीय शास्त्रीय संगीत की पहली ‘संगीत साम्राज्ञी’भारतीय शास्त्रीय गायक केसरबाई केरकर ने सन 1938 में ‘सुरश्री’ (संगीत की रानी) का ख़िताब जीता था। सबसे ख़ास बात केसरबाई के संगीत की गूंज अंतरिक्ष तक पहुंची थी।(2) सत्येंद्रनाथ टैगोर,लेखक, कवि, साहित्यकार, संगीतकार और समाज सुधारक के तौर पर जाने जाते हैं। सन 1864 में उन्होंने ‘इंडियन सिविल सर्विस’ जॉइन की थी, टैगोर को भारत के पहले आईएएस अधिकारी के तौर पर भी जाना जाता है।वोविश्वविख्यात कवि रविंद्रनाथ टैगोर के बड़े भाई थे।(3)दुनियाभर में ह्यूमन कंप्यूटर के नाम से मशहूर शकुंतला देवी बड़ी से बड़ी संख्या को गुणा करके मिनटों में उसका हल निकलने के अपने कौशल के लिए दुनियाभर में मशहूर थीं।(4) भारत की पहली महिला चार्टर्ड एकाउंटेंट आर. शिवाभोगम भारत की पहलीमहिला चार्टर्ड एकाउंटेंट के रूप में जाती हैं। (5) क्वॉन्टम फ़िजिक्स की खोज करने वाले सत्येंद्र नाथ बोस को सन 1920 के दशक में क्वॉन्टम फिजिक्स में किए गए उनके शोध के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। (6) टाटा की विरासत को पूरी दुनिया में फ़ैलाना जमशेदपुर शहर का नाम रतन टाटा के पूर्वज जमशेदजी नसरवानजी टाटा के नाम पर रखा गया था।(7) हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को मशहूर बनाने वाले उस्ताद बड़े गुलाम अली ख़ान।(8) भारत की सबसे कम उम्र की महिला क्रांतिकारी सुनीति चौधरी को भारत की सबसे कम उम्र की महिला क्रांतिकारी के रूप में जाना जाता है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि, आओ अपनी काबिलियत का लोहा मनवाएं। आओ अपने व्यक्तित्व को अपनी पहचान बनाकर इतिहास रचें। व्यक्तित्व निर्माण एक सतत प्रक्रिया है जो हर दिन प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से उत्कृष्टता/निकुष्टता की ओर बढ़ता रहता है। हमें उत्कृष्टता का दृढ़ संकल्प लेना है।
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