Gazal-ye dhuwan sa ab kahan se uthata hai

गजल

ये धुआँ सा अब कहाँ से उठता है ।
लगता है गरीब के घर ही जलते हैं ।।

कुछ लोग तो रोटी को तरसते हैं यहाँ ।
देश में अब तो हराम ही यहाँ पलते हैं ।।

चोर-उचकौं की चारों तरफअब चाँदी है ।
भले लोग सहमे से यहाँ हरदम डरते हैं ।।

पानी के संकट का डर अब सबको है ।
फिर भी लोग गंगा माँ को दूषित करते हैं ।।

राज की खातिर ये विषधर विष घोलते हैं ।
अब तो नेता जी झूठ के सहारे ही चलते हैं ।।

देश में अब आपसी सद्भाव की जरुरत है ।
क्यों की अब अमन को भी खतरे लगते हैं।।

"नाचीज"अब मिल जुल सद्भाव कायम करो।
लगता है कुछ अब तो अनर्थ होते से लगते हैं ।।

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मईनुदीन कोहरी"नाचीज बीकानेरी"

मईनुदीन कोहरी"नाचीज़ बीकानेरी"
मोहल्ला कोहरियांन बीकानेर

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