राधा
कृष्ण के प्यार में बचपन से रची बसी थी राधा।खेलते खेलते अपना सर्वस्व मान चुकी थी राधा।उसकी मुरली की धुन के पीछे नाचती जुमती थी राधा। राधा का भी स्थान किशन के अंतरमन में था।दोनों का दिव्य प्रेम था जो किसी भी प्रेम कहानी से उत्कृष्ट हैं, हम आज भी जब राधा किशन के प्रेम के गीत( भजन) गातें हैं तो सदृश् उन्हे देख पाते हैं,अनुभव कर पाते हैं।त्याग ही इस प्रेम की नीव हैं जो कर्तव्य के सामने समर्पित हो प्रीतम से बिछड़ ने के लिए तैयार हो गया था।कृष्ण से बिछड़ कर राधा आधी रह गईं फिर भी मथुरा जाने से रोक नहीं पाईं।मधुबन,ग्वाल,गोपियां, गायेँ,और नंद यशोदा सभी तो विरह में बेहाल थे किंतु ये प्रेम की जीत ही थी जो बिछड़ के भी कभी बिछड़ नहीं पाएं।नहीं राधारानी ने विरह के गीत गा कर कृष्ण के मनोबल को तोड़ा और ना ही कर्तव्य से मुख मोड़ने के लिए विवश किया,सच्चे प्रेम की पराकाष्ठा भी तो यही होती हैं।कृष्ण भी जानते थे उनके विरह में पूरा गोकुल व्याकुल हो जायेगा फिर भी अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक कृष्ण सब कुछ जानते हुए भी ,शायद दिल पर पत्थर रख मथुरा गए और जो मुरली राधा के लिए बजाया करते थे उसे अपने से अलग कर लिया।युगपुरुष ने जिस कार्य के लिए जन्म लिया था उसे पूर्ण करने सोलहकलासम्पूर्ण भगवान विष्णु के अवतार ने त्याग दिया था अपना बचपन और बचपन का प्यार।यही तो हैं सम्पूर्ण प्यार की इन्तहा।यहां न ही कोई विरह के गीत गाएं, न ही कोई मरने निकला, न ही किसी ने मिलने के लिए बगावत की।कोई कैसे समझे कि प्यार किसे कहते हैं।
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जयश्री बिरमी
अहमदाबाद (गुजरात)
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