अंतिम संदेश।
जिंदगी का क्या भरोसा,कब हमारा आखरी पल हो,
कभी खुद को तो कभी लोगों को कोसा,
पर कौन जाने कि जीवन में कल हो।
आज है, इसी वक्त है,
जो अभी है वही सच है,
कभी खुद के साथ तो कभी लोगों से सख्त है,
किसी ना किसी चीज का हमेशा लालच है।
ऐसा ना हो कि आखिरी क्षण ना मिले,
धन्यवाद दिए बिना ही चले जाएं,
सख्क्ति में मुस्कान के फूल ना खिले,
आभार प्रकट करें बिना ही मर जाए।
हम तुम्हें तुम हमें अलविदा कहो,
इससे पहले एक बात सुनाएं,
जीवन में तुम खुश रहो,
यही है हमारी आशा और दुआएं।
जाने से पहले यह कहना चाहे,
किसी से गिला शिकवा नहीं
उस आखिरी वक्त में मौका ना पाए,
इसलिए वक्त रहते यह बात है कहीं।
माता पिता और शिक्षकों को,
दे कोटि-कोटि प्रेम और आभार,
मित्र जनों और सभी को,
भी जरूर दे ढेर सारा प्यार।
इंसानियत के अनगिनत करम हो,
संभावित हर सपने साकार हो,
आखिरी वक्त पर भी हम प्रसन्न हो,
हमारे सफल जीवन की जय जय कार हो।
तो आज से ही करे आखरी वक्त की तैयारी,
जियो रोज ऐसे, जैसे हो आखरी दिन,
इंसानियत हो, जज्बा हो और हो दिलदारी,
पता नहीं कब जाए यह अनमोल जीवन छीन।।
About author
डॉ. माध्वी बोरसे।
(स्वरचित व मौलिक रचना)
राजस्थान (रावतभाटा)
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