चलते चीते चाल।।
माना चीते देश में, हुए सही आयात।
मगर करेगा कौन अब, गदहों का निर्यात।।आये चीते देश में, खर्चे खूब करोड़।
भूखी गाय बिलख रही, नहीं मौत का ओड़।।
सौरभ मेरे देश में, चढ़ते चीते प्लेन।
गौ मात को जगह नहीं, फेंक रही है क्रेन ।।
भरे भुवन मे चीखती, माता करे पुकार।
चीतों पर चित आ गया, कौन करे दुलार।।
क्या यही है सभ्यता, और यही संस्कार।
मांग गाय के नाम पर, चीता हिस्सेदार।।
ये चीते की दहाड़ है, गुर्राहट; कुछ और।
दिन अच्छे है आ गए, या बदल गया दौर।।
मसलों पर अब है नहीं, आज देश का ध्यान।
चिंता गौ की कर रहे, कर चीता गुणगान।।
देख सको तो देख लो, अब भारत का हाल।
गैया कब तक अब बचे, चलते चीते चाल।।
कौन किसी का साथ दे, किस विध ढूँढे़ राम।
गाय धरा पर जब करे, चीते खुल आराम।।
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- डॉo सत्यवान 'सौरभ'
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,
333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045
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