समाज की मोटी खाल

 व्यंग्य

समाज की मोटी खाल 

हमारे समाज की खाल बहुत मोटी है l उसमें रहने वाले लंपट किस्म के शिक्षकों की उससे भी ज्यादा मोटी l इनकी तुलना अगर गैंड़े की खाल से की जाई तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी l जो अपने घर के या अपने व्यक्तिगत तनावों को मासूम नौनिहालों पर आजमाते हैं l इनके अलावा हमारे समाज में कुछ लंपट किस्म के अमानुषिक प्रवृति की जातियाँ भी पाई जाती हैं l जिनके लिये दलित और वाल्मीकि समाज अंत्यज हैं l इनको समाज में आज भी जाति सूचक नामों से पुकारा जाता है l ये लंपट और अराजक जातियाँ ही समता मूलक समाज के निर्माण में सबसे बड़ी बाधा हैं l इनके लिये अन्न उपजाने वाला किसान - मजदूर अछूत हैं l लेकिन , इनका पेट जिस अन्न से भरता है , वो पवित्र है l 

मिट्टी के दीये बननाने वाला अछूत है , दीया पवित्र है l इसी तरह माली अछूत है l माली द्वारा बनाई जाने वाली माला पवित्र है l

ये भी सच है कि शिक्षक आदि - अनादिकाल से छात्रों के साथ सामाजिक भेदभाव करते रहें हैं l गुरूदक्षिणा में अँगूठा लेने वाला " तथाकथित शिक्षक " को आज भी समाज पूर्वाग्रही और सामाजिक विषमता पैदा करने वाले के तौर पर पहचानता है l वो आदर्श गुरू नहीं है l मुझे लगता है कि हमारे आज के शिक्षकों में द्रोणाचार्य की क्रूर आत्मा ही निवास करती है l जिनकी क्रूरता इस बात से झलकती है कि वो एक अबोध बच्चे को केवल घड़े से पानी निकालकर पीने भर से जान से मार देते हैं l कभी लगता है , इन शिक्षकों में ड्रेकुला या नरपिशाच की आत्मा निवास करती है l जो इन बच्चों को मार देता है l ऐसे ड्रेकुला की आत्मायें जमींदारों या क्रूर शासकों की रही होगी l जो जातीय गौरव और श्रेष्ठता के नाम पर कत्लेआम मचाती थी l

हमारे विधालयों में मार- खाने और शिक्षकों द्वारा पीटे जाने का भय हमारे स्कूली जीवण में भी रहा था l स्कूल ,पहुँचने पर कौन से टीचर कौन से विषय को पढ़ाते हैं l इस पर चर्चा होने के बजाए इस पर चर्चा ज्यादा होती थी , कि कौन से टीचर कितना ज्यादा पीटते हैं l शुरूआत में हम बच्चों को सातवीं - आठवीं तक बहुत पनिशमेंट मिलती थी l 

 दिवंगत जुगाड़ू जी शुरूआती दौर में करीब प्राथमिक विधालय से हमारे सहपाठी मित्र रहें थें l उनका एक लेटर नौवीं कक्षा में हमारे गणित के एक टीचर चौबे जी ने पकड़ लिया था l फिर जुगाडू जी को खूब ठोंका l भरी क्लास में सभी के सामने भारी बेइज्जती हुई l अगले दिन हमारे क्लास में हम लड़कों के ग्रुप में मीटिंग फिक्स हुई l जूगाडू जी हमारे ग्रुप के छैला बाबू थेंं l क्लास के माॅनिटर भी वही थें l हमारे नेता के ऊपर हमला ! हमें ये नागवार गुजरा l 

हम सबने गणित के टीचर चौबे जी को सबक सीखाने की तरकीब सोची l चौबे जी रोज शाम को चौक से चाय पीकर अपने घर जाते थें l एक दिन पूर्व निधारित योजना के तहत हम मित्रों ने शाम को अँधेरे का फायदा उठाकर चौबे जी को चीनी का मोटा बोरा पहनाकर इतनी सुताई की कि वो महीनों हल्दी वाला दूध पीते रहे l

 फिर , दूबारा उन्होंने क्लास में किसी लड़के को नहीं सुता l तो इस तरह हम छात्रों ने चौबे सर की सुताई की थी l यहाँ , ये प्रतीकात्मक तौर पर बताया जा रहा है , जिससे लंपट और क्रूर किस्म के प्रेत्माधारी आधुनिक जीवित लेकिन क्रूर शिक्षकों की पिटाई आज भी शाम को चीनी का मोटा बोरा ओढ़ाकर जुगाडू जी की आत्मा सुताई करती है l कई बार हमारे और अन्य विधालयों के आताताईयी क्रूर शिक्षकों की पिटाई शाम - शाम को होती रही है l जुगाडू जी का भूत आताताईयों को लाठी से सूतता है l

About author 

Mahesh kumar Keshari

परिचय - 
नाम - महेश कुमार केशरी
जन्म -6 -11 -1982 ( बलिया, उ. प्र.) 
शिक्षा - 1-विकास में श्रमिक में प्रमाण पत्र (सी. एल. डी. , इग्नू से) 
2- इतिहास में स्नातक ( इग्नू से) 
3- दर्शन शास्त्र में स्नातक ( विनोबा भावे वि. वि. से) 

अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन - सेतु आनलाईन पत्रिका (पिटसबर्ग अमेरिका से प्रकाशित) .

राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन- वागर्थ , पाखी , कथाक्रम, कथाबिंब , विभोम - स्वर , परिंदे , गाँव के लोग , हिमप्रस्थ , किस्सा , पुरवाई, अभिदेशक, , हस्ताक्षर , मुक्तांचल , शब्दिता , संकल्य , मुद्राराक्षस उवाच , पुष्पगंधा , 
अंतिम जन , प्राची , हरिगंधा, नेपथ्य, एक नई सुबह, एक और अंतरीप , दुनिया इन दिनों , रचना उत्सव, स्पर्श , सोच - विचार, व्यंग्य - यात्रा, समय-सुरभि- अनंत, ककसार, अभिनव प्रयास, सुखनवर , समकालीन स्पंदन, साहित्य समीर दस्तक, , विश्वगाथा, स्पंदन, अनिश, साहित्य सुषमा, प्रणाम- पर्यटन , हॉटलाइन, चाणक्य वार्ता, दलित दस्तक , सुगंध, 
नवनिकष, कविकुंभ, वीणा, यथावत , हिंदुस्तानी जबान, आलोकपर्व , साहित्य सरस्वती, युद्धरत आम आदमी , सरस्वती सुमन, संगिनी,समकालीन त्रिवेणी, मधुराक्षर, प्रेरणा अंशु , तेजस, दि - अंडरलाईन,शुभ तारिक , मुस्कान एक एहसास, सुबह की धूप, आत्मदृष्टि , हाशिये की आवाज, परिवर्तन , युवा सृजन, अक्षर वार्ता , सहचर , युवा -दृष्टि , संपर्क भाषा भारती , दृष्टिपात, नव साहित्य त्रिवेणी , नवकिरण , अरण्य वाणी, अमर उजाला, पंजाब केसरी , प्रभात खबर , राँची एक्स्प्रेस , दैनिक सवेरा , लोकमत समाचार , दैनिक जनवाणी , सच बेधड़क , डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट , नेशनल एक्स्प्रेस, इंदौर समाचार , युग जागरण, शार्प- रिपोर्टर, प्रखर गूंज साहित्यनामा, कमेरी दुनिया, आश्वसत के अलावे अन्य पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित . 

 चयन - (1 )प्रतिलिपि कथा - प्रतियोगिता 2020 में टाॅप 10 में कहानी " गिरफ्त " का चयन  

(2 ) पच्छिम दिशा का लंबा इंतजार ( कविता संकलन )
जब जँगल नहीं बचेंगे ( कविता संकलन ), मुआवजा ( कहानी संकलन ) 

(3)संपादन - प्रभुदयाल बंजारे के कविता संकलन " उनका जुर्म " का संपादन..

(4)-( www.boltizindgi.com) वेबसाइट पर कविताओं का प्रकाशन

(5) शब्द संयोजन पत्रिका में कविता " पिता के हाथ की रेखाएँ "
 का हिंदी से नेपाली भाषा में अनुवाद सुमी लोहानी जी द्वारा और " शब्द संयोजन " पत्रिका में प्रकाशन आसार-2021 अंक में.

(6) चयन - साझा काव्य संकलन " इक्कीस अलबेले कवियों की कविताएँ " में इक्कीस कविताएँ चयनित

(7) श्री सुधीर शर्मा जी द्वारा संपादित " हम बीस " लघुकथाओं के साझा लघुकथा संकलन में तीन लघुकथाएँ प्रकाशित 

(8) सृजनलोक प्रकाशन के द्वारा प्रकाशित और संतोष श्रेयंस द्वारा संपादित साझा कविता संकलन " मेरे पिता" में कविता प्रकाशित 

(9) डेली मिलाप समाचार पत्र ( हैदराबाद से प्रकाशित) दीपावली प्रतियोगिता -2021 में " आओ मिलकर दीप जलायें " कविता पुरस्कृत

(10) शहर परिक्रमा - पत्रिका फरवरी 2022- लघुकथा प्रतियोगिता में लघुकथा - " रावण" को प्रथम पुरस्कार

(11) कथारंग - वार्षिकी -2022-23 में कहानी " अंतिम बार " 
प्रकाशित

(12)व्यंग्य वार्षिकी -2022 में व्यंग्य प्रकाशित 

(13) कुछ लघुकथाओं और व्यंग्य का पंजाबी , उड़िया भाषा में अनुवाद और प्रकाशन 

(14)17-07-2022 - वर्ल्ड पंजाबी टाइम्स चैनल द्वारा लिया गया साक्षात्कार 

(15) पुरस्कार - सम्मान - नव साहित्य त्रिवेणी के द्वारा - अंर्तराष्ट्रीय हिंदी दिवस सम्मान -2021

संप्रति - स्वतंत्र लेखन एवं व्यवसाय
संपर्क- श्री बालाजी स्पोर्ट्स सेंटर, मेघदूत मार्केट फुसरो, बोकारो झारखंड -829144

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