लघुकथा –महिला सशक्तिकरण
सामान्यत: गांवों में महिलाओं की यानि कि लड़कियों की शिक्षा के प्रति कोई लक्ष नहीं देता हैं।एक आम सी बात मशहूर रहती हैं ’आगे जा कर तो घर और रसोई ही संभालनी हैं,पढ़ाई की क्या जरूरत हैं?’ गांव की कुछ लड़कियां पढ ने के लिए उत्सुक थी लेकिन घर परिवार से अनुमति नहीं मिल रही थी।तब मीना जो काफी चुस्त थी उसने बीड़ा उठाया,जब 7 वीं के बाद उनका अभ्यास बंद करवाया जा रहा था।उसने सुझाव दिया कि शिखा बहनजी को मिला जाएं।और सर्व सम्मति से वे लोग उनसे मिलने चली गई और हकीकत से विगत करवाया तो वह भी थोड़ी हैरान तो हुई किंतु सब को आश्वासन दे घर भेज दिया कि ’कुछ करती हूं।’लेकिन वह परेशान थी कि एक साथ 12 लड़कियां आगे अभ्यास नहीं कर पाएंगी।शिखाजी ने सरपंच से बात करने की सोची और दूसरे दिन जाके मिलने का तय कर घर चली गईं।वह व्यथित रही जब तक सरपंचजी से मिल नहीं लिया।शिखा जी ने कहा,” सरपंच जी ये तो बच्चियों की जिंदगी का सवाल हैं।एक शिक्षित नारी पूरे परिवार के उत्थान के लिए कार्य करती हैं यहां तो 12 जिंदगियों का सवाल हैं,क्या किया जाएं?”
सरपंच जी बोले,”शिखाजी आप सही कह रहीं हैं लेकिन उनके माता पिता पर कैसे दबाव लाया जाएं ये समझ में नहीं आ रहा।कोई कानून तो हैं नहीं जिससे उनके पर दबाव ला सकूं।आप ही बताएं क्या किया जाएं।"
शिखाजी कुछ देर चुप रही फिर बोली,” एक बात हो सकती हैं,आप उन सबकी मीटिंग बुलाएं,उन्हे मैं समझने की कोशिश करूंगी।”
सरपंच जी भी सहमत हुएं और सभी लड़कियों के पिताजी को मीटिंग में बुलाया गया।दूसरे दिन शाम के समय सभी चोपाल में इक्कठा हुएं तो सरपंच जी ने मीटिंग का उद्देश्य सब के सामने रखा।सभी आपस में बात कर विरोध करतें हो वैसे बातें करना शुरू कर दी।
तब शिखाजी ने बात संभाल ली और बोली,”आप सभी से बिनती हैं कि आप हमारी बातों पर गौर करें।आप सब की बेटियां पूरे गांव की बेटियां हैं,और उनके भविष्य के बारे में बात करना अति आवश्यक हैं।" तो सब एक साथ बोले ,” अगर पाठशाला अपने गांव में नहीं हैं तो उन्हें हम पास के गांव में पढ़ने नहीं भेज सकते।” और सब उठ कर जाने लगे तो सरपंच जी ने उन्हे रोका और समझाने की कोशिश की लेकिन वे मानने को तैयार नहीं थे।लड़कियों का 7 किलोमीटर तक चल कर जाना और आना उनके लिए थकान का कारण बनेगा और सुरक्षा का भी प्रश्न था।तब शिखाजी ने उन्हे बताया कि सरकार की और से कम कीमत में साइकिलों का आवंटन करवा सकतें हैं तो क्या वे भेजेंगे अपनी बच्चियों को पढ़ने के लिए।तब थोड़ी देर की चुप्पी के बाद सब आपस में बातें करने लगे और सब ने सहमति दिखाई।
फिर तो शिखाजी और सरपंच जी की खुशी से बांछे खिल गईं और दोनों ने अपने कार्य का शुभारंभ उसी दिन कर दिया।कुछ दिनों में सम्मति पत्रक आया सब के हस्ताक्षर हुएं और नया सत्र शुरू होने से पहले सब की साइकिलें आ गई।अभी लड़कियां एक साथ साइकिल पर पाठशाला जानें लगी।लग रहा था एक स्त्री सशक्तिकरण की फौज जा रहीं हो।सब ने सरपंच जी , शिखा जी और मीना को धन्यवाद बोल राम का नाम ले पढ़ाई शुरू कर दी।
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जयश्री बिरमी
अहमदाबाद (गुजरात)
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