माँ के नाम पत्र
सुधीर श्रीवास्तव |
प्यारी माँ
शत् शत् नमन, वंदन
आशा है कि आप अनंत सत्ता के साये में निश्चिंत होगी। परंतु मैं निश्चिंत नहीं हो पा रहा हूं। पिता जी के जाने के बाद आपके स्नेह और ममत्व के साये में भी मैंने तमाम गुस्ताखियां की होंगी। जिसे आपने नजर अंदाज किया और अपना विश्वास बनाए रखा। अंतिम यात्रा पर जाने से पूर्व आपने मुझे दीदी और छोटे की जो जिम्मेदारी सौंपी थी, उसे मैंने यथा संभव सामर्थ्य अनुसार निभाने का प्रयास किया है। जिससे आपको सूकून का अहसास होता होगा।
आपके जाने के बाद दीदी ने तुम्हारी जगह ले ली, कभी हम दोनों को आपके न होने का अहसास तक न होने दिया। आज भी अपने घर परिवार में व्यस्तता के बाद भी वह हम दोनों का बहुत ध्यान रखती हैं। लेकिन मैं जानता हूं कि वो छुप छुपकर रोती भी हैं। परंतु हमें आभास तक नहीं होने देती।
जब दीदी विदा होकर ससुराल जा रही थी तब उसने मुझसे कहा था- बड़े! अब तू सिर्फ हमारा भाई ही नहीं माँ और पिता भी है, इसका ख्याल रखना। हमें सँभालने के चक्कर में वो खुलकर रो भी नहीं पा रही थीं।
आप और पापा के आशीर्वाद से सब कुछ है। बस नहीं है तो माँ का प्यार और पापा का संरक्षण। वास्तविकता में भले ही आप दोनों हमसे बहुत दूर हों, पर आपके होने का अहसास हमें सदा ही रहता है। आप दोनों के लिए एक अलग कमरा सबसे आगे की ओर बनाया है और आप दोनों को विराजमान कर हमनें आप दोनों को जीवंत कर रखा है। खाली समय आप दोनों के पास ही गुजारता हूं। मन को बड़ा सूकून मिलता है। छोटा आज भी आपको याद कर बच्चों की तरह रोता है।
हम तीनों के बच्चे भी आप दोनों से जैसे घुले मिले हैं। आपकी नतिनी शादी योग्य हो गई है। छोटे ने उसका रिश्ता लगभग पक्का कर दिया है। बहुत जिम्मेदार हो गया है। दीदी भी बहुत खुश हैं।
बस आप दोनों से दूरियां जरुर कचोटती हैं। पर मन को समझाना पड़ता है। परंतु खुशी भी है कि आप दोनों की खुश्बू हमें संरक्षण देती है।
बस माँ! अब कुछ नहीं लिखा जायेगा। अपना और पापा का ध्यान रखिएगा, हम सब की ज्यादा चिंता मत कीजिएगा। हम पर अपना आवरण रुपी ममत्व और आशीर्वाद बनाए रखियेगा। हमें भटकने से बचाने के अलावा हमारी गल्तियों को माफ करती रहिएगा ।
पुनः चरण स्पर्श के साथ
आपका बेटा
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
८११५२८५९२१
© मौलिक, स्वरचित
०२.०५.२०२२
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