खान-पान पर भी तकरार
जितेन्द्र 'कबीर' |
एक घर की चार संतानें...
खान-पान में
चारों के हैं अलग विचार,
शाकाहारी है कोई
किसी को पसंद आता है
मांसाहार,
अपनी पसंद को श्रेष्ठ
बताते हुए
अगर इसी बात के लिए
करने लगें वो चारों अक्सर
तकरार
तो बताओ कैसे अखंड रहेगा
वो परिवार?
अपने देश का भी है
यही हाल,
सदियों से जो लोगों का
खान-पान
उसको लेकर आज
क्यों खराब करें
हम आपसी व्यवहार?
खाने को धर्म से जोड़ना
है सिर्फ राजनीतिज्ञों के लिए
फायदे का कारोबार,
दो जून रोटी जुटाने की खातिर
तरसने वाली जनता के लिए तो
यह है भूखे मरने का आधार,
सोचो जरा!
बकरे की जान तो दोनों सूरत
जानी ही है
काट दो उसे झटके से
या करो धीरे-धीरे हलाल,
दुनिया की अधिकतर आबादी
मांस पर है निर्भर खाने के लिए,
शाकाहार के हिमायती
इस बात का भी रखें ध्यान,
खान-पान में भी
राजनीति घुसेड़ने वाले नेता
समझते नहीं इतनी सी बात
कि पेट भर खाना है
हर जीव का नैसर्गिक अधिकार,
वैश्विक स्तर पर
भुखमरी के इंडेक्स में
फिसलता जा रहा है
हमारा देश लगातार
और एक हम हैं
जो भूखे लोगों का पेट
भरने के बजाय
कर रहे हैं अपने खान-पान की
श्रेष्ठता पर अहंकार।
जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति - अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र- 7018558314
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