पैसे का खेल
समय के साथ पैसा भी अब
अपना रंग दिखाने लगा है,
पैसे पर भी आधुनिकता का
अब तो रंग गहरा हो गया है ।
रिश्तों की पहचान में भी
पैसे का भाव बढ़ गया है,
आज अपने हों या पराए
पैसा सब कुछ हो गया है।
अब हर रिश्ता बेमानी है
ये कैसी गज़ब कहानी
माँ बाप हो या औलादें
पैसे से जाती पहचानी।
दरक रहा है समाज का
आज वातावरण देखिए,
पैसे का भूत सबके सिर पर
चढ़कर बोल रहा है जान लीजिए।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
८११५२८५९२१
© मौलिक, स्वरचित
०६.०५.२०२२
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