बलात्कार

 बलात्कार

डॉ. इन्दु कुमारी
डॉ. इन्दु कुमारी

 दरिंदगी की पहचान है 

समाज का अभिशाप है

 गंदगी की अंबार है 

संकुचित विचारों का

 गंदी सोच की विकृतियां है 

समाज की विसंगतियां है 

यह कोढ़ जहां पनप रहा

पाप का अंबार पड़ा

जड़ से इसे मिटाना है

 जिंदगी को बचाना है 

यह गंदगी भरी हवाएं 

भावी पीढ़ी सुरक्षित करवाएं 

प्रेम बल प्रदान करने वाला

बलात्कार शोकित करने वाला

मनुष्य मनुष्यता जब खोता है 

घर समाज की क्या कहूं 

यह विश्व पटल रोता है 

संकीर्णता के बलिवेदी पर

 जब कोई मासूम चढ़ते हैं 

जीवन अभिशाप बनते हैं

 गला घोट दी जाती है 

 सिसकियों को दबाए जाते हैं 

यही बलात्कार कहलाते हैं।

       डॉ. इन्दु कुमारी 

मधेपुरा बिहार

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