"अब तो सोच बदलो"

"अब तो सोच बदलो"

भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर
भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर
आज हम 21वीं सदी की दहलीज़ पर खड़े है औरतों ने अपनी अठारहवीं सदी वाली छवि बदलकर रख दी है, हर क्षेत्र में नारी एक सक्षम योद्धा सी अपना परचम लहरा रही है और परिवार का संबल बनकर खड़ी है, फिर भी कुछ लोगों की मानसिकता नहीं बदली। चाहे कितनी ही सदियाँ बदल जाए कामकाजी और नाईट ड्यूटी करने वाली स्त्रियों के प्रति कुछ अवधारणा कभी नहीं बदलेगी। घर से बाहर निकलकर काम करने वाली औरतों को एक अनमनी नज़रों से ही क्यूँ देखता है समाज का एक खास वर्ग? चंद हल्की मानसिकता वाली औरतों को नज़र में रखते रात को बाहर काम करने वाली हर महिला को आप गलत नहीं ठहरा सकते। मुखर महिला यानी बदचलन, किसी मर्द के साथ हंस कर बात करने पर महिला को शक कि नज़रों से ही देखा जाता है। इमरजेन्सी में कोई सहकर्मी घर छोड़ने आता है तो कानाफ़ूसी होती है। और खास कर जब रात को कोई महिला अपने काम से बाहर जाती है, या काम से लौटती है उसके लिए लोगों की मानसिकता कहीं न कहीं गलत ही रहती है। आवारा, बदचलन और न जानें क्या-क्या। और देखने वाली बात ये है की औरत के लिए ऐसी गलत और गंदी मानसिकता ज़्यादातर औरतों की ही होती है।
यही सारी बातें मर्दों के लिये जायज़ है ऐसी दोहरी मानसिकता क्यूँ? मर्द नाईट ड्यूटी करता है तो उसके लिए क्यूँ को टिप्पणी नहीं होती? आज लड़कीयाँ कहाँ से कहाँ पहुँच गई वो अपनी हिफ़ाज़त खुद करना जानती है, मर्द के जितनी ही सक्षम है। आज प्राईवेट कंपनी, आई टी कंपनी वालों का डायरेक्ट विदेशों की कंपनी के साथ व्यवहार होता है, तो रात और दिन के समय को एडजस्ट करने के लिए कंपलसरी नाईट ड्यूटी सबको करनी पडती है। पर कुछ लोगों को ये नहीं पता कि बड़े शहरों में बड़ी कंपनी वाले पूरी ज़िम्मेदारी के साथ कैब और सुरक्षाकर्मी सहित की व्यवस्था महिलाओं के लिए रखते है। घर पहुँचने पर कंपनी से कंन्फ़र्मेशन फोन आता है कि ठीक से पहुँच गए कि नहीं। साथ ही साथ कंपनियां नाईट ड्यूटी की सेलरी भी अधिक देती है, तो क्यूँ कोई औरत महज़ समाज के डर से हिचकिचाते काम से कन्नी काटे। कब मिलेगा औरतों को मर्दों के बराबरी का दर्जा। और रात को बाहर जाकर काम करने वाली हर महिला गलत काम करने ही नहीं निकलती ये बात अब समाज को हजम कर लेनी चाहिए। घर चलाना है तो काम भी करना होगा, नाईट ड्यूटी भी करनी होगी। समाज को अब ये परिवर्तन स्वीकार करना होगा, वो ज़माना गया जब औरतें चार दीवारी में कैद रहती थी आज की नारी का फ़लक विशाल है। मर्द के कँधे से कँधा मिलाकर हर क्षेत्र में परचम लहरा चुकी है तो अब सोच बदलो समाज बदलो। बिंदास और बोल्ड का मतलब बदचलन हरगिज़ नहीं होता।
 
भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर

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