"परिवार से प्रीत करो"
15 मई को अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस पूरे विश्व में मनाया जाता है, पर आज कुछ गली मोहल्लों में गुज़र कर देखो तो लगभग हर घर में शांति का माहौल छाया है। कहाँ है संयुक्त परिवार से उठती हंसी खुशी की किलकारियां? विभक्त होते तितर-बितर हो रहे है परिवार। आजकल सबको अकेलापन रास आने लगा है। संयुक्त परिवार के फ़ायदे कोई जानता ही नहीं। जैसे पाँच ऊँगलियां जुड़ कर मुट्ठी बनती है और मुट्ठी ताकत बन जाती है वैसे ही संयुक्त परिवार की ताकत भी ज़िंदगी की हर चुनौतियों से लड़ने में अहम भूमिका निभाती है।
दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई जी और बुआ का प्यार क्या होता है विभक्त परिवार में पल रहे बच्चों को मालूम ही नहीं। बच्चों को परिवार की महत्ता समझाना बहुत जरूरी है, रिश्तों में अपनापन नींव है परिवार की। अपनों की अहमियत समझे बिना परायों के आगे खुशामत करने में लगे है सब। अच्छे बुरे वक्त में अपने ही साथ खड़े रहेंगे और अपनों से ही परिवार की शोभा है। एक परिवार के बिना हम सभी अकेले है। हम जीवन रुपी समुन्द्र में संघर्षों के तूफान और चुनौतियों के सैलाब जैसे बहते हुए पानी के बीच यात्रा करते हैं। यदि हमारे पास सहारा देने के लिए एक परिवार नहीं है तो हम अक्सर इस यात्रा में विफल रहते हैं और जीवन की हर चुनौतियां हार जाते है। परिवार हमें बुरे समय से गुजरने की शक्ति देता है और हमारे साथ अच्छे समय का जश्न मनाता है।
इंसान की फ़ितरत है छोटी सी बात पर बुरा मानना एक दूसरे को छोटा दिखाने के लिए गलत टोन में सुनाना, अपमान करना, और रिश्ते में पड़ी दरार को भरने की बजाय दूरी को बढ़ाना। ज़िंदगी में जब बुरा वक्त आता है तब हम अपनों की ओर ही नज़र दौड़ाते है समाज में दूर खड़े रहकर तमाशा देखने वालों की कमी नहीं।
भाई-भाई में सास-बहू में ननंद-भाभी में या कोई भी रिश्ते में अनबन होती है पर चर्चा करो झगड़ा नहीं। अनबन को मतभेद तक सिमित रखो मनभेद नहीं बनाना चाहिए। क्यूँ लहज़े में मिठास नहीं रख सकते, अपनों के प्रति ज़हर उगलने में कौन सी बहादुरी है ? कितनी भी कड़वाहट हो रिश्ते में पर जब अपनों के उपर आफ़त आती है तब अपनों का दिल ही जलता है।
आज के इंसान को अकेलापन रास आने लगा है शायद अपने आप में गुम होता अपनों के हाथ की गिरह छुड़ाकर दूर होता जा रहा है। और फिर मोबाइल के आभासी दोस्तों में अपनापन ढूँढता है। समझता भी है की आभासी दुनिया में कोई किसीका नहीं।
अपनें चाहे कितने भी रुठे हो एक दो मीठे बोल पर गले लग जाते है। अगर रिश्ता बचाने के लिए थोड़ा झुकना पड़े तो झुक जाईये, अपनों के आगे झुकने में शर्म कैसी। बड़प्पन दिखाकर अपनी गरिमा बनाएँ रखें रिश्ते खिल उठेंगे।
क्या साथ लेकर आए थे क्या लेकर जाएँगे। ट्रेन या बस के छोटे से सफ़र में भी हम दोस्त बना लेते है तो ज़िंदगी के सफ़र में किस्मत से जो अपने मिले है उनको क्यूँ संभाल कर नहीं रख सकते।
कोई हज़ारों साल नहीं जीने वाला सबको एक दिन मिट्टी में दफ़न होना है। ऐसा कोई दिया नहीं जिस पर हवा की नज़र नहीं तो गुरुर किस बात का। अगर रुठा है कोई अपना तो मना लीजिए, या आप रुठे हो किसीसे तो मान जाया किजीए। ज़िंदगी का जश्न अपनों के साथ मनाने में मजा है, गैरो में दम कहाँ जो हर मोड़ पर साथ दें। क्या मतलब रह जाएगा वक्त गुज़र जाने के बाद आपको अपनों की किंमत समझ आए तो। इसलिए अपनों की इस अनमोल पूंजी को सहजकर रखिए। परिवार का मान सन्मान एक दूसरे के साथ रहकर बढ़ता है एकता में ही समझदारी है, है परिवार जो साथ तो हर मुश्किल है आसान इस कथन को याद रखिए।
इंसान की फ़ितरत है छोटी सी बात पर बुरा मानना एक दूसरे को छोटा दिखाने के लिए गलत टोन में सुनाना, अपमान करना, और रिश्ते में पड़ी दरार को भरने की बजाय दूरी को बढ़ाना। ज़िंदगी में जब बुरा वक्त आता है तब हम अपनों की ओर ही नज़र दौड़ाते है समाज में दूर खड़े रहकर तमाशा देखने वालों की कमी नहीं।
भाई-भाई में सास-बहू में ननंद-भाभी में या कोई भी रिश्ते में अनबन होती है पर चर्चा करो झगड़ा नहीं। अनबन को मतभेद तक सिमित रखो मनभेद नहीं बनाना चाहिए। क्यूँ लहज़े में मिठास नहीं रख सकते, अपनों के प्रति ज़हर उगलने में कौन सी बहादुरी है ? कितनी भी कड़वाहट हो रिश्ते में पर जब अपनों के उपर आफ़त आती है तब अपनों का दिल ही जलता है।
आज के इंसान को अकेलापन रास आने लगा है शायद अपने आप में गुम होता अपनों के हाथ की गिरह छुड़ाकर दूर होता जा रहा है। और फिर मोबाइल के आभासी दोस्तों में अपनापन ढूँढता है। समझता भी है की आभासी दुनिया में कोई किसीका नहीं।
अपनें चाहे कितने भी रुठे हो एक दो मीठे बोल पर गले लग जाते है। अगर रिश्ता बचाने के लिए थोड़ा झुकना पड़े तो झुक जाईये, अपनों के आगे झुकने में शर्म कैसी। बड़प्पन दिखाकर अपनी गरिमा बनाएँ रखें रिश्ते खिल उठेंगे।
क्या साथ लेकर आए थे क्या लेकर जाएँगे। ट्रेन या बस के छोटे से सफ़र में भी हम दोस्त बना लेते है तो ज़िंदगी के सफ़र में किस्मत से जो अपने मिले है उनको क्यूँ संभाल कर नहीं रख सकते।
कोई हज़ारों साल नहीं जीने वाला सबको एक दिन मिट्टी में दफ़न होना है। ऐसा कोई दिया नहीं जिस पर हवा की नज़र नहीं तो गुरुर किस बात का। अगर रुठा है कोई अपना तो मना लीजिए, या आप रुठे हो किसीसे तो मान जाया किजीए। ज़िंदगी का जश्न अपनों के साथ मनाने में मजा है, गैरो में दम कहाँ जो हर मोड़ पर साथ दें। क्या मतलब रह जाएगा वक्त गुज़र जाने के बाद आपको अपनों की किंमत समझ आए तो। इसलिए अपनों की इस अनमोल पूंजी को सहजकर रखिए। परिवार का मान सन्मान एक दूसरे के साथ रहकर बढ़ता है एकता में ही समझदारी है, है परिवार जो साथ तो हर मुश्किल है आसान इस कथन को याद रखिए।
भावना ठाकर 'भावु'
बेंगलोर
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