पाखंड लगता है- जितेन्द्र ' कबीर '

पाखंड लगता है

पाखंड लगता है- जितेन्द्र ' कबीर '


एक विजेता!
अपने सारे संसाधन
झोंक देता है
युद्ध के मैदान में
जीत के लिए,
विजय उसका चरित्र है
लेकिन
जब वो लगाता है मुखौटा
संत का
तो पाखंड लगता है।
एक रणनीतिकार!
साम दाम दण्ड भेद सारे तरीके
अपनाता है
शत्रु को अलग-थलग कर
हराने के लिए,
कुटिलता उसका चरित्र है
लेकिन
जब वो लगाता है मुखौटा
भोलेपन का
तो पाखंड लगता है।
एक अतिवादी!
अपने मत के विरोध की
हर संभावना का
छल-बल से करता है
प्रतिकार,
द्वेष उसका चरित्र है
लेकिन
जब वो लगाता है मुखौटा
समभाव का
तो पाखंड लगता है।
एक अवसरवादी!
अपने मंतव्य की राह में
आने वाले
हर एक कांटे को
उखाड़ फेंकता है निर्ममता से,
क्रूरता उसका चरित्र है
लेकिन
जब वो लगाता है मुखौटा
दयालुता का
तो पाखंड लगता है।
एक सुविधा प्रेमी!
राज्य के खर्चे पर
जुटाता है अपने लिए
तमाम सुविधाएं,
विलासिता उसका चरित्र है
लेकिन
जब वो लगाता है मुखौटा
जनसेवा का
तो पाखंड लगता है।
एक प्रसिद्धि पिपासु!
अपने छोटे से छोटे काम को
प्रचारित करता है
दुनिया के महानतम कामों में,
आत्मश्लाघा उसका चरित्र है
लेकिन
जब वो लगाता है मुखौटा
दीन-हीन का
तो पाखंड लगता है।

जितेन्द्र ' कबीर '
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश 176314
संपर्क सूत्र - 7018558314

تعليقات