कितना विरोधाभास है?- जितेन्द्र 'कबीर'

कितना विरोधाभास है?

कितना विरोधाभास है?- जितेन्द्र 'कबीर'
कितना विरोधाभास है
इंसान की फितरत में भी,
अपनी हर मुसीबत में
ईश्वर का साथ पाने के लिए
प्रार्थना करेगा भी बहुत
और फिर उसके साथ जाने से
डरेगा भी बहुत।
कितना विरोधाभास है
इंसान की फितरत में भी,
ईश्वर के हाथ में है जीवन-मृत्यु,
दुनिया में इसका प्रवचन
करेगा भी बहुत
और मृत्यु का सामना करने से
टलेगा भी बहुत।
कितना विरोधाभास है
इंसान की फितरत में भी,
अपनी तरक्की के लिए
ईश्वर की पूजा ( खुशामद )
करेगा भी बहुत
और फिर जीवन में अपने
खुशामद की बुराई करेगा भी बहुत।
कितना विरोधाभास है
इंसान की फितरत में भी,
ईश्वर को चढ़ावा ( रिश्वत ) चढ़ाकर
अपनी खुशहाली की मंगल कामना
करेगा भी बहुत
और फिर जीवन में अपने
रिश्वत की बुराई करेगा भी बहुत।
कितना विरोधाभास है
इंसान की फितरत में भी,
अपना परलोक सुधारने को
ईश्वर के नाम पर दान-धर्म
करेगा भी बहुत
और अपने पड़ोसियों से
निज स्वार्थ खातिर लड़ेगा भी बहुत।

जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति - अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश 176314
संपर्क सूत्र - 7018558314

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