दिल ढूँढता है-नंदिनी लहेजा

दिल ढूँढता है

दिल ढूँढता है
कहाँ गए बचपन के वो दिन,
जो निश्चिंतता में गुजरते थे।
ना लोभ था,ना कोई कपट,
निश्छलता लिए रहते थे।
दिल ढूंढ़ता हैं उनको हमेशा,
काश कि वापस आ जाएँ।
चिंताओं से ग्रस्त,और कर्मों में व्यस्त ,
जीवन से मुक्ति दे जाएँ।
दिल ढूंढ़ता हैं,उन मित्रों को,
जो दूर हो गए हमसे।
जीवन में कुछ, पाने को निकले,
और साथियों को,अपने छोड़ चले।
मिल जाएँ तो पूछेंगे उनसे,
क्या बीते पलों को,वे भी हैं याद करते।
आज के अपने मित्रों में ,
वे पुराने साथियों को कभी हैं ढूंढा करते।
दिल ढूंढ़ता हैं अस्तित्व अपना,
जो खो गया है यहीं कहीं।
मुस्कान के भीतर,छुपे दर्द को,
जो कह ना पाता किसी से कभी।
मिल जाए वो मुझको,
बस से ये दुआ करना।
थक गए,आवरण को ओढ़े,
चाहते स्वयं से मिलना।

नंदिनी लहेजा
रायपुर(छत्तीसगढ़)
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

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