अधूरी कहानी के कोरे पन्ने (hindi kahani)
अति सुंदर मीना परिवार में सब को ही बहुत प्यारी थी।बचपन से उसके लिए राजकुमार से दूल्हे आशा उसकी मां न पल रखी थी।जैसे ही वह जवान हुई उसकी शादी की बातें चलनी शुरू हो गई थी।शादी होते ही मीना ससुराल पहुंच गई सिमटी सी शर्माती हुई गृहप्रवेश की रीत पूरी की और घर के दिवानखंड में बैठी थी।लाल सुर्ख जोड़ा पहने और हाथों में कंगन चूड़ियां ,पावों में पायल बिच्छुएं,हाथों में अंगूठियां और पांचागला (पंचफुल) बाजूबंद गले में तीन छोटे बड़े हार माथे पर टीका शिंका आदि गहनों से लदी शर्म से सर जुकाए बैठी थी और घर का मुआयना कर रही थी।जहां बैठी थी वहां सामने डाइनिंग टेबल थी जिसके ऊपर बे सलीके से तीतर बितर मिठाईयों के डिब्बे लदे हुए थे।कुछ फालतू चीज़े भी पड़ी थी।उसके आगे रसोईघर था सिर्फ बंद गैस पर रखे कुकर और पतीले पड़े थे।वैसे कहें तो शादी वाले घर में जितनी भी अफरा तफरी हो सकती थी सभी वहां मौजूद थी।थोड़ी देर में ही सब फ्रेश होने चले गए तो मीना की ननंद आई और उसे उनके कमरे में ले गई।वह अपने कमरे में पहुंची तो वहां उसके समान में से अपना बैग अलग कर कपड़े निकाले और इधर उधर देख रही थी तो उसकी ननंद ने उसे हंसी के साथ हाथ पकड़ बाथरूम तक ले गई।
नहा धो कर एक दम ताजा महसूस कर रही थी अपने आप को। नज़र के सामने से पिछले कुछ दिन चलचित्र की भांति आंखो के सामने से गुजर रहे थे।कैसे अमरीका से आए मनोज का रिश्ता आया तो घर में सब ही खुश हो गए कि वह इतने विकसित देश में ब्याह के अमरीका जायेगी।जब वे लोग पहली बार घर आएं तो मनोज के माता–पिता और चाची भी थी,दोनों और से बातचीत हुई और थोड़ा सकारात्मक वातावरण हुआ तो उन दोनों को मिलने का समय मिला और दोनों ने कुछ सामान्य सी बातें की और एकदूरे के बारे में थोड़ी जानकारी भी ली।
अंतत: दोनों और से हां होने पर रोका हो गया।हालाकि मीना कुछ ज्यादा स्पष्ट नहीं थी रिश्ते के बारे में लेकिन कभी न कभी तो शादी करनी ही हैं ,और आगे जा कर इससे अच्छा रिश्ता नहीं मिला तो,ये सोच हामी भरदी थी।लेकिन एकदम प्रसन्नता से स्वीकार नहीं किया था मीना ने।और फिर सगाई और शादी एक महीने के अंदर अंदर ही हो गई।और आज वह ससुराल में बैठी ये सब सोच रही हैं।बहुत ही थोड़े वक्त में रोका,सगाई और शादी होना सब स्वप्न सा लग रहा था उसे, ये पहला दिन था ससुराल में और चौके चढ़ने की रस्म थी।घर की सभी महिलाएं रसोई में एकत्रित हो उसे घेरे खड़ी थी।वैसे उसकी मां ने सभी सामग्री के साथ उसे समझाया था कि कैसे बनता हैं हलवा।फिर उसने अपनी रसोई कला दिखते हुए हलवा बनाया,वैसे बना तो अच्छा था किंतु नई बहू के मान में वह एक विलक्षण स्वादिष्ट हलवा बन गया था।जिसे देखो वही हलवे के गुण गा रहा था और उसकी जोली में सगन के रुपए आते जा रहे थे।सभी खुश थे और वह भी अभी अच्छा महसूस कर रही थी।याद तो आ रही थी मां और पिताजी की लेकिन मन मना लिया था उसने।और तीन दिन बाद उसके पिताजी पग फेरे के लिए लेने आ गए,उनकी भी खूब अवभागत की गई और वह पहुंच गई अपने घर,कुछ दिनों के लिए ही सही किंतु बहुत अच्छा लगा अपनों से मिलकर।वही घर,वही कमरे और उसका अपना कमरा जिसे वह बड़े ही चाव से सजाया करती थी। मां का प्यार तो उमड़ पड़ा था उसे दहलीज पर पा के,खूब प्यार से गले मिलते ही आंखे बरसने लगी थी उनकी।अपने कमरे में लेट कर एक सकून मिला था उसे,अपनेपन वाला।तीन दिन कहां बीत गए पता ही नहीं चला और मनोज अपने छोटे भाई के साथ उसे लिवाने आ गए।दोनों की आगता स्वागता के बाद सब बैठ उधर उधर की बातें करते रहे लेकिन मनोज की बातों में पहली बार अमेरिका में रहने का और अपनी ऊंचे ओहदे की जॉब का अहंकार दिखा जो सब को थोड़ा बुरा लगा।वह अमेरिका के साथ भारत की तुलना कर अपने ही देश की हेठी करने पर तुला रहने लगा था वह।लेकिन मनोज जवाई था इस लिए सब को बुरा लगने के बावजूद कोई कुछ भी नहीं बोला, उसका लिहाज रख रहे थे।और उसी दिन वह अपना घर छोड़ अपने पति और ढेर सारे तोहफों के साथ अपने ससुराल लौट आई।फिर दोनों अपनी हनीमून पर गए तीन चार दिन में भी उतनी नजदीकियां नहीं आई जो नवविवाहितों में आ जाती हैं।वैसे सब कुछ ठीक था,कुछ भी ऐसा नहीं था जो नहीं होना चाहिए लेकिन कुछ तो था जो उन दोनों के बीच एक महीन सी लकीर खींचें हुए था।दोनों घर वापस आ गाए दूरियां थोड़ी दूर तो हुई थी पति पत्नी बने को अब दो हफ्ते हो चुके थे।शादी को रजिस्टर ऑफिस में रजिस्टर करवाई गई ताकि यूएस जाके मीना के पेपर्स फाइल करने में आसानी हो जाएं।सब कागजी कार्यवाही करने में एक महीना हो गया और मनोज के जाने की तारीख नजदीक आने लगी।मीना कुछ उदास और असुरक्षित सी महसूस कर रही थी।मनोज के जाने के बाद उसके ससुराल वाले न जाने कैसा व्यवहार करेंगे और कैसी होगी उसकी आगे की जिंदगी ये चिंता उसे होने लगी थी।उसने अपनी मां से भी अपनी चिंता के बारे में बात की थी,पर माएं तो हमेशा ही सकारात्मक ही होती हैं अपने बच्चों के मामलों में वैसे ही वह भी थी।
अब मनोज के विदेश गमन का दिन नजदीक आ रहा था तो मीना ने पूछ ही लिया कि वहां जाकर भूल तो नहीं जायेगा वह मीना को,और चाहे मजाक ही में सही उसने कहा था कि ’शायद’।और फिर मीना की असुरक्षा की भावना ने घेर लिया।
और अब वो दिन भी आ गया जब वह चला भी गया। दुःख तो हुआ मीना को भी लेकिन असुरक्षा ने फिर घेर लिया लेकिन वह उदास सी रहने लगी तो उसकी सास ने उसे खुश करने के लिए उसे मायके जा थोड़े दिन रह के आने की सलाह दी तो वह भी जा के मां की गोदी में सकून पाने चली गई।
एक महीना मां और पिताजी के साथ कैसे निकल गया पता ही नहीं चला लेकिन कुछ दिनों से मन ठीक नहीं था शायद उदासी की वजह से ऐसा लग रहा था।जब ससुराल में आई तब कुछ ज्यादा तबियत बिगड़ी लग रही थी तो सासू मां ने डॉक्टर को बुला ही लिया वैसे उसकी माहवारी आने के उपर 15 दिन होने को थे किंतु उस ओर उसका ध्यान ही नहीं था।डॉक्टर महिला होने के नाते कुछ ज्यादा ही पूछताछ कर रही थी और जब उसकी सेहत के बारे में पूछा तो उसने अपनी माहवारी की तारीख बता दी तो स्पष्ट हुआ कि उसे गर्भधान हुए को आज डेढ़ महीना हो चुका था।घर में सब बहुत खुश हुए किंतु मीना खुश होने के बजाए कुछ आशंका से भर गई थी।पढ़ी लिखी होने के बावजूद उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा था उसके साथ।मनोज का फोन रोज ही आता था लेकिन एक अपनेपन की कमी ज्यादा थी,एक व्यवहारिक संबंध में जैसे बात होती हैं वैसी ही बात करता था।और जब उसे कहा गया कि वह बाप बनने वाला था तो कुछ खुश नहीं हुआ लेकिन बधाई दी उसे और फोन बंद कर दिया।अपने पेट में पल रहे बच्चे को पाल रही मीना अब अपने और अपने बच्चे के भविष्य के बारे में चिंता में व्यग्र रहने लगी।मनोज के फोन आना अब एक व्यवहारू सी बात थी प्यार या लगाव पहले जो दिखावे का था वह भी धीरे धीरे गायब होने लगा।जब उसकी मां से बात हो रही थी तो उन्होंने मीना को यूएस के जाने की बात की तो प्रसूति के बाद ही शक्य होगा ऐसा बोल बात टाल गया था मनोज।
अब मीना ने अपना पूरा ध्यान अपनी ओर अपनी होने वाले बच्चे की सेहत का खयाल रखने में लगा रहने लगा। सास भी कम में वह मदद करे ऐसा कईं बार जाता चुकी थी और मीना भी जितना हो सके उससे ज्यादा ही मदद कर देती थी।खाना बनाने से लेकर जाड़पोंछ तक।बाकी काम के लिए तो कामवाली बाई आती थी।ऐसे ही कब नौ महीने निकल गए पता ही नहीं लगा और उसकी प्रस्तावित तारीख को कुछ दिन ही रह गए थे।उसका शरीर खूब फुल गया था खास कर पेट और पीछे का हिस्सा,सब कयास लगाते थे कि लड़की होगी उसे तो वह खुश होती कि अपनी प्रतिकृति पाएगी वह।गुड़िया के प्यार में वह अभी से ही दीवानी हुई जा रही थी।और आ गया वह दिन, रात में उसे खूब दर्द उठा तो उसने सास को बताया तो सब तैयार हो अस्पताल पहुंचे और उसे भर्ती करवाया फिर उसकी मां और पिताजी को भी खबर कर दी तो वो लोग भी दौड़े दौड़े आए।सब रह देखें बैठे थे कि कब खबर आए नए मेहमान के आने की।और आई खबर, दाई बड़े ही नटखट अंदाज में हंस के बोली नेग दो जी लड़का हुआ हैं।लड़के का संदेश सुन सभी की खुशी से बांछे खिल गई।उसकी सास ने उसे 2000 रुपए निकाल कर दिए तो वह और मांग रही थी तो उसने वचन दिया की अस्पताल से जाते वक्त उसे खुश कर देंगे तो वह चली गई।कुछ देर बाद जब मीना को कमरे में लायें तो सब एक एक कर कमरे में जा बच्चे को देख आएं।सुंदर सा छोटा सा राजकुमार लग रहा था वह सफेद चादर में लिपटा लेता हुआ था पकने में।
ससुराल को अलविदा तो कर दिया लेकिन उससे नाता तो नही टूटा था,क्योंकि अभी भी वह मनोज से वैवाहिक बंधन से जुड़ी हुई थी।मां के घर को मायका कहते हैं तो वह उसका कैसे हुआ ये प्रश्न हमेशा ही परेशान करता था।वह सोचा करती थी,मायका मां का घर,ससुराल सास का घर तो उसका अपना घर कौनसा,अब उसे अपने घर की तलाश थी और आरजू भी।कुछ दिन रहने का बाद उसने सोचा कि अब उसे कुछ काम करना चाहिए,काम तो वह उसकी मां के साथ सब कर ही लेती थी लेकिन आर्थिक प्रवृत्ति ही उसे कुछ पाने में मदद कर सकती हैं।वैसे भी विनय अब उसकी मां से हिलमिल गया था,उन्ही से नहाता और खाता भी था सिर्फ सोने के लिए ही वह मीना के पास आता था।अब मीना ने सोच ली कि वह कुछ क्रैश कोर्स कर के नौकरी कर लेगी।उसने कुछ कंप्यूटर का कोर्स कर लिया और आईटी कंपनी में नौकरी मिल गई,तनख्वाह भी ठीक ठाक थी तो उसने स्वीकार कर ली।सुबह नौ बजे अपना नाश्ता खा कर ,अपना दुपहर का खाना बना कर ले निकल जाती थी।अपनी काबिलियत से दफ्तर में उसकी बहुत ही इज्जत बढ़ गई थी।उसे खूब बढ़ती मिलती रही और कुछ साल में तो वह डायरेक्टर बन गई थी।एक दिन उसके देवर का फोन आया और मिलने के लिए समय मांगा तो उसने रविवार के दिन घर पर बुला लिया।रविवार के दिन वैसे वह देर से उठती थी लेकिन देवर आने वाला था तो जल्दी उठ तैयार होली और कुछ नाश्ता बना कर वह विनय के साथ खेल रही थी कि उसका देवर आया और नमस्ते कर बैठ गया।विनय के लिए चॉकलेट लाया था वह दे ,विनय के साथ कुछ औपचारिक बात जैसे कौनसे स्कूल में जाता हैं ,कौन सी क्लास में पढ़ता हैं आदि बाते कर मीना की और देख बोला कि उसके दस्तखत चाहिए उसे।मीना समझ गई उसने विनय को नानी की पास जाने के लिए बोला और जब वह चला गया तो उन कागजात को हाथ में ले दस्तखत कर ने लगी तो उसके देवर ने पढ़ने के लिए बोला तो वह बोली तलक के कागजात हैं ये वह जानती थी।और उसे लौटा दिए तो वह जट से उठा और चला गया। उस दीन एक बहुत बड़े बोझ से मुक्त पा रही थी।एक एहसास जिसने उसे थोड़ा सा हल्कापन महसूस करवाया,बोझ मुक्त हो गई थी वह।
ऐसे ही विनय कॉलेज में आ गया और उसने भी उम्र के उस दौर में पहुंच चुकी थी जहां थोड़ी सी थकान महसूस हो रही थी।वह अपनी शादी शुदा जिंदगी के हर पल,हर एहसास को भूल चुकी थी।और एक दिन भूचाल आया जब मनोज ने उसके घर की घंटी बजाई और उसकी मां ने दरवाजा खोला तो वह सीधा ही घरमे आ गया और मीना के सामने खड़ा हो गया तो उसे देख वह भोचक्की सी रह गई थी वह।मनोज की सारी हेकड़ी बैठ गई थी,जो गर्दन अक्कड़ी रहती थी वह आज जुकी हुई थी,वह शान जो उसके कपड़े जो उसका गौरव थे वह एक दम सादा थे।शक्ल की सारी चमक गायब थी और एक सियाही सी फैल चुकी थी वहां।अब तो मीना की कनपट्टी पर भी थोड़ी सफेदी चमक रही थी लेकिन उसकी शक्ल पर एक तेज था,आत्मविश्वास था जिससे उसकी शख्शियत को चार चांद लग रहे थे।दोनों एक दूसरे को देख कुछ हैरानी में पड़ गए थे।लेकिन आखिर में मनोज ने ही चुप्पी तोड़ उससे उसके हालचाल पूछा तो उसने भी सदा सा जवाब दिया कि वह ठीक थी।इतने में उसकी मां आई और उसने भी हाल पूछा,ऐसे काफी देर चला और मनोज असली मुद्दे पर आया,और बोला की उसने जिस से शादी की थी वह उसे छोड़ के चली गई थी और साथ में सारा बैंक बैलेंस ले गई थी।घर तो उसने पहले ही अपने नाम करवालिया था तो अब न उसके पास घर था और न ही पैसा बचा था।बहुत परेशान था तो मीना से मिलने आ गया था।
मीना भी काफी परिपक्व हो चुकी थी, अकेले ही दुनियां का सामना कर वह काफी समझदार भी हो गई थी।वह भावनावश हो कोई निर्णय नहीं लेना चाहती थी।उसने मनोज की और देखा और बोली कि उन दोनों के बीच में कोई मधुर संस्मरण नहीं थे,नहीं कोई प्यार के चरम का इतिहास था अगर कुछ था तो वह धोखा था,एक शरीफ घर की लड़की को अपनी बातों में उलझा कर शादी करना और फिर विदेशी लड़की से प्यार के नाम पर उसके साथ रह अपनी ब्याहता के साथ सामाजिक, धार्मिक,भावनात्मक और मानसिक अपराध ही किया था मनोज ने ये स्पष्ट बता उसकी और से किसी किस्म का लगाव या हमदर्दी की अपेक्षा नहीं कर सकता था वह।मनोज बुत बनकर देख रहा था उसे और उसने अपनी मां से आवाज लगा कर चाय भेजने के लिए बोला लेकिन तब तक मनोज उठ खड़ा हुआ,गीली आंखो से एक संदेश दे रहा था कि वह बड़ी आस ले कर आया था उसके पास और अब जा रहा हैं मायुस हो कर।मीना ने तो अपने मन की बात बता ही दी थी।वह भी उठ खड़ी हुई मनोज को जाते हुए देख, स्वाभिमान से अपनी गर्दन ऊंची कर एक गौरवान्वित नज़र से अपने सामने की दीवार पर टंगे आयने में अपने मुख को देख संतुष्टि का अनुभव कर रही थी।
जयश्री बिरमी
अहमदाबाद
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