तर्क या कुतर्क
जंग के समर्थन मेंकिसी के तर्क
मुझे तब तक स्वीकार नहीं
जब तक वो खुद सपरिवार
उस जंग में कूद न जाए,
अगर कोई ऐसा करता है
तो यह मान लेना चाहिए
कि अब बात उसके अस्तित्व की है
और उसके पास लड़ने के सिवा
और कोई विकल्प नहीं,
किसी राष्ट्र की एकता, अखंडता,
संप्रभुता और धर्म-युद्ध के
बाकी सारे तर्क
ज्यादातर हथियार ही बने हैं
सत्ता-लोलुप शक्तियों के हाथों
निर्दोष व कमजोर जनता के
उत्पीड़न हेतू।
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