कहानी-उदास, रात की खूबसूरत सुबह (hindi kahani)
"बेटी मेघा, सिन्हा साहब के लिए चाय ले आओ l " रंजीत बाबू ने बैठक से ही आवाज़ लगाई l
" मेघा किचन से ही आवाज़ देती हुई बोली, हाँ, पापा बस दो मिनट, और रूकिए, अभी लाती हूँ l"
ट्रे में चाय उठाये, मेघा, कुछ ही देर में आकर बैठक में दाखिल हुई l मेघा, सांँवली सी पतली , लंबी देखने में बहुत खूबसूरत सी लड़की थी lबैठक में घुसते ही सबसे पहले सिन्हा साहब को मेघा ने अभिवादन पूर्वक " नमस्ते चाचाजी" कहकर प्रणाम किया, और करीने से चाय की प्याली मेज पर सजाकर वापस नमकीन लाने किचेन में चली गई l
तब, बातों का सिलसिला चल पड़ा l सिन्हा साहब अफसोस जताते हुए बोले- " इतनी गाय जैसी सीधी- साधी लड़की के साथ ये लोग ऐसा व्यवहार कर रहे हैं l अरे कम- से कम सास- ससुर को तो बीच में कुछ कहना ही चाहिए था l "
तभी बीच में रंजीत बाबू ने सिन्हा साहब को टोका - " अरे, छोड़िये भी सिन्हा साहब अगर मेघा ने मना ना किया होता तो मैं मनोज को छोड़ने वाला नहीं था l मैं अपनी बेटी का मुँह देखकर ही रह गया l मेघा कह रही थी जब, मनोज ही मेरे साथ नहीं रहना चाहता , तो मैं क्यों जबरदस्ती उनके साथ रहूँ.? और, सास - ससुर क्या करेंगे.?जब मेरा दामाद मनोज ही नालायक निकल गया l हमारे समधि और समधन तो ऐसे सरल हैं कि पूछिए ही मत l आज भी हमारे संबंध उतने ही प्रगाढ़ हैं l जितने पहले हुआ करते थें l बेचारी का भाग्य ही खराब है तो क्या किया जाये l " रंजीत बाबू मेघा के भाग्य को ही खराब बताकर संतोष कर रहे थें l
" सुबह - सुबह मेघा को बहुत आपाधापी रहती है l सुबह , सबसे पहले जल्दी उठो l नाश्ता तैयार करो l फिर, खुद तैयार होकर, पापा का नाश्ता टेबल पर तैयार करके लगाओ l फिर, खुद नाश्ता करके, अपना टिफिन पैक करो l फिर, बच्चों का टिफिन पैक करो l ये मेघा की पिछले चार - पाँच सालों से एक जैसी दिनचर्या हो गई है l
चाय और नमकीन देकर वो बाथरूम में गई और जल्दी -जल्दी नहाकर आॅफिस के लिए तैयार हुई l फिर, जल्दी बाजी में जैसे - तैसे नाश्ता किया और अपने पिता रंजीत बाबू से मुखातिब हुई -" पापा , टेबल पर नाश्ता गर्म करके ढ़ंँककर रख दिया है ... आप नाश्ता कर लीजिएगा, नहीं तो ठँढा हो जायेगा l पापा चलती हूँ, आॅफिस के लिए लेट हो रही हूँ l " मेघा अपने कमरे का दरवाजा बंँद करते हुए बोली l
" ठीक है, बेटा l " रंजीत बाबू बोले l
"तुमने अपना टिफिन और छाता ले लिया है ना..बाहर बहुत घूप है l छाता लेकर ही बाहर निकलना l " रंजीत बाबू अखबार साइड में रखते हुए बोले l
"अरे.. पापा छाता भूल गई थी l आपने अच्छा किया, मुझे याद दिलाया l " वो टेबल के नीचे से छाता निकालते हुए बोली l
और, मेघा बस लेने के लिए बस स्टाॅप पर आकर खड़ी हो गई l
" तुम मुझे बेवकूफ समझते हो.. क्या मनोज..? " मेघा को जब मनोज की दूसरी शादी के बारे में पता चला था तो, जैसे वो चीख पड़ी थी l
" ऐसा, मैंने कब कहा l " मनोज संयत स्वर में बोला l
" ऐसा नहीं है तो फिर, कैसा है.? एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं l ये तो तुम्हें पता ही है, ठीक, वैसे ही मेरे रहते तुम रोजी के साथ नहीं रह सकते l " मेघा समझौता करने के लिए तैयार नहीं थी l
" तुम और रोजी दोनों मेरे साथ रहेंगे l मैं तुम्हें अपने घर से भगा थोड़े ही रहा हूँ l " मनोज सफाई देता हुआ बोला l
" मैं, आज की लड़की हूँ, और स्वाभिमानी भी हूँ l मैं अपनी सौत के साथ जिंदगी नहीं बिता सकती l तुम्हें मेरे और रोजी के बीच में से किसी एक को चुनना होगा l" मेघा अपने आदर्शों से तिल मात्र भी समझौता नहीं करना चाहती थी l
मनोज भी सपाट स्वर में बोला - " तुम्हें जो अच्छा लगता है करो, लेकिन, रोजी मेरे साथ ही रहेगी l "
" तो मैं, किस हैसियत से तुम्हारे घर में रहूँ, एक बीबी की हैसियत से या एक रखैल की हैसियत से l " मेघा बोली
" तुम, ऐसा क्यों कह रही हो..?सारे समाज के सामने, हमारी शादी हुई है, फिर, तुम मेरी रखैल कैसे हो गई..? तुम्हें पहले की तरह ही मान- सम्मान इस घर में मिलेगा l " मनोज सफाई देता हुआ बोला l
" मान- सम्मान की बात तुम ना ही करो तो ज्यादा अच्छा है l पूरी - पूरी रात तुम उस राँड़ रोजी के कमरे में बिताते हो , और उसका बिस्तर गर्म करते हो l मेरे कमरे में झाँकने तक नहीं आते , और मान- सम्मान की बात करते हो l कल मैं पूरी रात बिस्तर पे सिरदर्द और बुखार से तड़पती रही , लेकिन, तुम मुझे देखने तक नहीं आये l क्या यही मान- सम्मान तुम मुझे दे रहे हो.. ?.. पति - पत्नी का रिश्ता केवल सुख का नहीं होता, बल्कि दु:ख का भी होता है, और, समाज.!. किस समाज की तुम बात करते हो ? तुम अगर, समाज की जरा भी परवाह करते तो ऐसी गँदी हरकत कभी ना करते l छि: ..!! ..एक बीबी के रहते तुमने दूसरी शादी कर ली l तुमने कभी ये भी ना सोचा की हमारे बच्चे क्या सोचेंगे ? उनके संस्कारो पर क्या असर होगा. ? वो तुम्हारे बारे में क्या सोचेंगे..? "
मेघा आज फैसले के मूड़ में थी l वो मनोज से यही चाहती थी कि वो, आज, मेघा या रोजी में से किसी एक को चुनें l ताकि, मेघा को अपनी जिंदगी की राह चुनने में आसानी हो l
मेघा ने इस दुनियाँ में बहुत कष्ट सहा था l बचपन में माँ गुजर गई l पिता ने किसी तरह पाल पोसकर उसे बड़ा किया lबचपन मांँ के बिना बिता l
" मैंने कोई ऐसा काम नहीं किया है, जिससे मुझे समाज के सामने शर्मिंदा होना पडे़ l बड़े-बड़े राजा - महाराजाओं और मुगल बादशाहों की हजार- पटरानियांँ हुआ करती थीं l उन्होंने कभी इसका विरोध नहीं किया , लेकिन, पता नहीं तुम्हें क्यों ऐतराज है ? मेरी और रोजी के साथ रहने से l " मनोज ने अपने कुतर्क और कुंँठा को ढकने के लिए अपना तर्क दिया l
" अपनी नाकामियों और घृणित कारगुज़ारियों को छिपाने के लिए कम- से -कम ऐसे कुतर्क तो मत ही गढ़ो मनोज l तुम्हारे तर्क के हिसाब से अगर मैं चलूँ तो पुराने मातृसत्तात्मक समाज में स्त्रियाँ बहु विवाह करतीं थीं , तो क्या .. मैं भी दस शादियाँ कर लूँ ? नहीं ऐसा आधुनिक समय में नहीं हो सकता l जब मैं ऐसा नहीं कर सकती तो तुम पुराने समय के राजे- महाराजाओं और मुगल बादशाहों का उदाहरण क्यों दे रहे हो ? आज के समय में हमारा संँविधान हमें पहली पत्नी के मर जाने या पत्नी के दुराचारि होने पर ही या तलाक के बाद ही दूसरी शादी की इजाजत देता है , और जब तक तलाक ना हो जाये तब तक दूसरी शादी अवैध मानी जाती है l "
" तो... क्या तुम मुझसे तलाक लोगी.?"
मनोज खिड़की को घूरते हुए बोला l
" हाँ, बिना तलाक के हम दोनों अपनी आनेवाली जिंदगी का फैसला नहीं कर सकते l बेहतर होगा हमारा तलाक हो जाये , ताकि तुम भी रोजी के साथ अपनी मर्जी से अपनी जिंदगी गुजार सको l " मेघा निर्णयात्मक लहजे में बोली l
मेघा ने घड़ी पर नज़र डाली उसकी नौ बजे वाली आज की बस छूट गई थी l उसे अक्सर लेट हो जाता है l वो भी करे तो आखिर क्या करे.? बच्चों का टिफिन तैयार करे l उनको स्कूल भेजे l दफ्तर संँभाले l याकि घर संँभाले l एक अकेली जान आखिर क्या- क्या करे..?..आज से पहले वो कभी इतनी लेट नहीं हुई l आज जरूर बाॅस से डांँट पड़ेगी l
किसी तरह बस में सवार हुई , और किनारे की सीट पकड़कर बैठ गई l बस में भी आना -जाना उसे बहुत ही उबाऊ लगता है l पापा अक्सर कहते हैं, बेटा कोई छोटी कार ही ले लो l मेरा रिटायरमेंट का पैसा तो पड़ा हुआ है ही l समय से घर आओगी और दफ्तर भी समय से चली जाओगी l आजकल जुग - जमाना बहुत ही खराब हो गया है l रात को छोड़ो आजकल दिन - दहाड़े हत्या और बलात्कार हो रहें हैं l तुम जब बाहर निकलती हो तो मेरा जी बहुत घबराता है l कल मैंने अखबार में पढ़ा था कि दिल्ली में एक बुजुर्ग महिला के साथ रेप हो गया है l
लेकिन, मेघा बहुत ही स्वाभिमानी है l ये उसके पिता भी बखूबी जानते हैं l वो, अपने कमाये हुए पैसों से सबकुछ खरीदती है l घर भी अब उसके पैसों से ही चलता है l किसी प्राइवेट कार का लोन फाइनांश वाली कंपनी में काम करती है l
वो छेड़छाड़ से भी डरती है l अकेली औरत सबको " मुफ्त " का माल लगती है l कोई हाथ छूने का बहाना ढूंँढ़ता है l कोई कमर या कूल्हे..! एक दिन बस में किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया था l खड़े रहने का सहारा ढूँढते हुए l वो सब समझती है l ये और बात है कि कभी किसी से कुछ कहा नहीं l मिस्टर देशमुख उस दिन फाइल लेने के बहाने उसका हाथ पकड़ना चाहते थे l उसने तब देशमुख को डपट दिया था 9 - " आपको शर्म नहीं आती देशमुख जी, आप बाल-बच्चों वाले आदमी हैं l आपकी पत्नी को जब ये सब पता चलेगा तब उसको कैसा लगेगा ? मैं आपकी बेटी की उम्र की हूँ l मुझे घिन आती है, आपके जैसे लोगों से l " और वो फाइल फेंककर चली गई थी l फिर, उस दिन के बाद वो आज तक देशमुख के केबिन में कभी नहीं गई l जब कोई फाइल देनी होती तो, पियून के हाथों भिजवाती है l देशमुख सर के केबिन में l देशमुख और, उसके जैसे लोग मेघा को फूटी आंँखों नहीं सुहाते l
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कंँडक्टर ने आकर टोका - "टिकिट...टिकिट ...टिकट...लीजिए l "
मेघा की तँद्रा टूटी l उसने टिकिट लिया, और रेजगारी पैसा अपने पर्स से निकालकर कंँडक्टर की ओर बढ़ाया l
किसी को शायद उतरना था l कोई परिवार वाला आदमी था l बस कुछ देर तक यूँ ही खड़ी रही l पहले लगेज उतारा गया l बस काफी देर वहाँ खड़ी रही l
सामने ढ़ेर सारी सुहागिन औरतें वट वृक्ष की पूजा कर रहीं हैं l लाल- नारंगी साड़ियों में वो सब कितनी सुंदर लग रहीं हैं l आपस में बोलती - बतियातींं हँसी - ठहाके लगातीं l माँग में केसरिया सिंदूर नाक से लेकर, माँग तक भरा हुआ है l कितनी हँसी खुशी से जीवण भरा हुआ है इनका l इस पृथ्वी पर सुख और दु:ख एक ही साथ पलते हैं l अलग - अलग लोग एक ही समय में उसको जीते हैं l
मेधा का गला रुँध आया है l एक टीस उसके अंदर पैदा होने लगी है l उसके अंदर एक घाव है जो रह-रहकर टीसता है.. ऐसे मौके उसको बैचैनी से भर देते हैं l
उसके जीवन में अब तक दु:ख ही दु:ख भरे थें, लेकिन, उसके जीवन में इधर दो महीने से एक सुख का पौधा अंँकुराने लगा है l निशांत से उसकी मुलाकात इसी बस में हुई थी l दफ्तर से लौटते वक्त l वो उसके बगल में ही किसी बीमा कंपनी में काम करता है l अभी नया - नया ही आया है, इस शहर में l एकदम नये उम्र का लड़का है, निशांत l आॅफिस से लौटते वक्त उससे चार - बजे इसी बस में रोज - रोज मुलाकातें होने लगी थीं l
मुलाकातों का ये सिलसिला जब लंबा चला तो एक दिन मोबाइल पर बातचीत भी होने लगी l
" हाय l " मोबाइल पर पहला मैसेज निशांत ने ही किया था l
"हैलो... अबतक सोये नहीं...?" मेघा ने लिखा l
" नहीं, नींद नहीं आ रही है l "कुछ सोच रहा हूंँ l
" क्या सोच रहे हो..? " मेघा बोली l
" नहीं , जाने दो तुम बुरा मान जाओगी l " निशांत बोला l
" अच्छा, ठीक है, नहीं मानूँगी l अब, बोलो भी...! " मेघा ने मनुहार किया l
"बहुत दिनों से मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ l "
निशांत बोला l
" बोलो, क्या बोलना चाहते हो..??" मेघा बोली l
" कैसे कहूँ, मुझसे कहा नहीं जा रहा है.?" निशांत बोला l
" अब, कह भी दो l कोई बात कह देने से मन का बोझ हल्का हो जाता है l " मेघा बोली l
निशांत ने किसी तरह हिम्मत की और अपना मैसेज पूरा किया - " आई. लव. यू. ... मेघा.... l " लेकिन, ऐसा लिखते ही उसका दिल बल्लियों उछलने लगा l
उधर, से मेघना का कोई जबाब नहीं मिला l
निशांत परेशान हो गया l वो मेघा के मैसेज का बहुत देर तक इंतजार करता रहा, कि उसका कोई जबाब मिले l इस चक्कर में उसे सारी रात नींद नहीं आई l वो, रह- रहकर सारी रात मोबाइल चेक करता रहा l
एक दिन बस से लौटते वक्त निशांत मेघा से बोला- " मुझे साँवला रंग बहुत पसंद है l "
" क्यों ..? "उसने निशांत से ऐसे ही पूछ लिया था l
" क्योंकि, मुझे बादल बहुत पसंँद है l जोकि, काले होते हैं l घटाएँ भी बहुत पसंँद हैं l क्योंकि, वो स्याह होती है, और मेघा यानी वर्षो भी मुझे बहुत अच्छी लगती है l ये तीनों, स्याह होते - होते काले हो जाते हैं l वर्षो के कारण ही इस धरती पर जीवन है, हरियाली है l इसलिए मुझे साँवला रंग बहुत पसंद है l "
निशांत द्वी-अर्थी भाषा में बोल रहा था l जिसे मेघा ने ताड़ लिया था l
"और, क्या पसंद है तुम्हें..? " मेघा बस का फर्श आँखों से छिलते हुई बोली l
" तुम्हारी आँखों का स्याहपन और कत्थई रंग l " निशांत, मेघा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोला था l
मेघना अपना हाथ धीरे से निशांत के हाथ से छुड़ाते हुए बोली थी- " इन कत्थई रंग के खूबसूरत आँखों और रंगों के रूमानियत में मत बहो निशांत l रंग आदमी को हमेशा धोखा दे जाते हैं, और आदमी भी समय के साथ रंग बदलने लगता है l "
मेघा थोड़ा रूककर बोली-" और, , बादल और घटाएँ धरती के दु:ख को ही देखकर रोते हैं l धरती की छुपी हुई आँखें आसमान हैं l धरती का दु:ख जब आसमान से नहीं देखा जाता तो वो बादल और घटाओं की आड़ लेकर रोता है l " और, सचमुच मेघा की आंँखें भींगने लगी थीं l वो अपनी आँखे पोंछते हुए बोली - " तुम्हें मालूम है, मैं तलाकशुदा हूँ.. और मेरे दो बच्चे भी हैं l "
" हाँ जानता हूँ l "
"फिर भी तुम मुझसे शादी करोगे...?" मेघा उसी अंदाज में बोली l
" हांँ, फिर भी तुमसे ही शादी करुँगा l तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो l और... और... मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ... आइ लव यू... मेघा l "
" और, तुम्हारे घर वालों को कोई ऐतराज नहीं है..? " मेघा बोली l
" मैं बचपन से अनाथ हूँ l एक बूढ़ी चाची हैं l उन्होंने ही मुझे पाल- पोसकर बड़ा किया है l उनको मैंने बताया था l उनको कोई ऐतराज नहीं है.. " निशांत बोला l
" आई. लव. यू. जैसा सस्ता और हल्का शब्द प्रेम के लिए मत यूज करो निशांत, प्लीज l "
और तब, मेघा ने टालने की गरज से कहा था - " मैं सोचकर बताऊँगी l अपने पापा से पूछकर l "
" मुझे, इसका बेसब्री से इंतजार रहेगा l " निशांत बस से उतरते हुए बोला था l
अभी और तीस मिनट लगेंगे ऑफिस पहुँचने में l उसने एक बार फिर, घड़ी पर नज़र डाली l अभी तो साढ़े दस ही बजे हैं l अभी आधा घंटा और लगेगा ऑफिस पहुँचने में l
........और अचानक से उसकी नज़र बस के साइड मिरर पर पड़ गई l साँवला सा चेहरा l चेहरे पर उदासी पुती हुई थी l सांँवलापन एकाएक उसके पूरे बदन में एक जहर की तरह फैल गया, और उसका पूरा बदन गुस्से से सुलगने लगा - " राइज एंड लवली, क्रीम किस लिए चाहिए तुम्हें..? गोरा होने के लिए... हुँह....!जब भगवान ने तुम्हें साँवला बना दिया है, तो तुम रोजी की तरह कभी गोरी नहीं हो सकती l तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं करती... ? " मनोज , मेघा की एक छोटी सी डिमांड पर गुस्से से बिफरते हुए बोला था l
" क्या, यही कारण है, कि तुम रोजी से शादी करना चाहते हो l मेरा रंग खराब है इसलिए ? " मेघा बोली l
" कारण चाहे जो भी रहा हो, लेकिन मैं रोजी से शादी करुँगा, और हर हाल में करूँगा l अब हर चीज का कारण बताना मैं तुम्हें जरुरी नहीं समझता l " मनोज, पलंग से उठकर खिड़की के पास चला गया, और नीचे बाॅलकाॅनी में देखने लगा l
और, उस दिन के बाद वो, वापस कभी मनोज के पास नहीं गई l अपने दोनों बच्चों, आदि और अवंतिका के साथ वो अपने पिता के घर पर ही रह रही थी l
और, इस बीच उसने, अपने पिता से निशांत के बारे में बताया था l कि वो उससे शादी करना चाहता है l रंजीत बाबू अपनी बेटी के समझदारी के कायल थें l एक गलती उनसे अपनी जिंदगी में मनोज जैसे दामाद को पाकर हुई थी l वो, अपनी गलती का पश्चाताप भी करना चाहते थें l
उस दिन आफिस गई, और वापस आ गई l
इस तरह साल भर बीत गया l पतझड़ के बाद फिर, से वसंत आया l पेंड़ पर नये पत्ते आये l बाग गुलज़ार हो गया l
और, मेघा ने निशांत को अपने घर बुलाया, और अपने पिता जी से मिलवाया l रंजीत बाबू, निशांत के प्रगतिशील सोच से बहुत प्रभावित हुए l अगले दिन निशांत को खाने पर बुलाया l सिन्हा साहब भी मेघा और निशांत की जोड़ी को देखकर बहुत खुश हुए , और दोनों को खूब आशीर्वाद दिया l
आज, मेघा आईने के सामने खडी़ होकर खुद को निहारने लगीl l गुलाबी, सूट में वो किसी परी से कम नहीं लग रही थी l आँखों मे काजल, दोनों हाथों में लाला - लाल चूड़ियाँ, शाखा- पोला, पांँव में आलता नयी सैंडल l उसने गालों पर राइज एंड ग्लो क्रीम लगाना चाहा, लेकिन, कुछ सोचकर वो रूक गई l निशांत ने तो मुझे ऐसे ही पसंद किया था, और, वो अपनी नई, खरीदी स्कूटी पर सवार होकर निशांत से मिलने होटल पहुंँच गई l
निशांत, आज बड़ी बेसब्री से होटल सन- साईन में मेघा का इंतजार कर रहा था l उसने एक टेबल मेघा और अपने लिए पहले से ही बुक कर रखा था l काले - कोट- पैंट में निशांत भी खूब फब रहा था l आते ही उसने मेघा को बुके देकर उसका स्वागत किया l फिर, पूछा- " क्या फैसला किया तुमने..? "
मेघा बुके लेते हुए बोली - " वही, जो पहले था l सोचकर बताऊँगी l "और हो- हो करके हँसने लगी l
आज बहुत दिनों के बाद निशांत ने मेघा के चेहरे पर हँसी देखी थी l वो, भी बिना मुस्कुराये नहीं रह सका l
फिर, वो निशांत से बोली - " मेरे बच्चों को तुम अपना नाम दोगे , आई मीन तुम उन्हें अपनाओगे ना l उनकी जिम्मवारी लोगे.? "
" हाँ, तुम्हारे साथ - साथ मैं तुम्हारे बच्चों को भी अपनाऊँगा , और, तुम्हारी जिम्मेवारी भी उठाऊँगा l " निशांत मेघा के हाथ को अपने हाथ में लेते हुए बोला l
और, दोनों खिलखिलाकर हँस पड़े l
सर्वाधिकार सुरक्षित
महेश कुमार केशरी
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