ठंडी हवा में तुम्हारी खुशबू
रात के सफर में
जयपुर से नोहर तक
आने वाली बस
के अंन्दर बैठा था मैं।
लगभग भागपाटी के
चार बजे थे।
काची नींद से जाग गया,
बाहर थूकने की खातिर
सरकाया शीशा तो
रात के आखरी पहर में
धुंधला सा ,
सड़क किनारे बसे घरों की
दीवारों पर नाम दिखाई दिया
तुम्हारे गांव का।
कैसे थूक सकता था
उस गांव की जमीन पर
जो तुमसे जूड़ी थी।
और मैं
बाहर गर्दन निकाल कर
लेने लगा तुम्हारे गांव की
ठंडी हवा।
जिसमें आ रही थी तुम्हारी खुशबू।
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