महेश केशरी जी की लघुकथाएं

महेश केशरी जी की लघुकथाएं

महेश केशरी जी की लघुकथाएं

लघुकथा-मुल्क

"मांँ तुम रो क्यों रही हो ? " -सादिक ने अमीना बीबी के कंँधे पर धीरे से हाथ रखकर पूछा l
" नहीं, मैं रो कहाँ रही हूंँ ? "
" नहीं, तुम रो नहीं रही हो तो तुम्हारी आंँखों से आंँसू कैसे. निकल रहे हैं ? " सादिक , वैसे ही बोल रहा था l जैसे वो , अमीना बीबी की बात को ताड़ गया हो l
"कुछ नहीं होगा... हमलोग.. कहीं.. नहीं जा रहें हैं l सादिक ने अमीना बीबी को जैसे विश्वास दिलाते हुए कहा l "
बहुत मुश्किल से अमीना बीबी का जब्त किया हुआ बांँध जैसे भरभराकर टूट गया, और वो रुआंँसे गले से बोलीं - " इस तरह से जड़ें... बार-बार नहीं खोदी जातीं l ऐसा ही एक गुलमोहर का पेंड़ हमारे यहांँ भी हुआ करता था l तुम्हारे अब्बा ने उसे लगाया था l इस गुलमोहर के पेंड़ को देखकर तुम्हारे अब्बा की याद आती है l सोचा , इस गुलमोहर के पेंड़ को ही देखकर मैं बाकी की बची-खुची जिंदगी भी जी लूंँगी l मैंने यहांँ बहुत समय निकाल दिया l अब, सोचती हूंँ की बाकी का समय भी इसी जमीन पर इसी गुलमोहर के नीचे काट दूंँ l यहांँ की तरह ही वहांँ भी धूप के कतरे , पानी की प्यास और आदमी को लगने वाली भूख में मैंने कोई अंतर नहीं पाया l बार-बार जड़ें नहीं खोदी जाती ..सादिक मियांँ ! ..ऐसे गुलमोहर एक दिन में नहीं बनते l "और अचानक से अमीना बीबी जोर जोर से रोने लगीं l

सादिक ने अमीना बीबी को अपनी बाहों में भर लिया और चुप कराने की कोशिश करने लगा l अमीना बीबी को चुप कराते- कराते सादिक भी पता नहीं कब खुद भी रोने लगा l

सर्वाधिकार सुरक्षित
महेश कुमार केशरी
C/O -मेघदूत मार्केट फुसरो
बोकारो झारखंड(829144)
मो-9031991875
email-keshrimahesh322@gmail.com

लघुकथा-काॅलम

दसवीं में पढ़ने वाले गौरव के सवाल पर पहले तो सुधांशु सर खीजे फिर वे बोले - " तुम्हें क्या फर्क पड़ता है कि इस काॅलम में हिन्दू, क्यों लिखा हुआ है..? या इस काॅलम में मुस्लिम , सिक्ख , ईसाई , या पारसी क्यों लिखा हुआ है ? तुम्हारा काम है फार्म भरना l चुपचाप फार्म भरकर जमा करो , और अपने इम्तिहान की तैयारी करो l " और, वे अपने रजिस्टर में कुछ दर्ज करने लगे l
ठीक है सर - " तब आप मुझे ये बताइये. मुनव्वर जिस ब्रेड को खाता है, वो भी उसी बेकरी, से आती है जहांँ से मेरे पिताजी ब्रेड लाते हैं l ब्रेड के रंग में मैनें कोई अंतर नहीं पाया l जो , ग्वाला हमारे यहांँ दूध पहुंँचाता है उसका रंग सफेद होता है l ऐसे ही मुनव्वर के यहांँ भी आने वाले दूध का रंग भी सफेद ही होता है l पेंड़, सबको बराबर, फल और हवा देते हैं l सूर्य की किरणें भी नाप- तौलकर किसी को धूप के रेशे नहीं बांँटती l जब सारे लोग एक जैसे ही हैं तो, धर्म का काॅलम क्यों बनाया गया है ,सर ? "

सुधांशु सर गौरव के इतने सारे सवालों को सुनकर भौंचक्क से रह गये l एक बार उनको लगा की ये लड़का पढ़ता जरूर छोटी क्लास में है, लेकिन, है बहुत ही जहीन l गौरव के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोले - " बेटा आदमी और आदमी को बांँटने के लिए ही कुछ स्वार्थी लोगों ने ऐसे काॅलम बनाये हैं l ताकि उनका हित सधता रहे l आदमी इसी तरह एक काॅलम के अंदर बंँद होता है l सांँसें जरूर प्रकृति के दिये पेंड़ों से लेता है l पीता जरुर चश्मे का पानी है , लेकिन वो अपने काॅलम में ही सिकुड़ा -सिमटा रहता है l अपने अंतर्विरोधों और कुंँठाओं से लड़ता रहता है l जब वो इस काॅलम से निकलना चाहता है, तो अक्सर छोटे- बडे़, ऊंँच - नीच और अमीरी गरीबी के भेद उसे घेर लेते हैं l दूसरों से अपने को श्रेष्ठ समझना , इसी में उलझकर वो ताउम्र अपने और अपने जैसे लोगों से लड़ता रहता है l अच्छा लगा ये जानकर कि नई पीढ़ी अपनी इन कुंँठाओं से निकल कर ऐसे काॅलम को खत्म करना चाहती है l तुमसे और तुम्हारे जैसी सोच रखने वाले विधार्थियों से ही ये काॅलम खत्म होगा l चलता हूंँ बेटा l मुझे साइंस का क्लास भी लेनी है l "
धीरे- से उठकर सुधांशु सर क्लास से बाहर चले गये l


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महेश कुमार केशरी
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लघुकथा-बिल्ली

उस आकृति को देखकर वहांँ मौजूद लोग कयास भर लगा पा रहे थें l बंटी की मांँ शायद किसी काम से बाहर गयी थी l राधा देवी की दोनों बेटियांँ, जया, और खुशबू सामने ही सोफे पर बैठकर बंटी की बातों को केवल सुन भर रही थीं l वो मांँ के दशकर्म में शामिल होने के लिए अपने नैहर आयी हुईं थीं l बंंटी.. अपनी बुआ की बेटी सुरभि से बोला - " लगता है दादी( राधा देवी) बिल्ली बन गईं हैं l "
सुरभि ने नजदीक जाकर बालू पर उग आये आकृति को बडे़ ही ध्यान से देखते हुए बोली - " नहीं- नहीं , ये बाघिन के पंजे का निशान जैसा लग रहा है l बिल्ली के पंजे जैसा निशान तो बिल्कुल भी नहीं है l ये..बिल्ली के पंजे के निशान तो हो ही नहीं सकते l बाघिन के पंजे के निशाना ही हैं l "
सुरभि जैसे एकदम से फैसला देते हुए बोली l
"दादी को दूध, और दूध से बनी रबड़ी खूब पसन्द थी l हो -ना- हो दादी बिल्ली ही बनी होंगीं l " बंटी अपनी ही जिद पर जैसे अड़ा हुआ था l
सामने, ही रमा( नौकरानी) फर्श पर पोछा मार रहीं थी l बंटी और सुरभि की जिरह से तंग आकर बोली-" बबुआ, मालकिन, ( राधा देवी) को जब समय पर रुखी-सूखी रोटियांँ भी नहीं मिलती थी तो, दूध और रबड़ी की बात कौन पूछता.. है ? आखिरी, समय में बुढ़िया दवाई के लिए झखती - झखती मर गयी l चलो अच्छा ही हुआ l बिल्ली बनी होगी तो आराम से कहीं किसी घर में दूध - मलाई खायेगी l

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महेश कुमार केशरी
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लघुकथा-कुंँठा

अपराजित ने एक बार फिर नोटिस किया l उसकी सबसे अच्छी दोस्त रागिनी अब उसके किसी भी पोस्ट पर ध्यान
नहीं देती l ना ही कभी कोई कमेंट करती है l आखिर अपराजित से ऐसी कौन सी गलती हो गई है ? बहुत देर तक वो रागिनी के पुराने पोस्ट को खँगालता रहा l लेकिन उसे अपने किसी कमेंट को देखकर कभी ऐसा नहीं लगा कि उसने रागिनी के पोस्ट पर कभी ऐसा कोई कमेंट किया हो l जिससे रागिनी ने उसके पोस्ट पर लाइक, कमेंट करना बिल्कुल ही बँद कर दिया है l

"आज कल खाना बनाने में तुम्हारा मन बिल्कुल भी नहीं लगता है रागिनी..l कल सब्जी में मिर्ची ज्यादा थी l और, आज दाल में नमक ज्यादा है l आखिर तुम खाना ढँग से क्यों नहीं बनाती ? सारा - सारा दिन फेसबुक और व्हाटसैप पर क्यों लगी रहती हो..? " नरेश , रागिनी पर गुस्से से फुँफकारते हुए बोला l

"नहीं मैनें तो खाना खाकर देखा है l सब्जी में मिर्च भी ठीक- ठाक है, और दाल में नमक भी ठीक है l " रागिनी खाना खाते हुए बोली l

" तो क्या मैं झूठ बोला रहा हूँ ? " नरेश की आवाज़ अपेक्षाकृत कुछ ज्यादा ही तेज हो गयी l

" ऐसा मैंने कब कहा l हाथ-हाथ की बात है, कभी - कभी हो जाता है l " रागिनी ने पानी पीते हुए कहा l

"आजकल तुम्हारा फेसबुक - फ्रेंड, अपराजित तुम्हारी पोस्ट पर कुछ ज्यादा ही लाइक- कमेंट करता है l क्या बात है..? ..कहीं तुम्हारा उसके साथ चक्कर तो नहीं चल रहा है.. " नरेश कौर को चबाते हुए बोला l

" तब, तो बात, सब्जी में , मिर्ची की या दाल में नमक की तो बिल्कुल भी नहीं है , नरेश l बात कुछ और ही है l जिसे तुम सीधे- सीधे नहीं कहना चाहते , और, तुम्हें मालूम है मुझे हर बात सीधी ही सुनने की आदत है l तुम घूमा- फिरा कर बात मत करो तो ज्यादा अच्छा है l " रागिनी भी उसी लहजे में बोली l

नरेश रोटी के कौर को मुंँह में चबाते हुए बोला- "कल देर रात तक तुम आॅनलाईन रही l करीब दो बजे तक l
आखिर, करती क्या हो तुम इतनी रात तक आॅनलाइन रहकर ? तुम्हारा इस तरह से, दूसरे- लोगों को लाइक-कमेंट करना , और दूसरे लोगों का तुम्हें.. सो- ब्यूटीफूल , नाइस, कहना.. मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है l लोगों का तुम्हें गुलाब देना भी मुझे पसंद नहीं है l आखिर, कितने मर्दों से तुम्हारा चक्कर चल रहा है l अब, ऐसा बिल्कुल भी नहीं चलेगा l फिर, लगभग, फैसला देने के अंदाज में नरेश बोला - आज से तुम अपना फेसबुक एकाउंँट बंँद करो l मैं नहीं चाहता कि मेरे घर कि इज्जत का कचरा कहीं बाहर जाकर हो l समझ रही हो ना तुम मैं क्या कह रहा हूंँ ? "
" लेकिन, मैं ऐसा नहीं कर सकती l " रागिनी के मुँह से भी सहसा निकल गया

नरेश अपने आपको जब्त नहीं कर सका l और उसने एक झापड़ रागिनी के गाल पर रसीद कर दिया l फिर बोला- " हांँ तुम ऐसा क्यों- कर करने लगी..? तुम रंँsss जो हो l स्याली .रंँsss कहीं की..l साली एकदम बाजारु औरत हो गई हो तुम..l " और नरेश गुस्से से पैर पटकता हुआ बाहर निकल गया l


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महेश कुमार केशरी
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परिचय -

नाम - महेश कुमार केशरी
जन्म -6 -11 -1982 ( बलिया, उ. प्र.)
शिक्षा - 1-विकास में श्रमिक में प्रमाण पत्र (सी. एल. डी. , इग्नू से)
2- इतिहास में स्नातक ( इग्नू से)
3- दर्शन शास्त्र में स्नातक ( विनोबा भावे वि. वि. से)

अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन - सेतु आनलाईन पत्रिका (पिटसबर्ग अमेरिका से प्रकाशित) .

राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन- कथाक्रम, गाँव के लोग, नया- साहित्य - निबंध , किस्सा , पुरवाई, अभिदेशक, वागर्थ, पाखी, अंतिम जन , प्राची , हरिगंधा, नेपथ्य, एक नई सुबह, एक और अंतरीप , दुनिया इन दिनों , रचना उत्सव, स्पर्श , सोच - विचार, व्यंग्य - यात्रा, गृहशोभा, समय-सुरभि- अनंत, ककसार, अभिनव प्रयास, सुखनवर , समकालीन स्पंदन, साहित्य समीर दस्तक, , विश्वगाथा, स्पंदन, अनिश, साहित्य सुषमा, प्रणाम- पर्यटन , हॉटलाइन, चाणक्य वार्ता, दलित दस्तक , सुगंध,
नवनिकष, कविकुंभ, वीणा, यथावत , हिंदुस्तानी जबान, आलोकपर्व , साहित्य सरस्वती, युद्धरत आम आदमी , सरस्वती सुमन, संगिनी,समकालीन त्रिवेणी, मधुराक्षर, प्रेरणा अंशु , तेजस, दि - अंडरलाईन,शुभ तारिक , मुस्कान एक एहसास, सुबह की धूप, आत्मदृष्टि , हाशिये की आवाज, परिवर्तन( आनलाईन, पत्रिका) गोवा, विश्वविधालय से प्रकाशित , युवा सृजन, अक्षर वार्ता (आनलाईन पत्रिका), सहचर ई- पत्रिका, युवा -दृष्टि ई- पत्रिका, संपर्क भाषा भारती , , दृष्टिपात, नव साहित्य त्रिवेणी (पाक्षिक पत्रिका) , नवकिरण ( आनलाईन पत्रिका ), अरण्य वाणी, राँची एक्स्प्रेस, अमर उजाला, प्रभात खबर, पंजाब केसरी , नेशनल एक्स्प्रेस, युग जागरण, शार्प- रिपोर्टर, प्रखर गूंज साहित्यनामा, कमेरी दुनिया, आश्वसत के अलावे अन्य पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित .

चयन - प्रतिलिपि कथा - प्रतियोगिता 2020 में टाॅप 10 में कहानी गिरफ्त का चयन

1- कहानी संकलन - मुआवजा प्रकाशित

2- कविता संकलन - "जब जंगल नहीं बचेंगें " कविता संकलन रवीना प्रकाशन नई दिल्ली के द्वारा नि: शुल्क प्रकाशित

3- संपादन - प्रभुदयाल बंजारे के कविता संकलन " उनका जुर्म " का संपादन..

4-( www.boltizindgi.com) वेबसाइट पर कविताओं का प्रकाशन

(5) शब्द संयोजन पत्रिका में कविता " पिता के हाथ की रेखाएँ "
का हिंदी से नेपाली भाषा में अनुवाद सुमी लोहानी जी द्वारा और " शब्द संयोजन " पत्रिका में प्रकाशन आसार-2021 अंक में.

(6) चयन - साझा काव्य संकलन " इक्कीस अलबेले कवियों की कविताएँ " में इक्कीस कविताएँ चयनित

(7 ) श्री सुधीर शर्मा जी द्वारा संपादित " हम बीस " लघुकथाओं के साझा लघुकथा संकलन में तीन लघुकथाएँ प्रकाशित

(8) सृजनलोक प्रकाशन के द्वारा प्रकाशित और संतोष श्रेयंस द्वारा संपादित साझा कविता संकलन " मेरे पिता" में कविता प्रकाशित

(9) डेली मिलाप समाचार पत्र ( हैदराबाद से प्रकाशित) दीपावली प्रतियोगिता -2021 में " आओ मिलकर दीप जलायें " कविता पुरस्कृत

(10 ) पुरस्कार - सम्मान - नव साहित्य त्रिवेणी के द्वारा - अंर्तराष्ट्रीय हिंदी दिवस सम्मान -2021

संप्रति - स्वतंत्र लेखन एवं व्यवसाय
संपर्क- श्री बालाजी स्पोर्ट्स सेंटर, मेघदूत मार्केट फुसरो, बोकारो झारखंड -829144

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