कृत्रिम बुद्धिमता-एडवोकेट किशन सनमुखदास

कविता
कृत्रिम बुद्धिमता

कृत्रिम बुद्धिमता-एडवोकेट किशन सनमुखदास
आजकल कृत्रिम बुद्धिमता की लहर छाई है
हर काम में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की भावना समाई है
मानवीय दिनचर्या चलाने में आलस्यता आई है
इसलिए मानव ने यह तरकीब अपनाई है

परंपरागत संसाधनों की परंपरा भुलाई है
प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अपार सफलता पाई है
इसलिए डिजिटल युग की परिकल्पना आई है
सूरजचांदअदालतों में कृत्रिम बुद्धिमता अपनाई है

मानव ने जो यह संकल्पता दर्शाई है
सारी प्रकृति को कृत्रिम करने की इच्छा जताई है
ऊपर वाले का अस्तित्व है यह बात भुलाई है
हे मानव!! उसीके बल पर यह बुद्धिमता पाई है

लेखक - कर विशेषज्ञ, साहित्यकार, कानूनी लेखक, चिंतक 
कवि, एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र



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