कहानी विधुर का सिमटा दर्द (hindi kahani)

कहानी
विधुर का सिमटा दर्द (hindi kahani)  

कहानी विधुर का सिमटा दर्द

आज बहुत दिनों बाद परेशभाई आए थे।वैसे तो कोई रिश्ता नहीं था हमारे साथ किंतु एक सहूलियत का रिश्ता बन गया था इनके साथ।वैसे तो निवेश करने में सहायक की भूमिका ही थी उनकी,लेकिन जब भी आते थे २ से ३ घंटे बैठते थे और काम के अलावा भी कई बातों पर चर्चा होती थी।
एक दिन परेशभाई का फोन आया था और परेशानी में लग रहे थे तो इन्होंने पूछा कि क्या बात हैं आप परेशान हैं उन्होंने ने क्या जवाब दिया तो ये जोर से बोल पड़े थे ’क्या’ तो मुझे भी कुछ समझ नहीं आया लेकिन जैसे ही इन्होंने फोन रखा तो मुझे बताया कि परेशभाई की पत्नी का देहांत हो गया हैं।वैसे हम कभी मिले नहीं थे उनकी पत्नी से लेकिन उनकी बातों से लगता था बहुत ही प्यार था दोनों में।हम दोनों थोड़ी देर उन दोनों के बारे में बातें करते रहे और फिर भूल भी गए लेकिन एक दिन जब वे आएं तो उनके आने से फिर से उनकी पत्नी के देहांत वाली बात याद आ ही गई थी।मैंने उन्हें पानी दिया तो अपने आप ही हमेशा की तरह बोल उठे कि उनके लिए चाय नहीं बनाऊं लेकिन उन्हे लेमन जिंजर का शरबत ही चाहिए।कुछ काम की बात करके फिर अपनी पत्नी की बात शुरू की।वैसे तो कुछ गोरापन था ही नहीं किंतु काला रंग भी और काला या निस्तेज सा हो गया था।थोड़ी देर चुप हो गए फिर बोले कि पत्नी बगैर जीना बहुत मुश्किल हैं,और दूसरी शादी करने की इच्छा जाहिर करदी।हम दोनों ही सकते में आ गए कि इतने प्यार से रहने वाले को पत्नी की नहीं स्त्री की जरूरत थी वह भी ये उम्र के पड़ाव में जब बेटी की शादी हो चुकी थी और बेटे के लिए लड़की देखने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी।उनका कहना था कि अकेलापन तो दोस्तों से दूर हो ही जाता था किंतु रातें बड़ी लंबी लगती थी उन्हे।घर में भी खाना आदि तो बन ही जाता था लेकिन को सहूलियत वह देती थी उसकी कमी का एहसास होता हैं।इस लिए शादी करने का मन बार बार जाहिर कर रहे थे।
मेरा दिमाग जो हमेशा से कुछ ज्यादा सोचता था , उसने सोचना शुरू कर दिया।इन दोनों की उसी बात पर बातचीत चल रही थी तो मैं बोल ही पड़ी कि इस उम्र में शादी करके वे कानूनी मुसीबत तो नहीं मोल रहे।क्योंकि शादी करके जो भी आएगी वह कानून उनकी वारिस होगी तो उनके बच्चों को शायद पसंद न आए।और आने वाली भी कुछ आर्थिक सुरक्षा की इच्छा तो रखेगी ही।
जवान बच्चों को भी इस उम्र में नई मां से एडजस्ट होने में तकलीफ हो और घर में उनका अस्तित्व स्वीकार्य नहीं होगा तो उस हालत में उन्हे अलग से घर लेना होगा। अगर वह भी विधवा हुई तो हो सकता था उनके भी बच्चे हो सकते थे।अगर उनके भी आगे वाले घर से बच्चे हुए तो परेषभाई को वह जिम्मेवारी का भी वहन कर उनके अभ्यास व शादी की जिम्मेवारी भी उठानी पड़ेगी।इस से अच्छा था की किसी से भली स्त्री से दोस्ती या लिव इन जैसे रिश्ते को स्थापित किया जाएं तो कानूनी और पारिवारिक उलझने काम हो जायेगी।ये सब सुन बेचारे परेश भाई दुविधा में पड़ गए लेकिन जब सब बात उनकी समझ में आई तो जाते समय बोले कि बात तो व्यवहारिक ही थी,भवनावश कोई कदम लेने से नतीजा मुश्किल भी हो सकता था।और कोई दो घंटे बैठ वह विदा हो गए और हम भी अपनी जिंदगी के कार्यों में व्यस्त हो गए।
कोवीद १९ के आने से एक तरह से जिंदगी की गाड़ी का चक्का कुछ ऐसा घुमा कि सब की जिन्दगी को पटरी से उतर दिया।सब कुछ लोक डाउन,आवश्यक सेवाओं के अलावा बाहर जाना प्रतिबंधित हो गया ।सभी एक कैदी सी जिंदगी जीने को मजबूर हो गए थे और उन्ही दिनों हमारा प्रीमियम भरने की तारीख आ गई ।वैसे तो बहुत बातें सुनाई देती थी कि काफी रियायतें मिलने वाली हैं किंतु जब तक परिस्थितियां ठीक नहीं होती या कुछ सरकार या कंपनियों द्वारा जाहिर नहीं होता, पॉलिसी को लाइव रखने के लिए हमारा प्रीमियम पहुंचना जरूरी था। ऑन लाइन पे करने की कभी जरूरत ही नहीं पड़ी तो कैसे भेजी जाए प्रीमियम की रकम ये दुविधा हो गई। एक दिन दरवाजे की घंटी बाजी और देखा तो परेशभाई मुंह पर मास्क बंधे खड़े थे।हम लोगों ने उनका इतने खतरे को उठाके आने पर थोड़ी नाराजगी जाहिर की तो जवाब मिला किसी से पास की व्यवस्था हो गई तो आ ही गया और जा के बगीचे में लगे जुले पर बैठ गए और अपनी कागजी कार्यवाही करने लगे।मैंने भी पानी दिया लेकिन वो लेमन जिंजर वाला सिलसिला नहीं चल पाया क्योंकि सब कुछ तो ऑर्डर करके मंगवाना पड़ता था जो मिलगाया सो मिलगया बाकी के बिना ही चलाना पड़ता था।फिर मैने भी चेक दिया और वह चले गए।पहली लहर खत्म हुई सब थोड़े आश्वस्त हुए कि अब जिंदगी फिर पटरी पर लौट आयेगी ,कुछ महीने शांति के रहे तो फिर पहली से भी ज्यादा तीव्रता की लहर आई, डेल्टा वायरस।फिर सभी बिल में घुस कर रहने लगे थे।चूहे जैसी जिंदगी हो गई थी,डरते डरते खाना ढूंढो और फिर बिल में छुप जाओ। परिस्थितियां मुश्किल हो रही थी,एक डर सा छा गया था।एक सुबह इन्होंने मुझे बोला कि बहुत बुरा हुआ,परेशभाइ नहीं रहे तो एक धक्का सा लगा और उनके घर फोन कर अफसोस कर दिया लेकिन एक बात जो मैंने उन्हे समझाई थी वह मेरे मन से निकल नहीं रही थी और वह थी उनकी शादी या लिव इन, यानि दोस्ती ,जिससे उन्हें कोई साथी मिल जाता।और अगर कुछ किया होता तो आज वे अपने बच्चों के सर पर एक जिम्मेवारी डाल कर चले गए होते।लेकिन परेश भाई अपने दुःख दर्द को अपने में ही समेट कर दूर के मुसाफिर हो चले गए।

जयश्री बिरमी
अहमदाबाद

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